Wednesday, 2 July 2025

लॉम्बार्ड स्ट्रीट,पीयर 39,स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी(अमेरिका यात्रा 2)

रात्रि विश्राम के बाद अब सैन फ्रांसिस्को में हमारा दूसरा दिन सोलह जून की सुबह हम सब आराम से सो कर उठे।प्रात: नाश्ते और फिर दोपहर के भोजन के बाद लगभग दोपहर को लगभग दो बजे हम घूमने के लिए निकल गए।सबसे पहले हमने लॉम्बार्ड स्ट्रीट जाने का कार्यक्रम बना।ललॉम्बार्ड स्ट्रीट,सैन फ्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया में स्थित है, और इसे "दुनिया की सबसे टेढ़ी सड़क" के रूप में जाना जाता है|इसका अधिकांश पश्चिमी भाग यूएस रूट 101 का हिस्सा है। आप इस छोटी सी साँप की तरह टेढ़ी मेढ़ी घुमावदार सड़क से केवल नीचे की तरफ़ ड्राइव कर सकते हैं, ऊपर आने के इस गली का दूसरा सिरा अन्य सड़क से जुड़ा है जिसके माध्यम से वापस ऊपर आया जा सकता है ।हम भी यहाँ पहुचे और पहले इस छोटी से सड़क को अच्छी तरह देखा,इसकी लंबाई कोई अधिक नहीं है लेकिन यह एक घुमावदार रास्ता है जिसके दोनों तरफ़ लोगों के घर भी बने हुए हैं।सैन फ्रांसिस्को शहर बड़ा भीड़भाड़ वाला शहर है।यहाँ लोकल बस,ट्रेन और ट्राम भी चलती है।हर थोड़ी देर में लोकल बस दिखाई दे जाती है जबकि सिएटल में लोकल सिटी बस की संख्या अपेक्षाकृत कम है। यहाँ सड़कों पर ट्रेफिक देखकर भारत की सड़कों पर ट्र्फ़िक की याद आ गई।यह कैलिफोर्निया का चौथा सबसे बड़ा शहर है शहर की आबादी लगभग आठ लाख चौहत्तर लाख है जबकि पूरे महानगर की आबादी सैंतालीस लाख से अधिक है।मुख्य शहर जिसे यहाँ डाउन टाउन कहा जाता है,में हर स्थान पर कारों की लाइने लगी हुई रहती हैं।यह पूरा शहर प्रशांत महासागर के किनारे पर बसा है।इसकी बसावट भी पहाड़ी क्षेत्र की तरह कहीं ऊँचाई पर सड़क जाती है तो दूसरे ही पल सड़क नीचे की तरफ़ चली जाती है।लेकिन यहाँ की सड़कें चौड़ी और यातायात व्यवस्थित स्व अनुशासन से ही चलता रहता है।कहीं भी कोई ट्रफ़िक पुलिस वाला नज़र नहीं आया और कहीं भी जाम की स्थिति भी नहीं आई। लॉम्बार्ड स्ट्रीट के बाद वही पास ही “पियर 39” है।यह एक समुद्रतट बहुत बड़ा बाजार है।सैन फ्रांसिस्को के उत्तरी जल तट पर स्थित पियर 39 स्थित है, जो समृद्ध इतिहास, खूबसूरत वास्तुकला, और जीवंत सांस्कृतिक दृश्यों का एक अनूठा मेल है। 1905 में एक साधारण पियर के रूप में शुरू होकर, यह अब एक अद्वितीय सुंदर स्थान बन गया है, जो हर साल 15 मिलियन से अधिक आगंतुकों को आकर्षित करता है । प्रसिद्ध उद्यमी वॉरेन सिमन्स द्वारा निर्मित और 4 अक्टूबर 1978 को जनता के लिए खोले गए पियर 39 में खरीदारी, भोजन, मनोरंजन और अनेक तरह की दुकाने हैं।हम जब वहाँ पहुँचे तो देखा एक जादूगर अपने जादू से सभी का मनोरंजन कर रहा था।आसपास विविध तरह की खानपान की स्टॉल लगी है।कई दुकाने तरह तरह के कपड़ों की भी लगी हैं।समुद्र के तट पर हमने देखा कि अनगिनित सी लॉइन और सील मछलियाँ वहाँ बनाए गए लकड़ी के बहौत सारे प्लेटफार्म पर आराम कर रही थी।सी लॉइन ऑए सील लगभग एक जैसे ही दिखाइ देते हैं लेकिन वहाँ एक बोर्ड पर इन दोनों का अंतर लिखा था जिसमे लिखा था कि सी लॉइन के कान दिखाई देते हैं जबकि सील के कान दिखाई नहीं देते।कान के स्थान पर मात्र एक छेद होता है।हम कुछ देर वहाँ रुके लेकिन वहाँ पर अधिक समय तक नहीं रुका जा सकता क्योंकि इनके शरीर से एक विशेष बदबू आती है जिस कारण थोड़ी देर बाद ही हम वहाँ से हटकर बाजार का अवलोकन करने लगे।जहाँ से हमने कुछ टी शर्ट ली और वहाँ से आगे के लिए रवाना हो गए। यहाँ से हम अब
