Friday 13 October 2023
चार धाम यात्रा, हरिद्वार (1)
चार धाम यात्रा,हरिद्वार (1)
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कहते हैं कि चार धाम यात्रा का हमारे जीवन में विशेष महत्व है ।अब इस महत्व को समझना और समझना दोनों ही कार्य मेरे लिये विकट हैं ।हालाँकि इसे पूर्ण रूप से धार्मिक भावनाओं और आस्था से जोड़ कर हम देखते हैं जो कि सही भी है ।प्राय: सभी जिम्मदारियों से मुक्त होने के बाद हम धार्मिक यात्रायें करना प्रारम्भ करते हैं।जिसके पीछे शायद यही विचार रहा होगा कि अब पारिवारिक जिम्मेदारियों के वहाँ के लिये अगली पीढ़ी तैयार हो गई है इसलिए सभी ज़िम्मेदारी उन्हें सौपों और अध्यात्म की ओर चल पड़ो।वैसे आजकल हॉलीडे और लाँग वीकेंड टूर की परंपरा भी विकसित होती जा रही जिसमें भी कुछ युवा भी धार्मिक स्थानों पर यात्रायें करने लगे हैं।परन्तु पहले ऐसा नहीं होता था ।कहीं छुट्टी मनाने जाना होता था तो मामा ,मौसी,आदि के यहीं जाया जाता था ।आज सभी संबंध वीडियो कॉल में सिमट कर रह गये हैं।धार्मिक यात्रायें भी अब छुट्टियाँ मनाने और आनन्द का विषय हो गया है ।
हमारे कुछ परिजनों का लगभग एक माह पहले ही चार धाम यात्रा का कार्यक्रम बना था ।हमसे भी पूछा गया लेकिन अभी दो माह पूर्व अमेरिका यात्रा से वापसी होने पर अभी फिर से यात्रा पर निकलने की कुछ इच्छानहीं थी इसलिए हमने तुरंत जाने से माना कर दिया ।हालाँकि अमेरिका यात्रा और इस यात्रा में काफी अंतर है ।फिर भी न जाने क्यों जाना तय नहीं हुआ लेकिन यात्रा के प्रारंभ से मात्र दो दिन पूर्व प्रातःरनिंग के बाद अचानक श्रीमती जी ने कहा कि हम भी चलें चारधाम,गंगोत्री ,जमनोत्री,बद्रीनाथ ,केदार नाथ जी की यात्रा पर ।अब भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी ,क्योंकि कहीं भी बाहर जाने के लिए श्रीमती जी कम ही साहस कर पाती हैं।तुरन्त टूर ऑपरेटर से दो सीट के विषय में बात की और ऑनलाइन पेमेंट कर दिया ।सभी जयपुर से हरिद्वार जा रहे थे ।कोटा से हरिद्वार के लिए सीधी ट्रेन सेवा होने पर हमारे सीधे हरिद्वार जाकर उनके साथ सम्मलित होने का विचार किया और टूर ऑपरेटर से बात की।उसने कहा ठीक है आप सीधे हरिद्वार पहुँचो सभी वहाँ मिलते हैं वहाँ मिलने का स्थान उन्होंने हमें भेज दिया ।ट्रेन में सीट कन्फर्म नहींथी लेकिन उसकी चिंता नहीं थी विश्वास था कि सीट तो कन्फर्म हो ही जायेगी ।और सीट कन्फर्म हो भी गई ।
आज आठ अक्तूबर 23को शाम को ट्रेन है ।हम आज सुबह से ही जाने के लिए कपड़े , आवश्यक सामान जमाने में लग गए ।दिन में हरिद्वार की सीट भी कन्फर्म हो गई।समय पर शाम को ट्रेन रवाना हो गई थी।टूर ऑपरेटर से सम्पर्क किया और उसे भी समय ट्रेन के पहुँचने का समय बता दिया था।हमारी ट्रेन का पहुँचने का समय प्रातः 3:55 था ।ट्रेन ऑपरेटर ने सुबह निश्चित स्थान महाजन सदन मिलने के लिए कह दिया था ।ट्रेन भी दूसरे दिन सही समय पर पहुँच गई और हम हमारे ट्रिप के अन्य साथियों से पहले ही पहुँच गये ।अन्य सभी लोग लगभग सुबह नो बजे पहुँचे तभी सब नाश्ता करके हर की पौड़ी पर स्नान करने और हरिद्वार भ्रमण के लिए निकल गए । हरिद्वार विश्व में एक विख्यात तीर्थ स्थल ।हरिद्वार कुंभ की नगरी भी कहलाती है ।मान्यता है कि प्राचीन काल में हरिद्वार हर की पौड़ी हर की पौड़ी पर अमृत की बूँदे छलक कर गिरी थी जिसपर यहाँ पर प्रति बारह साल में महाकुंभ का आयोजन होता है ।गत महाकुंभ 2021 में हरिद्वार में ही आयोजित हुआ था ।यहाँ सात प्रमुख घाट हैं।