Monday, 15 May 2023

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका यात्रा) 5

 (5) स्नोक्वालिम पास (Snoqualmie pass ) और स्नोक्वालिम झरना (snoqualime fall)

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अमेरिका के इस वाशिंगटन राज्य के सिएटल शहर के आसपास का  यह क्षेत्र पहाड़ी क्षेत्र है ।यहाँ पर चारों ओरपहाड़ ,हरे भरे पेड़ और काफ़ी चौड़ी चौड़ी सड़कें हैं।अधिकतर स्थानों पर एकतरफ़ा मार्ग हैं।सड़के अच्छी औरएक तरफ़ा मार्ग होने से यहाँ  पर वहनों की गति काफ़ी अधिक रहती है  प्रायसाठ -सत्तर  मील प्रति घंटा कीरफ़्तार से वाहन सड़कों पर दौड़ते रहते है 

         आज मौसम बड़ा सुहावना हो रहा है  तारीख़ 6 मई 2023,कल से ही बारिश हो रही है ।हल्की हल्कीबारिश  में तापमान भी कम हो गया  आज सुबह स्नोक्वालिम पास (Snoqualmie pass ) और स्नोक्वालिमझरना (snoqualmie fall) जाने का कार्यक्रम बना ।वैसे बाहर हल्की बरसात हो रही थी  ठंड भी काफ़ीअधिक थी  लगभग :डिग्री तापमान था और स्नोक्वालिम पास (Snoqualmie pass ) का तापमान इंटरनेटपर देखने पर मालूम हुआ कि वहाँ का तापमान चार डिग्री सेल्सियस है ।इसलिए हम सभी ने सर्दी के बचाव केलिए अच्छी तरह से इंतज़ाम कर लिए थे ।आज हम जहाँ जा रहे थे वहाँ पर पहाड़ पर काफ़ी बर्फ थी 

घर से रवाना होने के समय बरसात हो रही थी जो काफ़ी धीमी धीमी थी ।पहाड़ी रास्ते में भी सड़कें काफ़ी चौड़ीथी इसलिए तेज रफ़्तार से प्रकृति का आनन्द लेते हुए हमारी कार भी आगे बढ़ रही थी ।यहाँ पर हमने देखा किप्रायसभी जगह दफ्तरों में शनिवार और रविवार का अवकाश रहता है इसलिए शुक्रवार शाम से ही लोग घरोंके बाहर अपनी - अपनी कारें लेकर घूमने  लिए निकल जाते हैं।इसलिए शुक्रवार शाम से ही बाहर घूमने जानेवाली कारों की संख्या सड़कों पर बढ़ जाती है ।सड़कों पर दौड़ती कारों को देखकर लगता है जैसे कि सभी कोदो दिन की आजादी मिली है और हर कोई इस आजादी का भरपूर उपयोग करना चाहता है।यहाँ के लोगों कामानना है कि इस तरह के बाहर भ्रमण से मानसिक तनाव ,जो कि लगातार पाँच दिन के निरंतर काम से होता है,कुछ राहत मिल जाती है और अगले सप्ताह फिर से एक नई ऊर्जा के साथ काम कियाज़ा सकता  ।जो किसही भी  है ।शारीरिक स्वस्थ के साथ ही मानसिक रूप सभी स्वस्थ होना आवश्यक है 

चारों तरफ़ फैली हरियाली का आनन्द लेते हुए हम आगे बढ़ रहे थे  बारिश भी कभी धीमी तो कभी तेज हो रहीथी  स्नोक्वालिम पास (Snoqualmie pass ) हमारे निवास से लगभग आधे घंटे की दूरी पर ही था  अर्थातलगभग पच्चीस मील की दूरी थी ।वहाँ पहुँचे तो बरसात लगभग बंद हो गई थी  हल्की हल्की फुआर अभी भीथी ।यहाँ पहुँचते ही पहले कुछ पेटपूजा करने का सभी को विचारआया ।क्योंकि घर से सभी बिना नाश्ता किएही रवाना हो गये थे ।यहाँ एक रेस्टोरेंट पैनकेक में हम पहुँचे ।अब प्रश्न था  क्या खाया जाए क्योंकि पाश्चात्यनाश्ते के नामों के विषय में हमारा ज्ञान शून्य था इसलिए बेटे और बहू  पर ही निर्णय छोड़ा गया कुछ भी ऐसामंगाओ जिसमें कोई भी नोन वेज  हो ।नाश्ते में यहाँ एक विशेष बात मैंने देखी कि यहाँ कॉफी फ़्री थी ,चाहेजितनी कॉफ़ी पिओ ।अब कुछ भी जब फ़्री है तो  हम भी भला क्यों चूकते ।कॉफ़ी प्रिय नहीं होते हुए भी हमनेदो फ़ुल कप कॉफ़ी पी ही ली ।यहाँ पर ब्लेक कॉफ़ी का  ही प्रचलन है जिसमें शक्कर भी नहीं होती ।लेकिनटेबल पर दूध और शक्कर के छोटे पाउच भी रखे थे।इसलिए मैंने पहले तो एक घूँट यह ब्लेक कॉफ़ी टेस्ट  कीलेकिन फिर दूध और शक्कर का उपयोग कराना ही उचित समझा लेकिन श्रीमती जी ने कॉफ़ी पीने का रिस्क हीनहीं लिया  उनका मानना है कि जिसमें कुछ स्वाद  नहीं उसे पीकर भला मुँह का स्वाद भी क्यों ख़राब करें।इसीलिए वे ब्लैक टी और ब्लैक कॉफ़ी के नाम से ही दूर रहती हैं।यहाँ का केक कुछ अलग ही तरह का था ।आकार और स्वाद दोनों में ही अन्य केक से भिन्न में यहाँ बहुत तरह के नाम वाले केक थे ।उन सब में वेज काचुनाव कर हमने लिया साथ कुछ अजीब से नाम के आहार भी मंगाए जो कि मेरे और श्रीमती  की समझ से बाहरथे ।कुल मिला कर नये तरह के नाश्ते का अनुभव अच्छा रहा  भरपेट नाश्ते के बाद अब दोपहर के भोजन कीआवश्यकता नहीं थी  हम जहाँ नाश्ता कर रहे थे वहीं पर कुछ बाइक सवार महिला - पुरुषों का ग्रुप भी आयाथा।जिसमें सभी उम्र के लोग थे  अधेड़ उम्र की महिलायें भी स्वयं की बाइक पर सवार थी ।सभी का एक जैसापहनावा देख कर महिला पुरुष में भेद करना मुश्किल था।

               नाश्ता करने के बाद वहाँ से बाहर निकलते ही कुछ दूर पर ही बर्फ से ढके पहाड़ शुरू हो गए थे ।ऊपरसे नीचे तक ,दूर दूर तक बर्फ ही बर्फ नज़र  रही थी ।सर्दियों में यहाँ पर बहुत बड़ी संख्या में लोग स्कीइंगकरने आते है ।हमने देखा कि यहाँ पर तार पर अनेकों ट्रॉलियाँ लटकी हुई हैं।जिसमें बैठ कर लोग ऊपर तहपहाड़ी पर जाते हैं और फिर वहाँ  स्कीइंग करते हुए ,बर्फ में फिसलते हुए वापस नीचे आते हैं।लेकिन अब वहाँके मौसम के हिसाब से गर्मियों में स्कीइंग बंद हो जाती है ।बर्फ के ऊँचे ऊँचे पर्वत अभी तक हमने केवल फ़िल्ममें ही देखे थे ।लेकिन आज साक्षात देखकर पहाड़ों की बर्फ का अनुभव भी किया 







