Saturday, 6 May 2023
प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका)4
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(4) ट्यूलिप फेस्टीवल
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शनिवार 29 अप्रैल को ट्यूलि फ़ेस्टिवल जाने का कार्यक्रम बनाया गया । एक दिन पूर्व वहाँ के टिकिट बुक करा लिए थे । सुबह नो बजे रवाना होने का निश्चय हुआ । हम सभी ,बेटा गगन ,बहु शिवानी और हम दोनों सुबह साढ़े नो बजे घर से रवाना हो गये।लगभग साठ मील की दूरी पर हमें जाना था जिसमें लगभग एक से डेढ़ घण्टे के समय का अनुमान था ।आज कार की ड्राइवर सीट पर बहु शिवानी बैठी थी ।यह कार अति आधुनिक तकनीक और सेल्फ ड्राइविंग सिस्टम से युक्त है ।बैट्री से चलाने वाली इस टेस्ला कार में बड़ा सा टीवी स्क्रीन लगा है जिससे कार कंट्रोल की जा सकती है ।इसमें मार्ग निर्धारित करने पर यह स्वयं निश्चित स्थान पर पहुँचा सकती है।ऑटो मूड पर चलाने पर यह आवश्यकता अनुसार ट्रेफ़िक में स्वयं कार गति कम या अधिक कर सकती है और चलते चलते लाइन बदल सकती ।
हम यहाँ आए तो देखा था कि सभी सड़कें ख़ाली थी । ट्रेफ़िक बहुत कम था ।लेकिन आज शहर से निकलते ही सड़कों पर बहुत भीड़ थी ।लगभग ट्रेफ़िक जाम जैसी स्थिति थी ।पूरे रास्ते ट्रेफ़िक की रफ़्तार बहुत ही धीमी रही ।जिसके कारण डेढ़ घंटे का रास्ता लगभग चार घंटे में तय हुआ ।रास्ते में एक नदी के किनारे कुछ रेस्टोरेंट थे ।जिनमें एक इण्डियन रेस्टोरेंट भी था जिसमें सभी तरह का भारतीय खाना उपलब्ध था ।रेस्टोरेंट के काउंटर पर दो भारतीय महिलायें ही थी ।जो कि हिन्दी में बात कर रही थी ।वहाँ बैठे अधिकांश ग्राहक भारतीय थे ।हमने वहीं पर भोजन किया और आगे के लिए रवाना हो गये । ट्यूलिप फेस्टीवल पार्क के नज़दीक पहुँचे तो वहाँ लगभग दो किलोमीटर तक लम्बी गाड़ियों की कतार लगी थी ।जो बहुत धीरे धीरे आगे खिसक रही थी ।लेकिन यहाँ अच्छी बात यह थी कि कोई भी लाइन तोड़ कर इधर उधर से घुस कर आगे बढ़ने की कोशिश नहीं कर रहा था । जबकि आधी सड़क जो वापसी के लिए थी पूरी तरह से ख़ाली थी ।ट्रेफ़िक व्यवस्था के लिए कोई पुलिस भी नहीं थी ,फिर भी सभी अनुशासित ढंग से आगे बढ़ रहे थे।जिसे देख कर लगा कि भारत में ऐसी स्थिति में जरा सी भी जगह मिलते ही तुरन्त गाड़ी वहाँ घुसाने की सभी को जल्दी रहती है ,जिससे पूरा ट्रेफ़िक ही जाम हो जाता है ।निश्चित स्थान पर कार पार्क करने बाद गार्डन में जाने के लिए सभी अपने आप ही लाइन में चलने लगे ।लेकिन हम भारतीय परम्परा के अनुसार लाइन का ध्यान नहीं रखकर आगे बढ़ने लगे ,यह सोच कर कि शीघ्र अन्दर पहुँच जाएँगे परन्तु तभी गगन ने कहा कि लाइन में ही चलें।हमने तुरन्त गलती सुधारी और लाइन में चलने लगे।
ट्यूलिप पार्क में अंदर प्रवेश करते ही चारों ओर रंगबिरंगी फूलों की चादर बिछी थी ।विविध रंगो के फूल यहाँ दूर तक फैले थे ।कहीं लाल रंगों की कतार थी तो कहीं पीले,सफ़ेद ,नीले ,गुलाबी रंग के फूल लम्बी -लम्बी दूरी तक कतारों में फैले थे ।फूलों की चादर के पार बहुत दूर ऊँचे -ऊँचे बर्फ से ढके हुए पहाड़ नज़र आ रहे थे ।दूर से देखने पर लग रहा था जैसे प्रकृति ने कई रंगो की बहुत बड़ी चादर बिछाई है ।लाल ,सफ़ेद ,पीले, नीले ,गुलाबी रंगों की की धारियाँ इस चादर में दूर तक नज़र आ रही थी ।संभवतः लाखों की संख्या में फूल चारों ओर फैले थे । इतने रंगों के ट्यूलिप के फूल मैंने पहली बार देखे थे ।जिन्हें देखने लिए दूर दूर से लोग आये थे ।यहाँ लगभग एक घंटे की दूरी पर ,पास ही कनाड़ा बॉर्डर है कुछ लोग वहाँ से भी आये थे । सभी अपने अपने मोबाइल और केमरे से इन फूलों की छवि को क़ैद करने में लगे थे ।यह फूल कुछ कुछ गुलाब के फूल की तरह ही लगता है लेकिन इसमें गुलाब की तरह सुगंध नहीं होती ।गुलाब के कुछ फूलों की सुगंध का अहसास बहुत दूर तक होता है लेकिन यहाँ इतने फूलों के बाद भी ख़ुशबू का अहसास नहीं हो रहा था ।