कुशावर्त या हर की पौड़ी एक प्रमुख घाट है ।यहाँ श्राद्ध, तर्पण ,पिण्ड दान का विशेष महत्व है।कहा जाता है यहाँ भगवान तत्तात्रेय की तपोस्थली है ।इसके अतिरिक्त यहाँ पर नाई घाट,विष्णु घाट , गऊ घाट,बिरला घाट और सती घाट हैं।जिनके विषय में अलग अलग महत्ता बताई जाती है ।हम हर की पौढ़ी पर पहुँचे तो वहाँ का दृश्य बड़ा ही विहंगम था ।गंगा के दोनों ओर अलग अलग घाट पर हर तरफ़ महिला पुरुष गंगा में डुबकी लगाने के साथ ही हर तरफ़ हर हर गंगे का जयनाद हो रहा था ।चारों ओर गंगा नदी से गंगा मैया का स्वरूप अपने आप साकार होता नज़र आ रहा था ।बड़े ही तेज बहाव वाले ठंडे ठंडे पानी से स्नान करने का अलग ही आनंद है ।हमारी इस चार धाम की यात्रा में हम कु चार लोग हैं ।जिसमें दस तो आपस में पारिवारिक रिश्तेदार ही थे तथा दो अन्य थे जो कि जयपुर से थे ।
हर की पौड़ी का स्नान के बाद हम भी शायद किसी पुण्य के भागीदार बन गए थे ऐसी सभी की सोच रही और अधिक पुण्य कमाने की लालसा में हम मनसा देवी के दर्शन के लिए आगे बढ़ चले।आज का दी पूरी तरह से हमारी चार धाम की यात्रा के अतिरिक्त वाला दिन था ।क्योंकि हमारी यात्रा का सही रूप से शुभारंभ दस अक्टूबर से होना था इसलिए आज के दिन का सही उपयोग करने के लिए हरिद्वार भ्रमण में मुख्य स्थानों पर जाने के निश्चय के साथ सभी मनसा देवी के लिए चल दिये, जिसके लिये हर की पौढ़ी से लगभग 750 मीटर पर केबल कार की बुकिंग थी ।वहाँ तक पैदल ही पहुँचने के बाद सभी का विचार बना कि मनसा देवी के साथ ही चण्डी मंदिर के भी दर्शन कर लिए जायें । मनसा देवी और चण्डी देवी ,दोनों ही मंदिर पहाड़ी पर बहुत ही ऊँचाई पर स्थित है ।जिसके लिए केबल कार की व्यवस्था है जो कि निर्धारित शुल्क जमा करके टिकिट लेकर की जाती है ।कुछ लोग पैदल भी जाते हैं।हमने दोनों स्थानों के लिए कॉम्बो पैक वाला टिकिट लिया ।केबल कार के लिए काफ़ी लंबी लाइन थी और साथ ही लंबाई वेटिंग लिस्ट भी फिर भी एक प्रशाद बेचने वाले ने उससे प्रशासन लेने की शर्त पर दो मिनट में ही टिकिट लाकर दे दिये और केबल कार में बिठा दिया ।मज़बूत मोटे तार पर केबल कार या कहें कि उड़ान खटोले एक के बाद एक ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर जा रहे थे । श्रीमती जी को ऊँचाई से हमेश दर लगता है जिसके कारण वे कभी ऊँचे झूले पर भी नहीं बैठती थी ।आज पहली बार कुछ हिम्मत कर उन्होंने बैठने का कुछ साहस किया ।एक केबल कार में कुल चार ही लोग बैठ सकते हैं।मैं श्रीमती जी के साथ ही रहा ताकि हम दोनों साथ साथ बैठ सकें।हमारा नंबर आने पर हम साथ ही उड़न खटोले में बैठे गए।केबल पर लटके ये उड़ान खगोल एक के बाद एक आ व जा रहे थे ।जैसे ही उड़ान खटोला /केबल कार ऊँचाई की ओर बढ़ा वैसे ही श्रीमती जी की धड़कने भी बढ़ गई ।ऊपर बढ़ते हुए प्रकृति के नजारों का आनंद लेते हुए कुछ दृश्य केमरे में क़ैद किए ।वास्तव मैं केबल कार में बैठ कर चारों तरफ़ के दृश्य बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहे थे ।माँ गंगा का चारों तरफ़ फैला विशाल स्वरूप अपने आप में अनोखा ही था ।क्योंकि गंगा तट पर तो हमें लगता है कि हम जहां स्नान कर रहे हैं बस इतनी चौड़ाई में ही गंगा है लेकिन ऊपर केबल कार से देखने पर मालूम होता है कि बहुत दूर दूर तक माँ गंगा की अनेक धाराओं के रूप में बह रही ।माँ मनसा देवी के मंदिर में पहुँचे तो वहाँ बहुत भीड़ थी ।अंदर प्रवेश करते ही दो अलग अलग मूर्तियाँ अलग अलग स्थानों पर थी ।