घर से रवाना होते समय हमने वाटर प्रूफ पेंट और जेकेट ले ली थी और जूते भी ।उन्हें पहन कर बर्फ कीपहाड़ियों पर चढ़ने का हमने भी प्रयास किया ।कुछ दूर तक चढ़े भी  वास्तव में यहाँ एक अलग ही प्रकार काअनुभव था ।अभी बर्फ के पिघलने  का समय था  सर्दी के मौसम में जब बर्फ पड़ती है तो यह बहुत ही नर्म होतीहै ।बर्फ पर पैर रखते ही अंदर तक पैरे धंसने लगते हैं। लेकिन अभी यह बर्फ जमकर कुछ सख़्त हो गई थीजिससे ऊपर चढ़ने के लिये सावधानी से पैर जमाकर चलना पड़ रहा था क्योंकि फिसलने का डर भी हमें था फिर भी हमने अपनी क्षमता अनुसार ऊपर चढ़ने का प्रयास किया ही और बिना किसी दुर्घटना के वापस भी गए ।हमने देखा कि कुछ लोग इस बर्फ की पहाड़ी पर ऊपर की ओर चढ़ रहे थे लेकिन हमने अधिक ऊँचाई तकजाने का कोई जोखिम नहीं उठाया ।पास ही एक अन्य बर्फीली पहाड़ी पर भी हम पहुँचे ।यहाँ भी कुछ लोग हीथे  हमें बताया गया कि सर्दियों में जब बर्फ पड़ती है तो यहाँ पर  बड़ी संख्या में लोग आते है और स्कीइंग करतेहैं। पार्किंग में कार खड़ी करने की जगह भी बड़ी मुश्किल में मिलती है 

बर्फीली पहाड़ियों का आनंद लेने के बाद हम वहाँ से रवाना हो कर हम  स्नोक्वालिम झरना (snoqualime fall) पहुँचे  यहाँ काफ़ी संख्या में लोग पहले से ही मौजूद थे  अभी बारिश बंद हो चुकी थी लेकिन सूर्य देव केदर्शन अभी नहीं हो रहे थे ।कार पार्किंग में लगाई और हम अब चल दिये प्रकृति के एक अन्य नज़ारे को देखने केलिए।पार्किंग से निकल कर सड़क के ऊपर से एक पैदल पुल को पार करते हुए हम आगे बढ़े।

                 मैंने पुल से देखा तो नीचे रेलवे लाइन भी थी ।कुछ दूरी पर एक ट्रेन भी नज़र आई  पहले बार यहाँपर ट्रेन नज़र आई  वैसे यहाँ पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सेवा बहुत कम ही है  इसलिए लोग अपने निजी वाहन काउपयोग ही अधिक करते है।पेट्रोल कार के साथ ही यहाँ इलेक्ट्रिक कारों  भी चलन है ।जगह जगह कार चार्जके लिए चार्जिंग स्टेशन बने हैं। जिसपर स्वयं कार चार्ज करनी होती है  मानव शक्ति की कमी है जिससेमशीनी उपयोग की अधिकता है  कार चार्जिंग या पेट्रोल पंप पर आपको कोई कर्मचारी आपको नहीं मिलेगा ।आप स्वयं मशीन चालू करो कार चार्ज में लगाओ या पेट्रोल भरो और कार्ड या मोबाइल से भुगतान कर रवानाहो जाओ 

कुछ दूर चलने पर दूर  स्नोक्वालिम झरना (snoqualime fall) के समीप पहुँचे तो देखा कि बहुत ही ऊँचाई सेकाफ़ी गहराई तक गिरने वाले पानी की हल्की बौछारें दूर तक  रही थी और अपनी शीतलता का अहसास हमेंकरा रही थी ।प्रकृति का यह निराला स्वरूप था जिसके कारण ही लोग दूर दूर से यहाँ खिंचे चले आते हैं।नीचेझांक कर हमने देखा कि पानी काफ़ी गहराई तक जा रहा था।यहाँ सुरक्षा की दृष्टि से रेलिंग लगी थी ।इसनज़ारे को ओर समीप से देखने के लिए नीचे तक जाने का रास्ता एक पगडंडी के रूप में था  बहुत से लोग वहाँतक जा रहे थे  हम भी चल दिये ।नीचे पनबिजली का प्लांट भी लगा था  सुरक्षा व्यवस्था के लिए यहाँ भीरेलिंग लगे थे  पानी का बहुत तेज बहाव ,बहुत साफ़ निर्मल जल ,जिसमें गहराई तक पत्थर नज़र  रहे थे ।एक अद्भुत सुंदर नजारा यहाँ देखने को मिला ।जिसे हमने अपने मोबाइल के केमरे में क़ैद कर लिया था ।चारोंऔर पहाड़ियों से घिरे इस झरने से पानी के बहने की आवाज़ दूर तक जा रही थी  

             अब हमें वापस भी आना ही था ।इसलिए पुनकार में सवार होकर घर की ओर रवाना हो गए ।लौटतेसमय हमने रास्ते में बाहर ही एक भारतीय होटल में भोजन किया और लगभग रात को दस बजे घर पहुँचे।




