दार्जिलिंग की प्रथम सुबह
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सुबह तीन बजे अलार्म बोल गया साढ़े तीन बजे ड्राइवर का भी फ़ोन आ गया । हम भी चार बजे होटल के बाहर आ गये और टाइगरहिल के लिए रवाना हुए तो देखा की हम ही नहीं बहुत सी गाड़ियाँ एक के पीछे एक टाइगर हिल के लिए रवाना हो रही थी और बीच बीचमें जाम जैसा भी लगाने लगा था ।
हम पाँच बजे वहाँ पहुँच गये थे । काफ़ी अंधेरा था । लेकिन गाड़ी पार्किंग की जगह आराम से मिल जाये इसलिए जल्दी आना होता है ।सुबह का तापमान छ डिग्री था । सूर्योदय में अभी एक घंटे से भी अधिक का समय था तो हम कार में ही रहे और वहीं कॉफ़ी का आनंदलिया । 5:45am पर हम कार से निकल कर सनराइज पॉइंट पर पहुँचे । वहाँ काफ़ी लोग पहले से ही अपने मोबाइल केमरे लेकरतैयार थे । सूर्यदेव की झलक शुरू होते ही सभी के केमरे एक एक पल को क़ैद करने में लगे थे हल्के लाली लिए आकाश की पर्तों कोचीरते हुए चमकीले सा दिखाने वाला एक बिंदु धीरे धीरे आकार लेने लगा और एक लाल गोले की तरह दिखते दिखते प्रकाशमान होनेलगा ।
एक तरफ़ सूर्य देव प्रकट हो रहे थे तो दूसरी तरफ़ उसके विपरीत दिशा में कंचनजंघा पर्वत की चोटियाँ जो बर्फ से ढ़की थी चमकने लगगई । ऐसा लग रहा था जैसे सूर्य के प्रकाश में स्नान कर कंचनजंघा पर्वत दर्शन के लिए तैयार हो रहा है । जैसे जैसे सूर्य का प्रकाश बढ़रहा था वैसे वैसे कंचनजंघा की चमक बढ़ रही थी । यहाँ से एवरेस्ट भी दिखाता है लेकिन आज नहीं दिख रहा था शायद मौसम केकारण ।
टाइगर हिल से वापसी में पाँच किलोमीटर तक जाम लगा रहा और एक घंटे का समय वापस मुख्य सड़क तक लग गया ।यहाँ पर बोद्धधर्म के अनुयायी अधिक है । सुबह एक बोद्ध मोनेस्ट्री में होते हुए हम गोरखा मेमोरियल पार्क में गोरखा शहीद स्तंभ में भी रुके और प्रातःनो बजे के पूर्व वापस होटल आ गये अब यहाँ नाश्ते के बाद दूसरे दौर का ट्रिप दस बजे शुरू हो गया ।यहाँ एक बहुत ऊँचाई पर जापानीमंदिर है । स्वर्ण मंडित विशाल बोद्ध की मूर्ति जो दूर से बड़ी सुंदर लग रही थी ।गोला कार में बोद्ध के जीवन के अंशों के चित्र अपने आपमें बोद्ध की पूरी कहानी कह रहे थे ।बड़ा ही शांत स्थान है ।वहाँ से जू, और पर्वतारोहण ट्रेनिंग सेंटर और संग्रहालय भी गए । चायबागानों में वहाँ की वेशभूषा में काफ़ी देर तक फ़ोटो शूट भी किया । वहाँ की लोकल चाय का आनंद लिया ।
लेकिन इन सबसे अलग था तिब्बती शरणार्थी कैंप , जहाँ आज भी वर्षों पहले भारत आये तिब्बत के शरणार्थी रह रहे थे । उनसे बातकरने पर मालूम हुआ कि उनकी पीढ़िया बदल गई । नई पीढ़ी के अधिकांश युवा भारतीय सेना में हैं। महिलायें यहीं रहा कर गर्म कपड़ेबुनाई , कताई, क़ालीन, शोल तथा अन्य सामान बनाती हैं ।कुछ महिलायें तो बहुत ही बूढ़ी थी । कोई सूत बना रहा था तो कोई क़ालीनकी बुनाई बड़े ही तल्लीनता से कर रही थी ।एक महिला ने बताया की यहाँ का जीवन पूर्णत: सेना की तरह अनुशासित है ।सुबह पूजा , प्रार्थना , मीटिंग, भोजन के लिए घंटी बजाती है उसी के अनुसार कार्य करना होता है । पहले भोजन बना हुआ मिलता था लेकिन अबबनाने वाले या कुछ की मृत्यु हो गई या कुछ बहुत ही बूढ़ी हैं। अत: अब रोज राशन मिलता है भोजन सभी अपने आवास पर बनाते हैं।उनके बच्चों के लिए भोजन आवास ,पढ़ाई की सभी व्यस्था तत्कालीन सरकार ने की थी ।सभी आज अपने पैरों पर खड़े थे लेकिनसरकारी सहयोग अभी भी जारी है । सभी संतुष्ट भी हैं।
आज का भ्रमण पूरा करके हम साढ़े तीन बजे तक वापस होटल आ गए । दार्जिलिंग बड़ा ही भीड़ भाड़ वाला शहर है ।जो सुबह जल्दीजागता है और जल्दी सो जाता है क्योंकि शाम को पाँच बजे ही अंधेरा देखकर लगता है जैसे रात के आठ बज गए हों । अब कल सुबहसे सिक्किम की यात्रा के लिए दूसरी कार आएगी ।
डा योगेन्द्र मणि कौशिक
कोटा
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