Friday, 19 May 2023

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका) 6

(6 ) रैटलस्नेक हाइक (Rattlesnake ridge trail ) ———————————————————————————
सिएटल और बेलेव्यू के आसपास बहुत सी झीलें और समुद्री तट हैं ।यहाँ बड़ी -बड़ी बिल्डिंग तो हैं ही साथ ही सुबह शाम घूमने के लिए बहुत से पार्क भी हैं ।यहाँ अधिकतर लोग आई टी कंपनियों से जुड़े हैं । पाँच दिन के सप्ताह के बाद सप्ताह में दो दिन सभी के आराम के होते हैं ।लेकिन कोई घर पर बैठ कर आराम नहीं करता है ।सभी शुक्रवार से ही बाहर घूमने के लिए कोई न कोई कार्यक्रम बनाते रहते हैं ।हर कोई प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेने के लिए अपने अपने वाहन लेकर निकल जाता है ।जब हम यहाँ गत माह आए तो कई दिन तक बारिश का मौसम रहा ।धूप कम ही थी ,लेकिन धूप निकलने के बाद सभी धूप का आनंद लेने अपने अपने घरों से निकल पड़ते हैं। एक दिन हम “अलकी बीच “पर गए तो वहाँ देख की बहुत से लोग आराम से समुद्र के किनारे रेत में लेट कर धूप का आनंद ले रहे रहे हैं ।हमें जानकारी मिली कि कई माह से सर्दी के कारण सूर्य देव के दर्शन ही नहीं हो रहे थे ।यहाँ सूर्य देव की कृपा कम होने के कारण जब भी धूप निकलती है तुरंत सब सूर्य देव के इस प्रसाद को अपनी झोलियों में अच्छी तरह से भर लेना चाहते हैं।शायद इसी कारण ,जिसे जो भी जगह मिलती है धूप प्राप्त करने की वहीं पहुँच जाता है । हम यूँ तो प्रात: भ्रमण के समय भी कई बार गूगल मैप से ,कोई भी पार्क जो कि डेढ़ दो किलोमीटर की सीमा में होता ,पहुँच जाते हैं।एक दिन clyde beach park पहुँच गये जो लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर था ।छोटा सा beach है,बड़ा ही सुंदर और व्यवस्थित छोटा सा पार्क है कुछ छोटे जहाज़ भी खड़े थे और मोटर बोट भी वहा थी ।एक दिन हमें मालूम हुआ कि पास ही में एक अन्य meydenbauer bay park भी है दूसरे ही दिन उसकी खोज में शाम के समय हम निकले ।हम लगभग समीप ही पहुँच गए थे कि श्रीमती जी वापस घर चलाने काआग्रह किया क्योंकि सूर्यास्त होने वाला था ,सड़क भी सुनसान थी ।आवासीय घर ज़रूर बने थे लेकिन बिल्कुल शान्त वातावरण देख कर हम वापस घर की ओर लौट चले ।इस समय शाम के लगभग आठ बज गए थे ।आप सोचेंगे कि आठ बजे तो रात्रि हो जाती है लेकिन यहाँ पर सूर्यास्त इन दिनों लगभग साढ़े आठ के बाद ही होता है।जबकि सूर्योदय प्रातःलगभग साढ़े पाँच बजे तक हो जाता है।आठ बजे तक भी काफ़ी प्रकाश रहता है ।लेकिन हम दूसरे दिन ही प्रातः वापस मेडेनबाउर बे पार्क की खोज कर वहाँ पहुँच ही गए ।यहाँ paark तो सुंदर था ही साथ ही आसपास का दृश्य भी काफ़ी मन भावन था ।यहाँ कई बड़े बड़े जहाज़ और मोटर बोट थी । मैंने देखा कि यहाँ प्राय: सभी बीच पर छोटी बड़ी नाव ,जहाज़ , मोटरबोट मिल जायेंगी।सिएटल के एक तट पर तो हमनें सी प्लेन को भी पानी में उतरते हुए देखा ।कुछ लोग अपनी कार के ऊपर बोट रखकर समुंदर किनारे घूमने जाते हैं और फिर वहाँ पर अपनी बोट से समुंदर की लहरों का आनंद लेते हैं ।