Saturday, 6 May 2023

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका)4

——————————— (4) ट्यूलिप फेस्टीवल ———————————————————— शनिवार 29 अप्रैल को ट्यूलि फ़ेस्टिवल जाने का कार्यक्रम बनाया गया । एक दिन पूर्व वहाँ के टिकिट बुक करा लिए थे । सुबह नो बजे रवाना होने का निश्चय हुआ । हम सभी ,बेटा गगन ,बहु शिवानी और हम दोनों सुबह साढ़े नो बजे घर से रवाना हो गये।लगभग साठ मील की दूरी पर हमें जाना था जिसमें लगभग एक से डेढ़ घण्टे के समय का अनुमान था ।आज कार की ड्राइवर सीट पर बहु शिवानी बैठी थी ।यह कार अति आधुनिक तकनीक और सेल्फ ड्राइविंग सिस्टम से युक्त है ।बैट्री से चलाने वाली इस टेस्ला कार में बड़ा सा टीवी स्क्रीन लगा है जिससे कार कंट्रोल की जा सकती है ।इसमें मार्ग निर्धारित करने पर यह स्वयं निश्चित स्थान पर पहुँचा सकती है।ऑटो मूड पर चलाने पर यह आवश्यकता अनुसार ट्रेफ़िक में स्वयं कार गति कम या अधिक कर सकती है और चलते चलते लाइन बदल सकती । हम यहाँ आए तो देखा था कि सभी सड़कें ख़ाली थी । ट्रेफ़िक बहुत कम था ।लेकिन आज शहर से निकलते ही सड़कों पर बहुत भीड़ थी ।लगभग ट्रेफ़िक जाम जैसी स्थिति थी ।पूरे रास्ते ट्रेफ़िक की रफ़्तार बहुत ही धीमी रही ।जिसके कारण डेढ़ घंटे का रास्ता लगभग चार घंटे में तय हुआ ।रास्ते में एक नदी के किनारे कुछ रेस्टोरेंट थे ।जिनमें एक इण्डियन रेस्टोरेंट भी था जिसमें सभी तरह का भारतीय खाना उपलब्ध था ।रेस्टोरेंट के काउंटर पर दो भारतीय महिलायें ही थी ।जो कि हिन्दी में बात कर रही थी ।वहाँ बैठे अधिकांश ग्राहक भारतीय थे ।हमने वहीं पर भोजन किया और आगे के लिए रवाना हो गये । ट्यूलिप फेस्टीवल पार्क के नज़दीक पहुँचे तो वहाँ लगभग दो किलोमीटर तक लम्बी गाड़ियों की कतार लगी थी ।जो बहुत धीरे धीरे आगे खिसक रही थी ।लेकिन यहाँ अच्छी बात यह थी कि कोई भी लाइन तोड़ कर इधर उधर से घुस कर आगे बढ़ने की कोशिश नहीं कर रहा था । जबकि आधी सड़क जो वापसी के लिए थी पूरी तरह से ख़ाली थी ।ट्रेफ़िक व्यवस्था के लिए कोई पुलिस भी नहीं थी ,फिर भी सभी अनुशासित ढंग से आगे बढ़ रहे थे।जिसे देख कर लगा कि भारत में ऐसी स्थिति में जरा सी भी जगह मिलते ही तुरन्त गाड़ी वहाँ घुसाने की सभी को जल्दी रहती है ,जिससे पूरा ट्रेफ़िक ही जाम हो जाता है ।निश्चित स्थान पर कार पार्क करने बाद गार्डन में जाने के लिए सभी अपने आप ही लाइन में चलने लगे ।लेकिन हम भारतीय परम्परा के अनुसार लाइन का ध्यान नहीं रखकर आगे बढ़ने लगे ,यह सोच कर कि शीघ्र अन्दर पहुँच जाएँगे परन्तु तभी गगन ने कहा कि लाइन में ही चलें।हमने तुरन्त गलती सुधारी और लाइन में चलने लगे। ट्यूलिप पार्क में अंदर प्रवेश करते ही चारों ओर रंगबिरंगी फूलों की चादर बिछी थी ।विविध रंगो के फूल यहाँ दूर तक फैले थे ।कहीं लाल रंगों की कतार थी तो कहीं पीले,सफ़ेद ,नीले ,गुलाबी रंग के फूल लम्बी -लम्बी दूरी तक कतारों में फैले थे ।फूलों की चादर के पार बहुत दूर ऊँचे -ऊँचे बर्फ से ढके हुए पहाड़ नज़र आ रहे थे ।दूर से देखने पर लग रहा था जैसे प्रकृति ने कई रंगो की बहुत बड़ी चादर बिछाई है ।लाल ,सफ़ेद ,पीले, नीले ,गुलाबी रंगों की की धारियाँ इस चादर में दूर तक नज़र आ रही थी ।संभवतः लाखों की संख्या में फूल चारों ओर फैले थे । इतने रंगों के ट्यूलिप के फूल मैंने पहली बार देखे थे ।जिन्हें देखने लिए दूर दूर से लोग आये थे ।यहाँ लगभग एक घंटे की दूरी पर ,पास ही कनाड़ा बॉर्डर है कुछ लोग वहाँ से भी आये थे । सभी अपने अपने मोबाइल और केमरे से इन फूलों की छवि को क़ैद करने में लगे थे ।यह फूल कुछ कुछ गुलाब के फूल की तरह ही लगता है लेकिन इसमें गुलाब की तरह सुगंध नहीं होती ।गुलाब के कुछ फूलों की सुगंध का अहसास बहुत दूर तक होता है लेकिन यहाँ इतने फूलों के बाद भी ख़ुशबू का अहसास नहीं हो रहा था । यह गार्डन एक माह से सभी के लिए खुला था और अभी केवल एक सप्ताह ही ओर खुलने वाला था । यह अंतिम सप्ताह होने के कारण भी कुछ अधिक भीड़ यहाँ पर थी ।यहाँ पर ट्यूलिप के तरह तरह के पौधे भी उपलब्ध थे ।बहुत से लोगों ने ये पौधे अपने घरों के लिए यहाँ से लिए भी थे ।यहाँ पर बैठने और प्रकृति को निहारने के लिए हरि भारी घास का पार्क और बैठानी की व्यवस्था के साथ ख़ान पान के लिए रेस्टोरेंट भी थे ।लेकिन हमने देखा कि रेस्टोरेंट में भी स्व अनुशासित लाइन लगी थी ।लाइन काफ़ी लम्बी थी परन्तु सभी बड़े आराम से बिना किसी जल्दीबाज़ी के खड़े थे ।हर जगह बिना किसी निर्देश के लोग स्वयं ही पंक्तिबद्ध हो जाते हैं,यह बात वास्तव में बहुत अच्छी लगी । लाइन में लगना उनके लिए एक नियमित प्रक्रिया है लेकिन भारत में हम लाइन में खड़े होने को अपनी बेज्जती समझते हैं । हमें लगता है कि हम यदि प्रतिष्ठित संपन्न व्यक्ति हैं तो कहीं भी बिना किसी लाइन में लगे वरीयता प्राप्त कर आगे बढ़ सकते हैं।ट्रेफ़िक में हों या किसी रेस्टोरेंट या किसी भी जगह हों यह लोग बिना किसी निर्देश के स्वयं लाइन में खड़े हो कर आराम से अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं जो की एक अच्छी बात है । ट्यूलिप गार्डन से बाहर निकले तो लगभग पाँच बज गये थे । अब हम वापस घर की और रवाना हो गए ।वापसी में हमारे देखा कि अभी भी बाहर बहुत लंबी लाइन कारों की लगी थी ,गार्डन में अपनी बारी आने प्रतीक्षा में ।यह लाइन इतनी लम्बी थी समाप्त ही नहीं हो रही थी ।हमारे नोट किया कि लगभग पाँच किलोमीटर तक लोग अपनी कार के साथ इंतज़ार में खड़े थे ।इतनी लंबी लाइन होने पर भी कोई ट्रेफ़िक पुलिस नहीं, कहीं कोई स्वयं सेवक नहीं ,फिर भी वापसी के लिए ख़ाली सड़क पर से कोई भी व्यक्ति लाइन तोड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश नहीं कर रहा था जो वास्तव में प्रसंशनीय है ।यदि इतना धेर्य हममें आ जाये तो मंदिरों और मेलों में होने वाली भगदड़ में लोगों के कुचले जाने की घटनायें होनी ही बंद हो जायें ।इतनी भीड़ होने के बाद भी मुझे कहीं भी कोई पुलिस वाला नज़र नहीं आया । वापसी के समय भी ट्रेफ़िक काफ़ी था ।फिर भी बिना रुके ही हमारी कार आगे बढ़ती रही । रास्ते में ही एक स्थान पर मार्केट था जहाँ कुछ ख़रीदारी की और एक इंडियन होटल में ही भारतीय ख़ाना खाया और लगभग रात्रि के दस बजे हम घर पहुँच गए ।यहाँ एक विशेष बात ओर रही ,यह कि यहाँ पर सुबह छ: बजे ही सूर्य देव प्रकट हो जाते हैं लेकिन फिर लगभग साढ़े आठ बजे तक जाने का नाम नहीं लेते ।लगभग चौदह घंटे से भी अधिक समय तक सूर्य का प्रकाश रहता है । हालाँकि यहाँ सिएटल में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है ,इसलिए सूर्य के अच्छी तरह दर्शन कम हो पाते हैं फिर भी अभी गर्मियों में दिन काफ़ी बड़ा होता है ।गर्मियों से मेरा तात्पर्य मार्च अप्रैल से जून जुलाई से है ।क्योंकि यहाँ अभी भी तापमान भारत की सर्दियों वाला 8-16 डिग्री सेल्सियस ही है जबकि भारत में इन दिनों 45 के भी ऊपर पहुँच जाता है ।

