Thursday 19 October 2023

चार धाम यात्रा द्वितीय धाम गंगोत्री (3)

गंगोत्री यात्रा (द्वितीय धाम ) 3 ——————————— यमनोत्री की यात्रा के बाद अब दूसरे धाम के लिये यात्रा की तैयारी शुरू हुई ।अब हमें गंगोत्री के लिए जाना था ।इसके लिए हम ख़राबी स्थान का नाम जहाँ हम ठहरे थे )से उत्तर काशी के लिये रवाना हो गये ।प्रातःयहाँ से रवाना होने पर बीच में एक स्थान शिव गुफा है ।ख़राबी से शिव गुफा लगभग पचास किलोमीटर है वहाँ हम दोपहर को पहुँचे । यह एक प्राकृतिक गुफा है उस स्थान पर रुकते हुए हमें उत्तर काशी जाना था ।उत्तर काशी में रात्रि विश्राम करने के बाद हमें दूसरे दिन गंगोत्री दर्शन के लिए रवाना होना था ।गंगोत्री से गंगा का उद्गम माना गया है । ख़राबी से उत्तरकाशी दूरी लगभग दो सो किलोमीटर है लेकिन इसमें सात आठ घंटे का समय लग जाता है । पहाड़ी रास्ता और क्षतिग्रस्त सड़क होने कारण समय अधिक लगता है । शिव गुफा पर हमें लगभग दो बज गये थे।गुफा के अंदर जाने का रास्ता बहुत ही छोटा है । जिससे हम अंदर गये तो देखा कि गुफा में चारों और पानी टपक रहा था । एक तरफ़ एक कुण्ड जैसे स्थान था जिसमें निरंतर पानी आ रहा था ।वहाँ उपस्थित पंडित जी ने बताया कि यहाँ से गंगा निकल रही है । गुफा में ऊपर तरफ़ अनेक चित्र प्राकृतिक रूप से उभरे हुए थे ।कोई मगर मच्छ का आकार था ,तो कोईशेष नाग की आकृति है ।कहीं गणेश की तो कही पार्वती की आकृति उभरी हुई है ।बीच में एक काले पत्थर की बड़ी शीला जो शिवलिंग का स्वरूप है उस पर ॐ की आकृतियाँ उभरी हुई है ।इस शिव गुफा का उद्गम 23 मई 1999 में ही हुआ या यह कहें की इस समय ही किसी ने इस स्थान को देखा होगा और इसके बाहर माँ पार्वती का मंदिर भी उसी समय बनाया गया ।शिव रात्रि के दिन आजकल यहाँ मेला भी लगता है और इसके उद्गम दिवस को भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । यह उत्तर काशी यमुनोत्री मुख्य सड़क पर ही है लेकिन इस गुफा तक पहुँचने के लिये लगभग 125 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।अब यहाँ से हम उत्तरकाशी की ओर रवाना हो गये ।शाम को पाँच बजे हम उत्तर काशी पहुँचे और पहुँचते ही वहाँ काशी विश्वनाथ के मंदिर में दर्शन किए । यह भी एक पौराणिक मंदिर है । इसमें शक्ति का प्रतीक एक विशाल त्रिशूल है ।कुछ लोगों ने वहाँ अपनी मनोकामनाओं के लिए चुनरियाँ बांध रखी थी ।विश्वनाथ के दर्शन के बाद हम अपने रात्रि विश्राम स्थल की ओर हो गये ।यहाँ शिव धाम होटल में हमारा रात्रि विश्राम था । दूसरे दिन 13 /10 को हमें प्रातः गंगोत्री दर्शन के लिए जाना था ।प्रातः पाँच बजे ही हम गंगोत्री के लिए रवाना हो गये । रास्ते में एक स्थान पर बड़ा ही मनोरम झरना बह रहा था वहीं पर हमारे टूर ऑपरेटर ने गरमा गर्म पोहे और चाय का नाश्ता कराया ।केवल आधा घंटे में ही हमारा नाश्ता तैयारियों गया था । भोजन बनाने वाले हमारे साथ ही अपनी रसोई संपूर्ण सामान लेकर साथ ही थे ।वैसे संपूर्ण रास्ते में अनेकों झरनों से साफ़ और बहुत ही ठंडा पानी बह रहा था।कहीं भी मिनरल बोतल के पानी आवश्यकता नहीं थी ।इस प्राकृतिक पानी के सामने पैक बोतलों का पानी व्यर्थ है ।
हम दोपहर लगभग बारह बजे गंगोत्री पहुँच गये थे।गंगा के विषय में पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री राम चंद्र जी के पूर्वज राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसी मान्यता है कि देवी भागीरथी (गंगा)ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनों की आत्मिक शांति के लिए इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यहाँ शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है। इसके देखने से दैवी शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओ को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट दिया। जिससे माँ गंगा के वेग में कमी हुई। ।शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं।गंगोत्री से लगभग 18 किलोमीटरकी दूरी पर गोमुख है वास्तव में वह गंगा का उद्गम स्थान है ।गंगोत्री पर गंगा मंदिर भी है जो कि सफ़ेद संगमरमर का बना है यह गंगाजी मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। प्राचीन काल में यहां मंदिर नहीं था।गंगोत्री में सेमवाल पुजारियों के द्वारा गंगा माँ के साकार रूप यानी गंगा धारा की पूजा की जाती थी भागीरथी शिला के निकट एक मंच था जहां यात्रा के मौसम में तीन-चार महीनों के लिये देवी-देताओं की मूर्तियां रखी जाती थी इन मूर्तियों को मुखबा आदि गावों से लाया जाता था जिन्हें यात्रा मौसम के बाद फिर उन्हीं गांवों में लौटा दिया जाता था। गढ़वाल के गुरखा सेनापति अमर सिंह थापा[3] ने 18वीं सदी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण सेमवाल पुजारियों के निवेदन पर उसी जगह पर किया गया जहां भागीरथ ने तप किया था। माना जाता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में मंदिर की मरम्मत करवायी।प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन कपाट बंद हो जाते हैं ।
हम सभी गंगोत्री धाम पर पहुँच कर गंगा स्नान के लिए गये तो जैसे ही गंगा के पवित्र जल को छुआ तो बर्फीले पानी में स्नान करने का साहस धराशायी हो गया ।फिर भी हिम्मत करके जैसे तैसे सभी स्नान किया ।वास्तव में यहाँ गंगा स्नान करना बड़ी हिम्मत कि काम था ।सभी ने यहीं से गंगा जल भी अपने अपने पात्रों में भरा ।मान्यता है कि यहाँ से गङ्गा जल को लोटे में भरके लेटकर गंगा सागर में शिव अभिषेक करने पर ही ही चार धाम यात्रा पूर्ण मानी जाती है । हमने भी एक ताँबे के लोटे में गंगा जल लेकर पैक कर लिया और भविष्य की गंगासागर यात्रा की अग्रिम बुकिंग बिना तारीख़ के बुक कर ली ।यहाँ गंगा स्नान करने के बाद विधिवत वहाँ के एक पंडित जी से पूजन कराया ।गंगा माँ के मंदिर में दर्शन किए जो बड़ा ही मनमोहक था ।साथ में वहाँ स्थित गणेश मंदिर शिव मंदिर वि अन्य मंदिर में दर्शन करने के बाद अब वापस हम हमारे होटल गये । यहाँ से अब केदारनाथ यात्रा के लिए दूसरे दिन प्रातः रवाना होना है।

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