एक दिन सुम्मामिश पार्क भी गए ,जहाँ पर कुछ देर रनिंग भी ।यहाँ भी झील का किनारा था ,काफ़ी बड़ा पार्क और बच्चों के लिए अलग पार्क जिसमें तरह तरह के झूले और साथ में एक अलग तरह का वाद्य यंत्र जो कुछ जलतरंग के जैसा था लेकिन इसमें अलग- अलग लंबाई के कुछ पाइप लगे थे । जिन्हें वहाँ रखी दो छड़ियों से बजाने पर सरगम निकलती थी ।श्रीमती जी ने बजाया भी क्योंकि उन्हें ही वाद्य यंत्र बजाने का ज्ञान है । गत रविवार14 may 2023 को प्रातःअचानक कार्यक्रम बना कि नॉर्थ बेंड में रैटलस्नेक हाइक के लिए चलना है।छात्र जीवन में में स्काउट रहा हूँ इसलिए मैं छात्र जीवन की हाइक के विषय से तो परिचित था ।मैंने पैदल हाइक और साइकल हाइक भी हैं।एक बार राष्ट्रपति पुरस्कार ट्रेनिंग कैम्प हल्द्वानी में था तब नैनीताल से हल्द्वानी तक की पैदल हाइक की थी लगभग चालीस किलोमीटर की यह हाइक थी जो कि सन् 1974 में की थी ।1975 में मैंने राष्ट्रपति पुरस्कार भी प्राप्त किया।लेकिन अब 49 वर्ष बाद एक बार फिर से पैदल हाइक का अनुभव मिल पाएगा कभी नहीं सोचा था ।स्काउटिंग की हाइक और इस हाइक में मुख्य अंतर यह था कि स्काउट में कहाँ जाना है पहले से कोई मार्ग निश्चित नहीं होता।इसमें मार्ग में मिलने वाले दिशा निर्देशों के अनुसार आपको अपने लक्ष्य तक जाना है ,परंतु इस हाइक में मार्ग और लक्ष्य दोनों ही हमें पूर्व में ही ज्ञात हैं।फिर भी नई जिज्ञासा लिए हम अपनी कार से रवाना हो गए रैटलस्नेक लेक की तरफ़ ।आज अच्छी धूप थी,ठंड भी नहीं थी ।सड़कों पर कारें पूरे रास्ते दौड़ लगाती मिली ।दूर ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ ,जो हरियाली से भरपूर थी ।बहुत दूर की कुछ पहाड़ियाँ जो बर्फ से ढकी थी लगता था जैसे कि पीछे से ऊपर उठकर झांकने की कोशिश कर रही हैं । हम लगभग प्रातःआठ बजे घर से रवाना गए थे छब्बीस मील की दूरी तय करने में आधा घंटे का समय लगा ।वहाँ जब हम पहुँचे, तो उससे पहले ही बड़ी संख्या में वाहन खड़े थे ।पार्किंग के लिए निश्चित स्थान लगभग भरा हुआ था ,इसलिए कार खड़ी करने के लिये हमें जगह ढूँढने में कुछ समय अवश्य लगा लेकिन फिर भी जगह मिल ही गई ।चारों ओर ऊँची -ऊँची पहाड़ियों से घिरी एक स्वच्छ जल की झील दूर से ही दिखाई दे रही थी ।सभी पहाड़ियों पर ऊँचे-ऊँचे चीड़ के पेड़ों के साथ विविध तरह के अन्य पेड़ पौधों से हर तरफ़ हरियाली ही हरियाली थी । अब पहाड़ी पर ऊपर जाने की बारी थी ।ऊपर का रास्ता प्रारंभ होने से पूर्व बोर्ड पर कुछ जानकारियाँ लिखी थी ।जिससे मालूम हुआ कि दो मील पर प्रथम पड़ाव ,चार पर दूसरा और तीसरा आठ मील पर है ।हमारा लक्ष्य आज केवल प्रथम पड़ाव तक पहुँचाना ही था ।जिसकी ऊँचाई ,प्राम्भिक स्थान से लगभग एक हज़ार फीट से कुछ अधिक थी ।चढ़ाई प्रारंभ करने से पूर्व पानी की बोतलें और कुछ फल ,हमने बैग में रख कर पीठ पर लाद लिया था ।क्योंकि रास्ते में कहीं भी पीने के पानी की उपलब्धता नहीं थी ।एक पगडंडी ऊपर जाने के लिए बनी थी ।