Friday, 5 May 2023

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका)3

(3) अमेरिका की धरती पर ———————————————————————————- सिएटल एयरपोर्ट से बाहर आने पर मैंने मेरी फुल मैराथन 42.195 km ( टाटा मैराथन ) का इन्स्पायर मेडल बड़े बेटे गगन को भेंट किया जो कि मुझे 15 जनवरी 23 को मिला था इस मैराथन में दो मेडल मिले थे ।फिनिशर के मेडल के साथ एक मेडल इन्स्पायर करने वाले के लिए भी था । बड़े बेटे गगन ने ही हमें लगभग पाँच वर्ष पूर्व दौड़ने के लिए प्रेरित किया था ।हालाँकि शुरू में जैसा कि सभी सोचते हैं ,अब इस उम्र में भला क्या दौड़ना । लेकिन ऐसा नहीं है जब जागो तभी सवेरा ।मैंने भी 59 की उम्र में दौड़ना शुरू किया और कोविड के समय जब सब बंद था तब रनिंग और अच्छी हुई । कोविड में एक वर्ष में ही ग्यारह सो किलोमीटर रनिंग पूरी की ।जिससे लगभग पाँच साल में चार हज़ार किलोमीटर से अधिक की रनिंग हो चुकी है जिसमें दो मैराथन और लगभग बीस हाफ मैराथन शामिल हैं । कार पार्किंग में थी ,वहाँ पहुँच कर अब अमेरिका की सड़कों पर दौड़ने के लिए हमारी कार तैयार थी । एक अलग तरह का अहसास ,नई सड़कें ,नई राहें ,भारत से एकदम उलट ,यहाँ पर कार ड्राइविंग दाँई तरफ़ थी जबकि भारत में हम बाँई और चलते हैं । ड्राइविंग सीट भी कार में यहाँ दाँई ओर ही थी । चौड़ी सड़कें थी लेकिन ट्रेफ़िक काफ़ी कम ,लेकिन कारों की रफ़्तार बहुत अधिक थी ।सभी कि अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचने की जल्दी थी ।सिएटल का चारों ओर का नज़ारा ऐसा था कि जैसे किसी हिल स्टेशन पर आ गए हों ।सड़क के चारों ओर ऊँचे ऊँचे चीड़ पेड़ और रंग बिरंगे फूल खिले थे।यहाँ अभी भारत की अपेक्षा ठंड थी ।यहाँ अभी दोपहर तापमान लगभग पंद्रह डिग्री होगा । बेटा आजकल बैलेव्यू में रह रहा था ।लगभग आधा घंटे में हम बेलेव्यू घर पर पहुँच गये थे । कार पार्किंग में खड़ी कर लिफ्ट में पहुँचे ,दूसरी मंज़िल पर ही घर था ।बिल्डिंग में पहुँचने पर लगा जैसे किसी होटल में प्रवेश कर रहे हैं ।बिल्डिंग में सीढ़ियों से लेकर अंदर सभी कमरों तक कार्पेट बिछी थी ।यहाँ क्योंकि सर्दी अधिक रहती है इसलिए पूरी बिल्डिंग में कार्पेट लगी थी ।घर में अंदर पहुँचने पर देखा कि खिड़कियों से बाहर चारों ओर हरियाली थी ।खिड़की के बाहर हरी घास में रंगबिरंगे फूल और हरे भरे वृक्ष ,कुछ पेड़ों पर अभी पत्तियाँ नहीं थी जिसपर अभी गर्मियों में पत्तियाँ आने वाली हैं ।सर्दियों में इनकी सारी पत्तियाँ झड़ गई थी ।भोजन के बाद पूरे दिन आज आराम किया । दूसरे दिन सुबह लगभन छ: बजे बेटे के साथ डाउन टाउन सिटी पार्क में गए ।जो कि घर से एक किलोमीटर पर था ।काफ़ी बड़ा पार्क है जिसमें आराम से रनिंग या प्रातः भ्रमण के लिए ,लगभग सात सो मीटर का ट्रेक बना हुआ था ।सुबह रनिंग के लिए अच्छा स्थान था ।बीच में बहुत सारी बत्तकें पानी में तैर रही थी ।चारों तरफ़ रंगबिरंगे फूल ,बीच में घास का मैदान ,एक ओर बच्चों के लिए झूले और खेल के साधन ,सभी काफ़ी अच्छा था ।चारों और साफ़ सुथरा वातावरण ।हमने सोच लिया था की अब यहीं रनिंग और प्रातः भ्रमण किया जाएगा ।यहाँ सड़कों पर एक विशेष बात देखी कि यहाँ पर पैदल चलने वालों के लिए विशिष्ट व्यवस्था थी ।पैदल चलने के लिए अलग पटरी तो थी ही साथ ही हर चौराहे पर सड़क पार करने के लिये अलग सिग्नल भी थे ।आपको यदि सड़क पार करनी है तो चौराहे पर खंभे पर लगे बटन को दबाओ और आपका सिग्नल होने पर सड़क पार करो ।पैदल व्यक्ति जब सड़क पार करता है तो सभी वाहन तुरंत ही रुक जाते हैं ।यह बहुत ही अच्छी व्यवस्था है ।दो पहिया वाहन यहाँ दिखाई नहीं दिये ।क्योंकि यहाँ पर सर्दी अधिक रहती है इसलिए बड़ी बड़ी कार ही अधिक हैं।जो बहुत ही तेज रफ़्तार से चलती हैं । सड़क चौड़ी ,साफ़ एवं एकतरफ़ा यातायात ही है ।शहर के बीच में भी चार और छ: लेन के सड़कें देखी जा सकती हैं।हर तरफ़ हरियाली ,तरह तरह के फूल तो हैं ही लेकिन उन्हें सही तरह से विकसित करना और सफ़ाई वास्तव में प्रसंशनीय है । दिन में कुछ घरेलू सामान सब्ज़ी आदि लेने के लिए बेटे के साथ कार से एक स्टोर पर गए तो वहाँ देखा सब व्यवस्थित था ।यहाँ सेल्फ सर्विस थी ।हालाँकि आजकल भारत में भी बहुत से बड़े बड़े स्टोर पर सेल्फ सर्विस है ।सामान लेने से बिल का पेमेंट करने तक की यह सारी प्रक्रिया मैंने ध्यान से देखी लेकिन उनकी अंग्रजी भाषा समझ में कम ही आई । शाम को मैं अकेले ही सड़कों पर निकाल गया ।सड़क पर चलने के नियम सिग्नल , सड़क पार करने के विषय में जानकारी मिल ही गई थी ,इसलिए बिना किसी से बताये मैं बाहर निकल गया ।यहाँ सभी चौराहे , सड़कें एक जैसे ही थे । उनकी पहचान थी केवल वहाँ लिखे स्ट्रीट नम्बर से ।जो कि मैंने सुबह ही चलते चलते ध्यान से नोट किया था ।मैं सुबह जिस रास्ते से पार्क तक गया वहाँ तक वैसे ही गया लेकिन वापसी के लिए मेरी आदत है नया रास्ता खोजने की ,इसलिए जहाँ से दिन में घरेलू सामान लिया उस सड़क से वापस जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ़ मुड गया कि देखते हैं रास्ता मिलता है या नहीं? मैंने सोच लिया था कि रास्ता नहीं भी मिलेगा तो वापस जिस रास्ते से आया हूँ उसी से वापस चला जाऊँगा ।लेकिन घूमते हुए घर पहुँच ही गया ।लगभग चार किलोमीटर का सायं क़ालीन भ्रमण हो गया । परंतु घर पहुँचा तो सभी चिंतित थे कि मैं कहाँ निकल गया ?अंजान जगह थी मोबाइल भी मेरे पास नहीं था ।इसलिए सभी सोच रहे थे कि कहीं गुम हो गया तो वापस कैसे पहुँच पाऊँगा।ऐसी ही चिंता जब बच्चे छोटे होते हैं तो माँ बाप को होती है । अब अगली सुबह से दैनिक भ्रमण ,रनिंग का हमने निश्चय किया । इसके लिए पार्क का रास्ता देख ही लिया था ।इसलिए सुबह लगभग साढ़े छ:बजे श्रीमती के साथ हम निकले तो बाहर का तापमान लगभग सात डिग्री था । अप्रैल के अंतिम सप्ताह में भारत में गर्मी शुरू हो जाती है यहाँ भी अब गर्मी का मौसम है लेकिन यहाँ दिन का अधिकतम तापमान पंद्रह - सोलह तक ही था ।पार्क में पहुँच कर पाँच किलोमीटर रनिंग कर थोड़ी देर व्यायाम किया तो शरीर में कुछ गर्मी आयी । पसीना भी आया ।घर वापसी में लगभग पौने आठ बज गए थे तो देखा कि बेटे और बहू हमें ढूँढने के लिये निकलने वाले थे ।उन्होंने सोच लिया था कि हम कहीं रास्ता भूल कर इधर उधर भटक रहें हैं ।उन्होंने फ़ोन भी किया लेकिन हमने सुना नहीं । भारत से चलते समय मैंने मेरे मोबाइल की सिम इंटरनेशनल रोमिंग करा ली थी फिर भी घंटी नहीं सुनी इसलिए वे चिंतित थे।हालाँकि भारत में भी हम प्रातःभ्रमण और व्यायाम में लगभग डेढ़ से दो घंटे तक का ही समय लगाते हैं। लेकिन नया शहर , अंजान देश और लोगों के बीच बच्चों का चिंतित होना भी स्वाभाविक था ।घर पहुँचने पर उन्होंने इत्मीनान की साँस ली और घोषणा हो गई कि आज यहाँ की एक नई सिम मोबाइल में डाली जाएगी ताकि घर बाहर निकलने पर सम्पर्क किया जा सके ।मेरी आदत ही इधर उधर भागने की अधिक है इसलिए मुझे शाम को ही नई सिम दिलाई गई ।नई ई सिम जो केवल वर्चुअल थी ।मोबाइल डालने की आवश्यकता नहीं पड़ी ।तुरन्त ही सिम चालू हो गई ,बिना किसी इंतज़ार के ।श्रीमती तो वैसे भी बाहर जायेगी तो मेरे साथ ही रहेगी ,क्योंकि वो तो अकेले घर से बाहर जाती नहीं। कोटा में भी हम जहां भी जाते हैं प्राय :साथ ही जाते हैं। जब छोटा बच्चा चलने लगता है तो माँ उसके पैर में घुँघरू वाली पायजेब पहना देती है ताकि उसकी छमछम की आवाज़ से बच्चे का ध्यान रहता था कि वह किधर है ।लेकिन अब बच्चों ने हमें ढूँढने के लिये मोबाइल और अन्य डिवाइस का तरीक़ा खोज लिया है । हमारे शरीर को यहाँ के माहोल में ढलने और व्यवस्थित होने में लगभग दो दिन लग गए ।क्योंकि दिन में नींद आना और रात को जागने के क्रम में परिवर्तन लाने के लिये कोशिश रहती कि दिन में नहीं सोया जाये ।आम भाषा में इसे जेटलैक कहते हैं।जिस समय भारत में दिन रहता है तब अमेरिका में रात रहती है।सिएटल का समय भारत के समय से लगभग साढ़े ग्यारह घण्टे पीछे है।लेकिन दो दिन बाद से ही हमने अपने नियमित दैनिक कार्यक्रम को प्रारम्भ कर दिया ।सुबह के लिए डाउन टाउन पार्क बहुत अच्छी जगह है ।हम सुबह लगभग छ: बजे पार्क में चले जाते जो कि एक किलोमीटर की दूरी पर ही है। वहाँ आराम से रनिंग और फिर अन्य व्यायाम भी हो जाता है ।सुबह के समय ठंड के कारण यहाँ कम ही लोग नज़र आते थे।क्योंकि सुबह का यहाँ का तापमान लगभग छ : से आठ डिग्री ही रहता है। दिन में ज़रूर अभी चौदह से सोलह डिग्री तक हो जाता है ।

