Tuesday 17 October 2023
चार धाम यात्रा (2)
यमुनोत्री यात्रा (प्रथम धाम ) 2
अब आज दस अक्टूबर से हमारी चार धाम की मुख्य यात्रा शुरू होनी थी ।स्नान करके हम साढ़े सात बजे वापस आ गए थे । सभी ने अपने सामान की पैकिंग की और भोजन करने के बाद हम लगभग सुबह दस बजे यमनोत्री के लिए रवाना हो गए ।यहाँ से हमें ख़रादी जाकर रात्रि विश्राम करना था ।फिर वहाँ से दूसरे दिन 11 तारीख़ को यमनोत्री के लिए प्रस्थान का कार्यक्रम है । ख़रादी ,हरिद्वार से क़रीब 265 km है लेकिन पहाड़ी रास्ता और चढ़ाई होने से समय अधिक लगाने की संभावना थी ।रास्ते में प्रकृति का आनंद लेते हुए सभी सफ़र कर रहे थे ।कुछ देर भजन कीर्तन चले कुछ आपसी वार्तालाप ।हम रात्रि लगभग साढ़े सात बजे खरादी सूर्या पैलेस होटल पहुँचे । हमारा रात्रि विश्राम यहीं पर था। टूर ऑपरेटर मनोज ने पहुँचते ही तुरंत खाना बनवाना शुरू कर दिया । भोजन साढ़े नो बजे तक सभी ने भोजन कर लिया ।
अब दूसरे दिन प्रात: पाँच बजे ही चलाने के आदेश हुए । सुबह चार बजे ही सभी को चाय मिल गई थोड़ी देर बाद सभी को दोपहर के भोजन के पैकेट भी मिल गए साथ ही नाश्ते के लिये बिस्किट के पैकेट भी थे ।साढ़े पाँच बजे हमारी बस यमनोत्री के लिए रवाना हो गई ।यहाँ से यमुनोत्री केवल लगभग तीस किलोमीटर ही है ।
खरादी से जानकी चट्टी तक की दूरी लगभग तीस किलोमीटर ही थी लेकिन रास्ता बहुत ही ख़तरनाक है।बस ड्राइवर के अनुसार लगभग तीन से चार घंटे का समय लग जाता है क्योंकि सड़क बहुत ही कम चौड़ी है और साथ ही बीच बीच में से बहुत ही गड्ढे हैं ।वास्तव में जब हमने बस में यात्रा शुरू की तो कुछ समय तो सड़क ठीक थी लेकिन शीघ्र ही सड़क का विकराल रूप प्रारंभ हो गया ।सड़क की चौड़ाई तो कम थी ही साथ ही थोड़ी थोड़ी दूरी पर ख़तरनाक मोड़ भी थे ।निरंतर चढ़ाई वाली सड़क थी जिस कारण बस की गति बहुत धीमी ही थी । कई स्थानों पर सड़क का कोई निशान ही नहीं था ।कुछ जगह पहाड़ की मिट्टी और चट्टानें भी आधी सड़क तक मिली ।मौसम बहुत ठंडा था ।सुबह का तापमान लगभग पाँच डिग्री था। सुबह सूर्योदय से पूर्व कहीं कोई बसावट आती तो दूर से पहाड़ी पर रोशनी से लगता जैसे तारे ज़मीन पर आ गए।जैसे जैसे सूर्य का प्रकाश बढ़ा तो चारों ओर प्रकृति की अनोखी छटा देखने को मिल रही थी । साथ ही बस की खिड़की से सड़क के साथ साथ गहरी खाइयाँ देख कर मन में घबराहट होना भी स्वाभाविक था ।उस पर सड़क के नाम पर अधिकांश जगह गड्ढों वाली कच्ची मिट्टी और गिट्टी वाली सड़क ।कई जगह झरनों के पानी से सड़क पर कीचड़ भी मिली ।सामने से कोई भी वहाँ आने पर जब बस को सड़क के किनारे पर लगाया जाता था सभी के मन में एक भय कि स्थिति रहती थी क्योंकि सड़क पर आने जाने वाले किसी भी एक वाहन को बिलकुल किनारे तक टायर ले जाना होता था ।जरा सी भी असावधानी हुई की बस जान के लाले पड़ा जायें ।
हम दो घंटे में ही जानकी चट्टी पहुँच गये थे ।अर्थात अनुमान से लगभग एक घंटे पहले ही हम पहुँच गए । टूर ऑपरेटर ने बताया कि हम जल्दी रवाना हो गए थे इसलिए रास्ते में हमें जाम नहीं मिला अन्यथा कई बार घंटों तक जाम लग जाता है ।बरसात होने पर स्थिति ओर भी विकट हो जाती है ।जानकी चट्टी से लगभग छ: किलोमीटर का पैदल का रास्ता है ।यह पूरा रास्ता चढ़ाई वाला है ।पैदल जाने पर न्यूनतम लगभग तीन घंटे लग जाते हैं।हमारे साथ के किसी भी व्यक्ति का पैदल चलने का मानस नहीं था ।मैं पैदल जाना चाहता था लेकिन सभी लोगों के सामने मुझे भी बहुमत के साथ चलाना पड़ा ।यहाँ से यमुनोत्री के लिए घोड़ा ,पालकी और पिट्ठू (बास्केट जो कि एक मज़दूर अपनी कमर पर लाद कर चलता है उस बास्केट में यात्री को बिठा करवाए जाता है )की व्यवस्था थी ।कुछ पालकी से कुछ पिट्ठू से रवाना हुए । श्रीमती सहित हम पाँच ,घोड़ों से रवाना हो गये ।पाँच में केवल हमारी श्रीमती जी ही महिला थी ।एनी कोई महिला घोड़े पर सवार होने का साहस नहीं कर पाई ।