सभी उन्हें नमन कर प्रसाद अर्पित कर रहे थे तो लगा कि यही मुख्य मूर्ति हा kelin बाद में मालूम पड़ा कि मुख्य मंदिर आगे है ।अंत में मुख्य मंदिर के भी दर्शन किए साथ ही उसी परिसर में अन्य देवी देवताओं के भी दर्शन करते हुए हम वापस नीचे आये तो मालूम हुआ की अब चण्डी देवी लिए हमें कुछ दूर जाकर दूसरी केबल कार से जाना होगा ।लगभग 250-300 मीटर पैदल चलने के बाद एक स्थान पर सभी ने नींबू पानी पिया और पहुँच गये निश्चित स्थान पर यहाँ मालूम हुआ की अब हमें द्वारा अन्य स्थान पर था फिर वहाँ से केबल कार मिलेगी ।लगभग आधा घंटा हमें यहाँ बस की प्रतीक्षा करनी पड़ी।इस बीच भोजन लिए टूर ऑपरेटर का बार बार फ़ोन आ रहा था ।दोपहर के लगभग दो बज चुके थे ।लेकिन सभी चण्डी देवी दर्शन के बाद ही भोजन करने पर सहमत थे ।अत: सभी वहाँ उपलब्ध कराई गई बस द्वारा चण्डी देवी केबल कार वाले स्थान पहुँचे वहाँ पर एक बार फिर से केबल कार की सवारी कर मंदिर तक पहुँचे ।यहाँ पर ऊँचाई कुछ अधिक थी।भीड़ यहाँ मनसा देवी मंदिर कि अपेक्षा कम थी ।उसका कारण शायद यह रहो हो कि यह शहर से दूर भी है ।इसी के पास ही अंजनी माता कि मंदिर भी है ।अंजनी हनुमान की माता है ।
मनसा माता मंदिर ,चण्डी देवी और अंजनी माता के मंदिर के विषय में अनेक किवदंडतियाँ हैं। मनसा माता ,हरिद्वार के पंच तीर्थों में से एक है ।कहा जाता है कि यह भगवान शिव से उत्पन्न हुआ ।मनसा को नाग वासुकि की बहन माना जाता है ।यह मंदिर विल्व तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है और यह शक्ति का स्वरूप है ।
चण्डी देवी मंदिर शिवालिक पहाड़ियों के पूर्वी शिखर पर नील पर्वत पर स्थित है जो हिमालय की सबसे दक्षिण वाली पर्वत शृंखला है ।इसका निर्माण कश्मीर के राजा सुचत सिंह ने 1929 में कराया था।वैसे यह भी माना जाता है कि मुख्य मूर्ति की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा कराई गई ।यह हरिद्वार के पंच तीर्थों में से एक नील पर्वत तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है ।
अंजनी माता के विषय में कहा जाता है की माता अंजनी ने इस स्थान पर तपस्या करके भगवान हनुमान को प्राप्त किया था ।इस स्थान पर भगवान विष्णु ने मंत्रों के द्वारा हनुमान को अंजनी के गर्भ में भेजा था ।यहाँ माता अंजनी के गर्भ में हनुमान बाल रूप में दिखते है ।कहते जो यहाँ पर बालक की कामना लेकर जाते हैं उनकी कोख माता आवश्यक ही भरती है ।यहाँ हनुमान जी माता अंजनी की कोख में लेते हुए हैं।
अब दोपहर के लगभग चार बज चुके थे और अब वापस हमारे विश्राम स्थल महाजन भवन पहुँच कर तुरंत भोजन किया और फिर शाम की गंगा आरती के लिए पुन: हर की पौढ़ी पहुँच गये । शाम को सवा छ: बजे आरती का समय रहता है ।सूर्यास्त हो चुका था लेकिन चारों तरफ़ विद्युत प्रकाश से अभी भी गंगा घाट जगमगा रहा था । घाट के दोनों तरफ़ अपार जान समूह ,सभी भक्ति भाव से अभिभूत माँ गंगा की आरती के लिए उत्सुक थे ।हम किसी तरह से आरती स्थल के बहुत क़रीब ही पहुँच गए और ठीक समय पर आरती प्रारंभ होते ही अनेकों दीपक लिए घाट पर कई पुजारी माँ गंगा की आरती करने लगे ।हर तरफ़ माँ गंगा के प्रति भक्तिभाव का दृश्य देख कर हर व्यक्ति स्वयं ही नतमस्तक हो रहा था ।शाम की गंगा आरती के बाद एक बार फिर दूसरे दिन सुबह भी साढ़े पाँच बजे हम प्रातः काल ली आरती के लिए पहुँच गए । एक बार इफ वही मनोरम दृश्य देखने को मिला ।एक बार फिर सुबह सूर्योदय के साथ ही गंगा स्नान का आनंद लिया ।
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