Thursday, 4 May 2023

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका यात्रा) 3

(3) अमेरिका की धरती पर ———————————————————————————- सिएटल एयरपोर्ट से बाहर आने पर का मैंने मेरी फुल मैराथन 42.195 km ( टाटा मैराथन ) का इन्स्पायर मेडल बड़े बेटे गगन को भेंट किया जो कि मुझे 15 जनवरी 23 को मिला था इस मैराथन में दो मेडल मिले थे ।फिनिशर के मेडल के साथ एक मेडल इन्स्पायर करने वाले के लिए भी था । बड़े बेटे गगन ने ही हमें लगभग पाँच वर्ष पूर्व दौड़ने के लिए प्रेरित किया था ।हालाँकि शुरू में जैसा कि सभी सोचते हैं ,अब इस उम्र में भला क्या दौड़ना । लेकिन ऐसा नहीं है जब जागो तभी सवेरा ।मैंने भी 59 की उम्र में दौड़ना शुरू किया और कोविड के समय जब सब बंद था तब रनिंग और अच्छी हुई । कोविड में एक वर्ष में ही ग्यारह सो किलोमीटर रनिंग पूरी की ।जिससे लगभग पाँच साल में चार हज़ार किलोमीटर से अधिक की रनिंग हो चुकी है जिसमें दो मैराथन और लगभग बीस हाफ मैराथन शामिल हैं । कार पार्किंग में थी ,वहाँ पहुँच कर अब अमेरिका की सड़कों पर दौड़ने के लिए हमारी कार तैयार थी । एक अलग तरह का अहसास ,नई सड़कें ,नई राहें ,भारत से एकदम उलट ,यहाँ पर कार ड्राइविंग दाँई तरफ़ थी जबकि भारत में हम बाँई और चलते हैं । ड्राइविंग सीट भी कार में यहाँ दाँई ओर ही थी । चौड़ी सड़कें थी लेकिन ट्रेफ़िक काफ़ी कम ,लेकिन कारों की रफ़्तार बहुत अधिक थी ।सभी कि अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचने की जल्दी थी ।सिएटल का चारों ओर का नज़ारा ऐसा था कि जैसे किसी हिल स्टेशन पर आ गए हों ।सड़क के चारों ओर ऊँचे ऊँचे चीड़ पेड़ और रंग बिरंगे फूल खिले थे।यहाँ अभी भारत की अपेक्षा ठंड थी ।यहाँ अभी दोपहर तापमान लगभग पंद्रह डिग्री होगा । बेटा आजकल बैलेव्यू में रह रहा था ।लगभग आधा घंटे में हम बेलेव्यू घर पर पहुँच गये थे । कार पार्किंग में खड़ी कर लिफ्ट में पहुँचे ,दूसरी मंज़िल पर ही घर था ।बिल्डिंग में पहुँचने पर लगा जैसे किसी होटल में प्रवेश कर रहे हैं ।बिल्डिंग में सीढ़ियों से लेकर अंदर सभी कमरों तक कार्पेट बिछी थी ।यहाँ क्योंकि सर्दी अधिक रहती है इसलिए पूरी बिल्डिंग में कार्पेट लगी थी ।घर में अंदर पहुँचने पर देखा कि खिड़कियों से बाहर चारों ओर हरियाली थी ।खिड़की के बाहर हरी घास में रंगबिरंगे फूल और हरे भरे वृक्ष ,कुछ पेड़ों पर अभी पत्तियाँ नहीं थी जिसपर अभी गर्मियों में पत्तियाँ आने वाली हैं ।सर्दियों में इनकी सारी पत्तियाँ झड़ गई थी ।भोजन के बाद पूरे दिन आज आराम किया । दूसरे दिन सुबह लगभन छ: बजे बेटे के साथ डाउन टाउन सिटी पार्क में गए ।जो कि घर से एक किलोमीटर पर था ।काफ़ी बड़ा पार्क है जिसमें आराम से रनिंग या प्रातः भ्रमण के लिए ,लगभग सात सो मीटर का ट्रेक बना हुआ था ।सुबह रनिंग के लिए अच्छा स्थान था ।बीच में बहुत सारी बत्तकें पानी में तैर रही थी ।चारों तरफ़ रंगबिरंगे फूल ,बीच में घास का मैदान ,एक ओर बच्चों के लिए झूले और खेल के साधन ,सभी काफ़ी अच्छा था ।चारों और साफ़ सुथरा वातावरण ।हमने सोच लिया था की अब यहीं रनिंग और प्रातः भ्रमण किया जाएगा ।यहाँ सड़कों पर एक विशेष बात देखी कि यहाँ पर पैदल चलने वालों के लिए विशिष्ट व्यवस्था थी ।पैदल चलने के लिए अलग पटरी तो थी ही साथ ही हर चौराहे पर सड़क पार करने के लिये अलग सिग्नल भी थे ।आपको यदि सड़क पार करनी है तो चौराहे पर खंभे पर लगे बटन को दबाओ और आपका सिग्नल होने पर सड़क पार करो ।पैदल व्यक्ति जब सड़क पार करता है तो सभी वाहन तुरंत ही रुक जाते हैं ।यह बहुत ही अच्छी व्यवस्था है ।दो पहिया वाहन यहाँ दिखाई नहीं दिये ।क्योंकि यहाँ पर सर्दी अधिक रहती है इसलिए बड़ी बड़ी कार ही अधिक हैं।जो बहुत ही तेज रफ़्तार से चलती हैं । सड़क चौड़ी ,साफ़ एवं एकतरफ़ा यातायात ही है ।शहर के बीच में भी चार और छ: लेन के सड़कें देखी जा सकती हैं।हर तरफ़ हरियाली ,तरह तरह के फूल तो हैं ही लेकिन उन्हें सही तरह से विकसित करना और सफ़ाई वास्तव में प्रसंशनीय है । दिन में कुछ घरेलू सामान सब्ज़ी आदि लेने के लिए बेटे के साथ कार से एक स्टोर पर गए तो वहाँ देखा सब व्यवस्थित था ।यहाँ सेल्फ सर्विस थी ।