जिसकी चौड़ाई इतनी ही कि लोग आराम से आ जा सकें ।कहीं घुमाव दार रास्ता तो कहीं एकदम सीधी चढ़ाई ,तो कहीं कहीं समतल पगडंडी भी मिली । कुछ बच्चे और जवान दौड़ -दौड़ कर भी चढ़ने की कोशिश में थे ,लेकिन थोड़ी ही देर में साँस फूलने पर उन्हें बार बार रुकना भी पड़ रहा था ।यहाँ हाइक पर आने वाले हर तीसरे व्यक्ति के साथ कुत्ता भी था ।कोई बहुत छोटा तो बहुत बड़े आकार का ,अनेकों नस्ल कुत्ते आपको यहाँ पर देखने को मिले,कुछ के साथ तो दो -दो कुत्ते भी थे ।जिसे देख कर स्पष्ट था कि यहाँ के लोग कुत्ता प्रिय हैं।मैं सुबह शाम जब भी घर से निकलता हूँ तो देखता हूँ कि अधिकांश लोग अपने साथ अलग अलग नस्ल कुत्ते लेकर घूमते रहते हैं ।लेकिन इतने पालतू कुत्ते होने पर भी उनका मल सड़क के किनारे या पार्क में आपको पड़ा हुआ नहीं मिलेगा।क्योंकि जगह -जगह इसके लिए प्लास्टिक की थैलियों के बॉक्स लगे हैंऔर पात्र भी रखे मिलेंगे जिससे यदि कोई कुत्ता गंदगी करता है तो मलिक तुरंत उसे प्लास्टिक की थैली में ले कर वहाँ रखे पात्र में डाल देता है । सभी के साथ हम भी धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे । रास्ते में प्रकृति का आनंद लेते हुए हम लगभग एक डेढ़ घंटे में ऊपर लक्ष्य तक पहुँच ही गए । रास्ते में रुक कर कुछ क्षण आराम भी किया,पानी भी पीते रहे क्योंकि पानी से कुछ राहत भी मिलती रहती है और स्फूर्ति के साथ ,ऑक्सीजन की पूर्ति भी होती रहती है ।एक हज़ार फीट चढ़ने के बाद हम पहले पड़ाव की ,एक चट्टान पर पहुँच कर नीचे झांक कर देखा तो साफ़ नीले जल की झील यहाँ से बड़ी ही अद्भुत और सुंदर दिखाई दे रही थी ।झील के उस पार ऊँचे -ऊँचे हरे भरे पर्वतों की श्रृंखला के भी उस पार बर्फ से ढकी श्वेत चादर ओढ़े पर्वतीय श्रृंखला भी यहाँ से बहुत मनमोहक दिखाई दे रही थी ।हम वहाँ बैठ कर इन दृश्यों को देखने लगे,तो मन था बस दिन भर यहीं इस दृश्य को देखते रहें।लेकिन यह तो संभव भी नहीं था।अत: कुछ पल वहाँ रुकने के बाद हम वापस नीचे कीओर चल दिये ।वापसी में ढलान था इसलिए समय कम ही लगा ।लेकिन वापसी में एक महिला जिसके साथ एक छोटा कुत्ता भी था ,ढलान पर पैर फिसलने से उस महिला को घुटने में थोड़ी चोट भी लग गई थी ।इस दुर्घटना के बाद हम भी थोड़ा संभल कर चलने लगे और सुरक्षित नीचे तक पहुँच गए ।कुछ देर अब झील के किनारे बैठ कर आराम किया और फिर कार से वापस घर की और रवाना हो गए । रास्ते में कार चार्ज करनी थी ,क्योंकि बेटे गगन की कार इलेक्ट्रिक कार थी ।यहाँ पर हमने देखा कि पेट्रोल पंप हो या कार चार्जिंग पॉइंट ,कहीं भी आपको कोई कर्मचारी नहीं मिलेगा ।आप स्वयं मशीन पर जायें,कार्ड स्कैन करें ,पेट्रोल भरें या कार चार्ज करें और कार्ड से मीटर की रीडिंग के अनुसार भुगतान कर दें।कार चार्जिंग पॉइंट के पास ही स्टोर से कुछ घरेलू समान लिया ,जब तक कार भी चार्ज हो गई ,फिर रास्ते से लंच एक रेस्टोरेंट से लेते हुए लगभग दोपहर डेढ़ बजे घर पहुँच गए ।

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