यह गार्डन एक माह से सभी के लिए खुला था और अभी केवल एक सप्ताह ही ओर खुलने वाला था । यह अंतिम सप्ताह होने के कारण भी कुछ अधिक भीड़ यहाँ पर थी ।यहाँ पर ट्यूलिप के तरह तरह के पौधे भी उपलब्ध थे ।बहुत से लोगों ने ये पौधे अपने घरों के लिए यहाँ से लिए भी थे ।यहाँ पर बैठने और प्रकृति को निहारने के लिए हरि भारी घास का पार्क और बैठानी की व्यवस्था के साथ ख़ान पान के लिए रेस्टोरेंट भी थे ।लेकिन हमने देखा कि रेस्टोरेंट में भी स्व अनुशासित लाइन लगी थी ।लाइन काफ़ी लम्बी थी परन्तु सभी बड़े आराम से बिना किसी जल्दीबाज़ी के खड़े थे ।हर जगह बिना किसी निर्देश के लोग स्वयं ही पंक्तिबद्ध हो जाते हैं,यह बात वास्तव में बहुत अच्छी लगी । लाइन में लगना उनके लिए एक नियमित प्रक्रिया है लेकिन भारत में हम लाइन में खड़े होने को अपनी बेज्जती समझते हैं । हमें लगता है कि हम यदि प्रतिष्ठित संपन्न व्यक्ति हैं तो कहीं भी बिना किसी लाइन में लगे वरीयता प्राप्त कर आगे बढ़ सकते हैं।ट्रेफ़िक में हों या किसी रेस्टोरेंट या किसी भी जगह हों यह लोग बिना किसी निर्देश के स्वयं लाइन में खड़े हो कर आराम से अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं जो की एक अच्छी बात है ।
ट्यूलिप गार्डन से बाहर निकले तो लगभग पाँच बज गये थे । अब हम वापस घर की और रवाना हो गए ।वापसी में हमारे देखा कि अभी भी बाहर बहुत लंबी लाइन कारों की लगी थी ,गार्डन में अपनी बारी आने प्रतीक्षा में ।यह लाइन इतनी लम्बी थी समाप्त ही नहीं हो रही थी ।हमारे नोट किया कि लगभग पाँच किलोमीटर तक लोग अपनी कार के साथ इंतज़ार में खड़े थे ।इतनी लंबी लाइन होने पर भी कोई ट्रेफ़िक पुलिस नहीं, कहीं कोई स्वयं सेवक नहीं ,फिर भी वापसी के लिए ख़ाली सड़क पर से कोई भी व्यक्ति लाइन तोड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश नहीं कर रहा था जो वास्तव में प्रसंशनीय है ।यदि इतना धेर्य हममें आ जाये तो मंदिरों और मेलों में होने वाली भगदड़ में लोगों के कुचले जाने की घटनायें होनी ही बंद हो जायें ।इतनी भीड़ होने के बाद भी मुझे कहीं भी कोई पुलिस वाला नज़र नहीं आया ।
वापसी के समय भी ट्रेफ़िक काफ़ी था ।फिर भी बिना रुके ही हमारी कार आगे बढ़ती रही । रास्ते में ही एक स्थान पर मार्केट था जहाँ कुछ ख़रीदारी की और एक इंडियन होटल में ही भारतीय ख़ाना खाया और लगभग रात्रि के दस बजे हम घर पहुँच गए ।यहाँ एक विशेष बात ओर रही ,यह कि यहाँ पर सुबह छ: बजे ही सूर्य देव प्रकट हो जाते हैं लेकिन फिर लगभग साढ़े आठ बजे तक जाने का नाम नहीं लेते ।लगभग चौदह घंटे से भी अधिक समय तक सूर्य का प्रकाश रहता है । हालाँकि यहाँ सिएटल में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है ,इसलिए सूर्य के अच्छी तरह दर्शन कम हो पाते हैं फिर भी अभी गर्मियों में दिन काफ़ी बड़ा होता है ।गर्मियों से मेरा तात्पर्य मार्च अप्रैल से जून जुलाई से है ।क्योंकि यहाँ अभी भी तापमान भारत की सर्दियों वाला 8-16 डिग्री सेल्सियस ही है जबकि भारत में इन दिनों 45 के भी ऊपर पहुँच जाता है ।
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