हालाँकि आजकल भारत में भी बहुत से बड़े बड़े स्टोर पर सेल्फ सर्विस है ।सामान लेने से बिल का पेमेंट करने तक की यह सारी प्रक्रिया मैंने ध्यान से देखी लेकिन उनकी अंग्रजी भाषा समझ में कम ही आई । शाम को मैं अकेले ही सड़कों पर निकाल गया ।सड़क पर चलने के नियम सिग्नल , सड़क पार करने के विषय में जानकारी मिल ही गई थी ,इसलिए बिना किसी से बताये मैं बाहर निकल गया ।यहाँ सभी चौराहे , सड़कें एक जैसे ही थे । उनकी पहचान थी केवल वहाँ लिखे स्ट्रीट नम्बर से ।जो कि मैंने सुबह ही चलते चलते ध्यान से नोट किया था ।मैं सुबह जिस रास्ते से पार्क तक गया वहाँ तक वैसे ही गया लेकिन वापसी के लिए मेरी आदत है नया रास्ता खोजने की ,इसलिए जहाँ से दिन में घरेलू सामान लिया उस सड़क से वापस जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ़ मुड गया कि देखते हैं रास्ता मिलता है या नहीं? मैंने सोच लिया था कि रास्ता नहीं भी मिलेगा तो वापस जिस रास्ते से आया हूँ उसी से वापस चला जाऊँगा ।लेकिन घूमते हुए घर पहुँच ही गया ।लगभग चार किलोमीटर का सायं क़ालीन भ्रमण हो गया । परंतु घर पहुँचा तो सभी चिंतित थे कि मैं कहाँ निकल गया ?अंजान जगह थी मोबाइल भी मेरे पास नहीं था ।इसलिए सभी सोच रहे थे कि कहीं गुम हो गया तो वापस कैसे पहुँच पाऊँगा।ऐसी ही चिंता जब बच्चे छोटे होते हैं तो माँ बाप को होती है । अब अगली सुबह से दैनिक भ्रमण ,रनिंग का हमने निश्चय किया । इसके लिए पार्क का रास्ता देख ही लिया था ।इसलिए सुबह लगभग साढ़े छ:बजे श्रीमती के साथ हम निकले तो बाहर का तापमान लगभग सात डिग्री था । अप्रैल के अंतिम सप्ताह में भारत में गर्मी शुरू हो जाती है यहाँ भी अब गर्मी का मौसम है लेकिन यहाँ दिन का अधिकतम तापमान पंद्रह - सोलह तक ही था ।पार्क में पहुँच कर पाँच किलोमीटर रनिंग कर थोड़ी देर व्यायाम किया तो शरीर में कुछ गर्मी आयी । पसीना भी आया ।घर वापसी में लगभग पौने आठ बज गए थे तो देखा कि बेटे और बहू हमें ढूँढने के लिये निकलने वाले थे ।उन्होंने सोच लिया था कि हम कहीं रास्ता भूल कर इधर उधर भटक रहें हैं ।उन्होंने फ़ोन भी किया लेकिन हमने सुना नहीं । भारत से चलते समय मैंने मेरे मोबाइल की सिम इंटरनेशनल रोमिंग करा ली थी फिर भी घंटी नहीं सुनी इसलिए वे चिंतित थे।हालाँकि भारत में भी हम प्रातःभ्रमण और व्यायाम में लगभग डेढ़ से दो घंटे तक का ही समय लगाते हैं। लेकिन नया शहर , अंजान देश और लोगों के बीच बच्चों का चिंतित होना भी स्वाभाविक था ।घर पहुँचने पर उन्होंने इत्मीनान की साँस ली और घोषणा हो गई कि आज यहाँ की एक नई सिम मोबाइल में डाली जाएगी ताकि घर बाहर निकलने पर सम्पर्क किया जा सके ।मेरी आदत ही इधर उधर भागने की अधिक है इसलिए मुझे शाम को ही नई सिम दिलाई गई ।नई ई सिम जो केवल वर्चुअल थी ।मोबाइल डालने की आवश्यकता नहीं पड़ी ।तुरन्त ही सिम चालू हो गई ,बिना किसी इंतज़ार के ।श्रीमती तो वैसे भी बाहर जायेगी तो मेरे साथ ही रहेगी ,क्योंकि वो तो अकेले घर से बाहर जाती नहीं। कोटा में भी हम जहां भी जाते हैं प्राय :साथ ही जाते हैं। जब छोटा बच्चा चलने लगता है तो माँ उसके पैर में घुँघरू वाली पायजेब पहना देती है ताकि उसकी छमछम की आवाज़ से बच्चे का ध्यान रहता था कि वह किधर है ।लेकिन अब बच्चों ने हमें ढूँढने के लिये मोबाइल और अन्य डिवाइस का तरीक़ा खोज लिया है । हमारे शरीर को यहाँ के माहोल में ढलने और व्यवस्थित होने में लगभग दो दिन लग गए ।क्योंकि दिन में नींद आना और रात को जागने के क्रम में परिवर्तन लाने के लिये कोशिश रहती कि दिन में नहीं सोया जाये ।आम भाषा में इसे जेटलैक कहते हैं।जिस समय भारत में दिन रहता है तब अमेरिका में रात रहती है।सिएटल का समय भारत के समय से लगभग साढ़े ग्यारह घण्टे पीछे है।लेकिन दो दिन बाद से ही हमने अपने नियमित दैनिक कार्यक्रम को प्रारम्भ कर दिया ।सुबह के लिए डाउन टाउन पार्क बहुत अच्छी जगह है ।हम सुबह लगभग छ: बजे पार्क में चले जाते जो कि एक किलोमीटर की दूरी पर ही है। वहाँ आराम से रनिंग और फिर अन्य व्यायाम भी हो जाता है ।सुबह के समय ठंड के कारण यहाँ कम ही लोग नज़र आते थे।क्योंकि सुबह का यहाँ का तापमान लगभग छ : से आठ डिग्री ही रहता है। दिन में ज़रूर अभी चौदह से सोलह डिग्री तक हो जाता है ।