यहाँ से एक छोटी गली में प्रवेश करते हुए हमारे घोड़े आगे बढ़े ।रास्ते में चाय नाश्ते की दुकाने लगी थी । जैसे जैसे हम आगे बढ़ाते गए वैसे वैसे रास्ते की चढ़ाई बढ़ती गई । कहीं सीढ़ियाँ तो कहीं सीधा रास्ता था । लेकिन चढ़ाई वाला रास्ता था । सीढ़ियों पर घोड़े जब चढ़ते तो उसपर बैठने वालों को थोड़ा सतर्क होकर बैठना पड़ता था ।ऊपर चढ़ते समय शरीर को आगे की तरफ़ झुकाने के लिए घोड़े वाले ने कहा ताकि परेशानी नहीं हो । एक स्थान पर एक ही जगह छ: सात बार सीढ़ियाँ घूमती हुई ऊपर की ओर गई।कहीं कहीं सीढ़ियों की ऊँचाई एक -डेढ़ फिट तक भी थी ।
यमुनोत्री समुद्र तल से 3235 मीटर (10613.5 फीट)की ऊँचाई पर स्थित है ।यहाँ पर यमुना देवी का मंदिर है ।कहते है कि जहाँ से यमुना निकलती है वहाँ का जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है ।यमुनोत्री मंदिर के कपाट बैशाख माह शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया को खोले जाते हैं।यमुनोत्री मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन् 1885 में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनाया था ।मंदिर का वर्तमान स्वरूप गढ़वाल नरेश प्रताप शाह ने दिया ।घोड़ों से मंदिर के द्वार तक पहुँचने में हमें लगभग दो घंटे का समय लगा । हमारे साथ के कुछ लोग पीछे रहा गये थे उनकी इंतज़ार में क़रीब एक घंटे तक प्रतीक्षा करनी पड़ी ।सभी के आने के बाद हम यमुना जी के उद्गम तक पहुँचे ।वहाँ पहुँचने पर देखा कि स्नान के लिये गर्म पानी का कुंड था ।महिला और पुरुषों के लिये अलग अलग कुण्ड बने हुए थे ।सभी श्रद्धा भाव से जैसे ही गर्म पानी के कुंड में स्नान के लिए अंदर गये तो पानी बहुत ही गर्म था ।इस गर्म कुंड को सूर्य कुंड के नाम से जानते हैं ।स्नान के बाद ऊपर मंदिर में पूजा की और यमुना देवी के दर्शन बड़े आराम से किए ।पास ही हनुमान मंदिर है जिसके भी सभी ने दर्शन किए ।
मंदिर दर्शन के बाद सभी ने भोजन किया जो कि हम साथ ही पैक करके लाये थे ।अब वापसी की तैयारी थी ।हमारे घोड़े तैयार थे ।अब नीचे की तरफ़ उतरने में कुछ परेशानी का सामना करना पड़ता है ।क्योंकि अब सीढ़ियों से नीचे की ओर घोड़ों पर जाना था ।नीचे की तरफ़ घोड़ों पर बैठ कर उतरना बड़ा ही कठिन कार्य है । जैसे ही घोड़ा एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी पर उतरता है तो ऐसा लगता है जैसे हम नीचे ही गिर जाएँगें । घोड़े के नीचे की सीढ़ी पर पैर रखते ही एक झटका कमर तक लगा और साथ ही इस झटके के साथ कब हम सशरीर नीचे आ जायें यह डर भी मन में बना रहता है।लेकिन घोड़े के मालिक ने नीचे उतरते समय की सही तकनीक नेम बताई कि शरीर का वजन दोनों पैरों पर डालकर पैर सीधे रखो और शरीर पीछे की ओर झुकाओ तो परेशानी नहीं आएगी । बाद में तो हमने वैसे ही करने की कोशिश की जिससे थोड़ा राहत भी रही और शरीर का संतुलन भी बना रहता है ।लेकिन फिर भी स्थिति ख़तरनाक ही थी ।श्रीमती जी के घुटने में तो एक स्थान पर घोड़े के नीचे उतरते समय चोट भी लग गई थी क्योंकि घोड़ा एक तरफ़ को कुछ अधिक ही मड गया था और वहाँ किनारे पर एक खम्भा था जिससे घुटना टकरा गया ।उसके बाद एक साथ कई घूम वाली सीढ़ियों पर हम घोड़े से उतर कर पैदल ही नीचे की तरफ़ उतारने लगे लगभग एक किलोमीटर नीची आने के बाद समतल आने पर एक पुल से हम वापस घोड़ोंपर सवार हो गये ।हमारे साथ अन्य भी इस स्थान पर घोड़ों से नीचे उतर कर पैदल ही चल रहे थे । संभवतः सभी स्थिति हमारे जैसी ही थी ।
नीचे आने बाद देखा की हमारे साथ के कुछ लोग जो पिट्ठू ( बास्केट) में आये थे वे अभी तक नहीं पहुँचे थे इसलिए उनके लिए लगभग आधा घंटा प्रतीक्षा की ,और उनके आने के बाद हम सभी बस द्वारा वापस खरादी के लिये रवाना हो गये ।वापस आकर सभी चाय चाय और रात्रि भोजन के बाद कुछ समय अपने अनुभव एक दूसरे को सुनाते रहे और रात्रि विश्राम के लिए चले गये ।
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