Wednesday, 3 May 2023

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका) 2

————————————————————————————————— (2) अमेरिका के लिए रवानगी ————————————————————————————————— अब वह घड़ी आ ही गई जब हमने रवानगी ले ही ली , अमेरिका के लिए । बेटा और बहु दोनों ही रात को हमें लेकर 12:15 am पर छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की ओर रवाना हुए । मुम्बई में आधी रात की भी काफ़ी ट्रेफ़िक था । मात्र 19 km में की दूरी 45 मिनिट से अधिक समय में तय हुई । फिर भी रात को एक बजे हवाई अड्डे पर पहुँच ही गये और वहाँ हमने अपने सूटकेस लगेज में बुक कराये फिर सिक्योरिटी जाँच और इमीग्रेशन की लाइन में लग गये ।इमिग्रेशन अधिकारी द्वारा अमेरिका कारण , कितने दिन रहोगे,कहाँ रहोगे आदि सवाल किए ,पासपोर्ट और वीज़ा चेक किया।इस सारी प्रक्रिया के बाद लगभग 2:45 am पर फ़्री हुए तो कुछ राहत मिली कि चलो एक बाधा तो पार हुई । ।तीन बजे निश्चित गेट तक पहुँच कर बैठे । आधा घंटे बाद ही बोर्डिंग की प्रक्रिया शुरू हो गई । फ़्लाइट में बैठ कर लगा कि चलो अब दुबई तक पहुँचाना तो निश्चित ही है ।हमारी एमिराइट्स की फ़्लाइट थी यह डोमेस्टिक फ़्लाइट की अपेक्षा काफ़ी बड़ा हवाई जहाज़ था । अंदर दो मंज़िला था । हमारी सीट नीचे ही थी। सीट के ही टीवी स्क्रीन था ।कंबल ,ईयर फोन सीट पर ही रखा था ।हमारी फ्लाइट समय 4:30am भारतीय अनुसार मुम्बई से रवाना हो गई थी और ठीक समय पर फ़्लाइट दुबई पहुँच गई । वहाँ के समय के अनुसार सुबह के 6:30am बजे थे । जबकि भारतीय समय के अनुसार सुबह के साढ़े सात बजे थे । हमारा सामान हमने मुम्बई लगेज में बुक कराया था हमें उसकी चिंता नहीं थी क्योंकि हमें बताया गया था कि सामान दूसरी फ्लाइट में पहुँच जाएगा ।लेकिन हमें अब दूसरी फ्लाइट ,जो कि एमिराइट्स की ही थी,तक पहुँचाना था । फ्लाइट नंबर KE0229 से हमें दुबई से सिएटल (अमेरिका) तक जाना था ।यह लगभग साढ़े चौदह घंटे का सफ़र था ।अब अपनी फ़्लाइट के लिए गेट नंबर B28 ढूँढना था ।यहाँ का एयरपोर्ट काफ़ी बड़ा था ।एयरपोर्ट पर विभिन्न कंपनियों के शोरूम भी थे और खानपान की भी बड़ी दुकानें भी ।चारों ओर दिशा सूचक लगे थे जिससे हम आराम से निश्चित गेट पर हम पहुँच गए। लेकिन वहाँ तक पहुँचने पूर्व एक बार फिर हमें सिक्योरिटी जाँच से गुजरना पड़ा । कुछ देर बाद श्रीमती को लगा कि कुछ चाय ,कॉफ़ी हो जाय। लेकिन समस्या थी कि हमारे पास वहाँ की मुद्रा नहीं थी । हमने कुछ राशि के डॉलर लिए तो उसने डालर के साथ पाँच दीनार और कुछ सिक्के दिये । चाय कॉफी की तलाश की परंतु हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें और कैसे करें ।हम वापस श्रीमती जी के पास पहुँचे क्योंकि हमें दूध वाली चाय काफ़ी नहीं मिल पा रही है , इसलिए क्यों न हम दोनों ही मिलकर तलाश करें ।इस बीच हमें सूचना मिली कि हमारी फ़्लाइट गेट नंबर B 26से रवाना होगी।हम तुरन्त गेट नम्बर B26 पर पहुँच गये।बैग वहाँ रखा और एक फिर हम दोनों ने चाय की तलाश शुरू की तो एक स्टाल मिल गई जहाँ दूध वाली चाय उपलब्ध थी । हमने चाय का ऑर्डर किया तो उसने चालीस दीनार की दो चाय बताई । मेरे पास पाँच दीनार थी और डॉलर भी थे लेकिन दुकानदार ने बताया कि डॉलर में भुगतान तो हो जाएगा लेकिन खुले पैसे वापसी हमें दीनार में मिलेंगे । परंतु दीनार का हम भला क्या करते । इसलिए 35 दीनार कार्ड से दी और पाँच दीनार नगद दे कर चाय का भुगतान किया । चाय के बाद जैसे ही हम वापस अपने निश्चित गेट पर पहुँचे तो वहाँ पर सिक्योरिटी चेकिंग चालू हो चुकी थी । एक बार फिर चेकिंग के दौर से गुजर कर फ़्लाइट की इंतज़ार में बैठ गए । थोड़ी देर बाद यह इंतज़ार भी समाप्त हो गया और हम हमारी फ़्लाइट EK 0229 में पहुँच गये । अब लगा कि अमेरिका में पहुँचने की सभी बाधायें अब समाप्त हुई । अब तो पहुँच ही जाएँगे । लेकिन मालूम हुआ कि अभी वहाँ पहुँचने पर एक बार पुन: इमिग्रेशन होगा । फाइनल जाँच के बाद ही अमेरिका हम एयरपोर्ट से बाहर जा सकेंगे । अपनी सीट पर पहुँच कर बैग सही से जमाये और चारों और अच्छी तरह मुआयना कर हम सीट पर बैठ गये ।सीट बेल्ट लगाई और सामने लगे टीवी को चलाने की प्रक्रिया देखी , समझी और कानों में ईयर फ़ोन लगाकर बैठ गए । हमारे सफ़र की सभी जानकारी टीवी स्क्रीन पर थी।दुबई से सिएटल का समय 14:30 घण्टे का लगने वाला था दूरी लगभग 19000km थी । अब साढ़े चौदह घंटे का सफ़र एक ही सीट पर करना था । जो वास्तव में चुनौती तो थी ही क्योंकि रेल यात्रा में तो आप स्टेशन पर उतर सकते हैं। सीट पर लेट सकते हैं।लेकिन यहाँ तो बैठे बैठे ही समय गुज़ारना था ।थोड़ी देर बाद ख़ाना आ गया ,फिर चाय कॉफ़ी, शाम का खाना आदि सभी सीट पर ही चलता रहा ।फ्लाइट में वेज , नोन वेज खाने साथ ही वाइन ,कोल्ड ड्रिंक आदि भी उपलब्ध थी ।हमारा वेज भोजन बुक था इसलिए खाना लेते समय भी हमने पूर्ण संतुष्टि कर ली कि खाना वेजीटेरियन ही है ।अब विमान में साढ़े चौदह घंटे गुजारने के लिए टीवी का सहारा लिया । कभी टीवी पर हिन्दी फ़िल्म , कभी गाने सुनकर तो कभी अपने विमान की स्थिति देख कर समय व्यतीत करते रहे । बीच -बीच में कुछ गेम भी खेलते रहे ।विमान में वाईफ़ाई था जिससे मोबाइल पर ह्वाट्सऐप मेसेज भेजे व प्राप्त किए जा सकते थे ।बीच बीच में बैठे बैठे ही थोड़ी झपकी भी ली ।सोने लिए आँखों पर बाँधने की पट्टी और कम्बल भी सभी को दिया गाया था ।कुछ लोग आराम सोये भी होंगे ।लेकिन हमें बार बार यही ख़्याल आता रहा कि साढ़ेचोदह घंटे एक सीट पर बैठ कर कैसे व्यतीत होंगे ।फिर धीरे- धीरे हम वतन से दूर जाते जा रहे थे और अमेरिका पहुँचाने का समय नज़दीक आता जा रहा था ।रास्ते में कहीं रात का अंधेरा नहीं हुआ इसलिए सभी विमान की खिड़कियाँ बंद कर ली थी जिससे रात्रि का आभास हो था। अमेरिका में सिएटल का समय भारतीय समय से लगभग साढ़े ग्यारह घंटे पीछे है ।इसलिए २४ अप्रैल को भारत से रवाना होने के बाद भी सिएटल के समय अनुसार २४ की दोपहर को यहाँ पहुँच थे । अब धीरे धीरे साढ़े चौदह घंटे भी समाप्ति पर थे । हमने ह्वाट्सऐप पर सूचना दे दी कि हम सिएटल पहुँचने वाले हैं। हमें भी बेटे गगन और बहु का मेसेज आ गया कि वे भी एयरपोर्ट पहुँच रहे हैं। सिएटल ( अमेरिका ) हमारा विमान सही समय पर पहुँच गया । सिएटल के समय के अनुसार लगभग दोपहर के डेढ़ बजे थे । विमान से उतरने के बाद अपने सूटकेस आने के लिए लगभग आधा घंटे हमें इंतज़ार करना पड़ा ,और फिर सभी सामान लेकर एक बार पुन: जाँच की लाइन शुरू हो गई । हम भी जाँच के लाइन में लग गए ।यहाँ भी कई खिड़कियाँ बनी थी जिनपर अमेरिकी अधिकारी बैठे थे और सभी आने वालों से पूछ ताछ कर रहे थे ।फाइनल इमिग्रेशन के लिए लगभग आधा घंटे इंतज़ार के बाद हमारा नम्बर आया तो उपस्थित अधिकारी ने हमसे अमेरिका आने का कारण पूछा और कितने दिन रहोगे यह भी पूछा ।कुछ भी किसी व्यक्ति के विषय यदि उन्हें संदिग्ध लगता तो उसे सामान सहित अलग ले जा कर उसकी जाँच भी की जा रही थी।सब प्रक्रिया पूरी होने पर जैसे ही मुख्य गेट से निकले तो बेटा और बहू दोनों ही गेट पर बड़े उत्साह से मिले । सबसे बड़ी संतुष्टि उन्हें इस बात की थी कि हमने सफलता से यह यात्रा पूरी कर ली थी । जब बच्चे पढ़ने के लिए बाहर जाते थे तो जैसी चिंता हमें बच्चों की रहती थी आज वैसी ही चिंता और बेताबी बच्चों के चेहरों पर हमारे प्रति देख कर लगा कि अब बच्चे तो बड़े हो गये लेकिन हम अब उनके लिये बच्चों की तरह हो गये हैं, जो कि प्रत्येक माता पिता लिए संतोष का विषय है ।हमारे हवाई जहाज़ में इंटरनेट होने से मुम्बई से छोटे बेटा तो सिएटल से बड़े बेटा दोनों ही पूरे रास्ते ,मुम्बई से सिएटल तक मेसेज से संपर्क में बने रहे ।शायद दोनों को ही हमारी यात्रा की चिंता रही होगी ।

Tuesday, 2 May 2023

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका)

प्रथम विदेश यात्रा (अमेरिका यात्रा)—————- (१)तैयारी अमेरिका की _____________________ अमेरिका वीज़ा लगते ही बड़े बेटे गगन ने पहला प्रश्न किया - “अब कब आ रहे हो ?”क्योंकि वह विगत तीन वर्षों से वहाँ रह रहा है ।दो साल से कोविड के कारण वीज़ा बंद थे ।वीज़ा मिलने शुरू हुए तो पहले जून 2025 की डेट मिली थी लेकिन फिर किसी तरह जनवरी2023 की तारीख़ वीज़ा के लिए मिल गई । सात जनवरी को बायोमेट्रिकऔर पच्चीस जनवरी को इण्टरव्यू के लिए मुम्बई में वीज़ा डेट मिली । 25 जनवरी को वीज़ा फाइनल होते ही डाक से वीज़ा घर तक पहुँचता उससे पहले अमेरिका के हवाई टिकिट आ गए ।मई माह की 24 तारीख़ को मुंबई से रवानगी का टिकिट था लेकिन दूसरे ही दिन मई की तारीख़ केंसिल और 24मई के स्थान पर 24 अप्रैल के टिकिट आ गए ।शायद बेटे को उसकी माता श्री के हाथ का ख़ाना याद आने लगा ।हो भी क्यों न ……? एक माँ ही होती है जो बच्चों के अंतर्मन से जुड़ी होती है । अब धीरे धीरे जनवरी से अप्रैल भी आ ही गया । मुम्बई में छोटा बेटा और पुत्रवधू रहते हैं इसलिए वहीं से सिएटल का टिकिट बड़े बेटे ने कराया ।मुम्बई तक पहुँचने के लिये रेल एक अच्छा साधन है ।लेकिन मैंने मुम्बई तक की एक हज़ार किलोमीटर की यात्रा कार से करने का निश्चय किया ।वो इसलिए कि मुम्बई में कार का उपयोग chhota बेटा मयंक भी करता रहेगा । यहाँ तीन महीने तक कार खड़ी ही रहेगी ।वैसे तो मेरा कार से यात्रा का विचार सुनाते ही श्रीमती तैयार नहीं थी लेकिन बेटे की स्वीकृति पर हमें अनुमति मिली। नागदा में श्रीमती जी की छोटी बहिन के यहाँ रात्रि विश्राम का प्लान तैयार किया गया । 19अप्रैल प्रातः मुंबई के लिए रवानगी तय हुई ।उससे पहले हर कोई निकट संबंधी मित्र आदि ने पूछना शुरू कर दिया कि “हो गई तैयारी “ बार बार यह प्रश्न पूछने से हमें भी लगने लगा कि कोई विशेष तैयारी करनी होगी । लेकिन एसा कुछ समझ नहीं आया कि क्या विशेष तैयारी करनी है ।जैसे पहले कहीं बाहर जाने के लिए कुछ पहिनने के कपड़े लेने होते हैं बस उसी अभी भी कुछ कपड़े लेने हैं ,इसके अलावा बेटे के पसंद की कुछ नमकीन लिए बस । श्रीमती जी की ज़रूर तैयारी चल रही थी ।अमेरिका लिए विशेष शॉपिंग कार्यक्रम रहा ।वैसे भी क्या ख़रीदना है ,क्या लेकर चलना यह सब सोचना पुरुषों बूते के बाहर ही है। कोटा से कार द्वारा रवानगी से पूर्व 16 अप्रैल को मुझे वायरल फीवर ने जकड़ लिया फिर हमें बिदा करने के लिए आई हमारी सासू माँ जी को और बाद में श्रीमती जी को बारी बारी से दो दो दिन फीवर ने दस्तक दी ।19 को प्रातः रवानगी के समय श्रीमती जी को फीवर था ।हम अपनी कार से वहाँ से नागदा के लिए रवाना हुए तो दोपहर को 12:30 बजे नागदा पहुँच गये थे ।वहाँ से दूसरे दिन प्रातः 5:30 बजे ही श्रीमती जी की छोटी बहिन और बेटी के साथ मुंबई के लिए रवाना हुए । सड़क काफ़ी अच्छी थी ।शाम को लगभग 5-5:30 बजे पहुँचने की संभावना थी लेकिन हमें अहसास हुआ की जल्दी पहुँचेंगे तो वहाँ घर पर बेटा , बहू कोई नहीं मिलेगा । इसलिए रास्ते में आराम से चाय , नाश्ता , भोजन करते हुए 7:30 तक पहुँचने का लक्ष्य रखा ।और हम इस समय मुम्बई पहुँच भी गए थे । लेकिन मुंबई में प्रवेश करते ही ट्रेफ़िक जाम के दर्शन हुए ।लगभग दो घंटे जाम लगा रहा । गाड़िया थोड़ा खिसकना शुरू हुई तो हम लगभग 9:30 pmबजे तक छोटे बेटे के घर तक पहुँचे । रात में आराम किया तो सुबह देखा श्रीमती जी की छोटी बहिन की बेटी को फीवर था । उसे किसी यूनिवर्सिटी में MBA के एडमिशन के लिए भी जाना था । उसे दवा देकर भेजा । शाम को सभी का मुम्बई भ्रमण का भी कार्यक्रम बना लेकिन फीवर के कारण केंसिल किया । हालाँकि टिकिट बुक हो गये थे । दूसरे दिन शनिवार को सुबह जूह बीच और शाम को नरीमन पॉइंट, चौपाटी घूमे । रविवार 23 अप्रैल की रात को हमें अमेरिका के लिए रवाना होना था ।हमारी फ़्लाइट 24 को प्रातः 4:30 amपर थी । जिसके लिये एक बजे तक पहुँचाना था ।

7.बिक्सबी क्रीक ब्रिज,गुगलप्लेक्स (अमेरिका यात्रा 2)

आज हमारा बिक्सबी ब्रिज जाने का कार्यक्रम बना।बिक्सीबी ब्रिज, जिसे **बिक्सबी क्रीक ब्रिज** के नाम से भी जाना जाता है , कैलिफोर्निया के बिग सु...