के लिए चल दिए।यूनिवर्सिटी पहुंचते पहुंचते हमे लगभग शाम के छ: बज गए थे ।यूनिवर्सिटी परिसर में पहुचा तो देखा बहुत ही बड़ा परिसर है।स्टैनफोर्ड की स्थापना एक संयुक्त राज्य के और कैलिफोर्निया के लेलेंड स्टैनफोर्ड द्वारा की गई थी, जिनकी पत्नी का नाम जेन स्टैनफोर्ड था। इसका नामकरण उनके एकमात्र बेटे लेलेंड स्टैनफोर्ड जूनियर के सम्मान में गया, जो अपने 16वें जन्मदिन से ठीक पहले मृत्यु को प्राप्त हो गया. उनके माता-पिता ने इस विश्वविद्यालय को अपने ही बेटे को समर्पित करने का फैसला किया और लेलैंड स्टैनफोर्ड ने अपनी पत्नी से कहा कि, "कैलिफोर्निया के बच्चे हमारे बच्चे होंगे."14 मई 1887 को आधारशिला रखी गई और योजना और निर्माण के छह साल बाद विश्वविद्यालय को आधिकारिक तौर पर 1 अक्टूबर 1891 को खोला गया, जिसमें 559 छात्र और 15 शिक्षक थे जिसमें सात कार्नेल से थे।।जब स्कूल खोला गया तब छात्रों से ट्यूशन के लिए राशी नहीं ली गई।स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय का आदर्श वाक्य *"Die Luft der Freiheit weht"* (डी लुफ्ट डेर फ़्राइहाइट वेट) प्रेसीडेंट जॉर्डन द्वारा चयनित है। यह जर्मन से अनुवादित है, इस उद्धरण ’उलरिश फ़ौन हट्टन’ का अर्थ है "स्वतंत्रता की हवा बहती है। " यह आदर्श वाक्य प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तब विवादास्पद था जब जर्मनी में हर चीज़ पर संदेह किया जाता था; उस समय विश्वविद्यालय ने इस बात से इनकार किया कि यह उनका आधिकारिक आदर्श वाक्य है। इस विश्व विधालय को को एक सहशिक्षा संस्था के रूप में स्थापित किया गया था।लेकिन महिलाओं द्वारा बड़ी संख्या में दाखिला लेने की वजह से जल्दी ही जेन स्टैनफोर्ड ने एक नीति की शुरूआत की जिसके तहत केवल 500 महिला छात्र ही दाखिला ले सकती थी। वह नहीं चाहती थी कि यह स्कूल "द वस्सर ऑफ द वेस्ट" बने क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि ऐसी हालत में यह उनके बेटें के लिए एक उपयुक्त स्मारक नहीं बन पाएगा।इसलिए 1933 में इस नीति को संशोधित किया गया जिसके तहत पूर्व स्नातक के लिए स्त्री पुरुष का अनुपात 3:01 निर्दिष्ट किया गया।यह 3:1 का "स्टैनफोर्ड अनुपात" 1960 के दशक तक बनाए रखा गया. 1960 के दशक के अंत तक पूर्व स्नातक के "अनुपात" को 2:1 रखा गया, लेकिन 2005 तक, स्नातक नामांकन के लिए लिंगों के बीच विभाजन लगभग समान हो गया, लेकिन स्नातक स्तर पर पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में बढ़कर लगभग 2:01 हो गई।स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय 8,180-एकड़ (3,310 हेक्टर) क्षेत्र में फैला हुआ है।एक वर्ल्ड रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के बीच स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के स्नातक कार्यक्रम को चौथा स्थान दिया गया है और अमेरिका में यह दूसरे स्थान पर है। यहाँ पर खेलों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।खेल के लिए बड़े बड़े खेलमैदान यहाँ मिल जाएँगे।महिला और पुरुषों की टीमें अंतर महाविद्यालय खेल के अतिरिक्त ग्रीष्म ओलंपियाड में भी अपना विशेष स्थान रखती हैं।*स्टैनफोर्ड डेली* के मुताबिक स्टैनफोर्ड प्रत्येक ग्रीष्म ओलंपियाड में 1908 से लगातार भाग ले रहा है,2004 में स्टैनफोर्ड के एथलेटिक्स ने ग्रीष्म खेलों में 182 ओलंपिक मेडल जीते थे। वास्तव में 1912 से लेकर लगातार हर एक ओलम्पियाड में स्टैनफोर्ड के एथलेटिक्स ने कम से कम एक पदक से लेकर 17 पदक तक जीता है।स्टैनफोर्ड एथलेटिक्स ने 2008 समर खेलों में 24 पदक जीते, जिनमें 8 स्वर्ण पदक, 12 रजत पदक और 4 कांस्य पदक हैं। यहाँ के परिसर में बहुत बड़े बड़े हरेभरे पार्क चारों तरफ़ बड़े बड़े पेड़ लगे हैं।जिस समय हम वहाँ पहुचे उस समय कला वर्ग के छात्र-छात्राओं को डिग्रियां वितरित हुई थी।वे अपने काला गाउन पहने अपने हाथों डिग्रियां लिए परिसर में अपनी फोटो खिचवा रहे थे।यहाँ लगभग सभी संकायों में स्नातक और स्नातकोत्तर ,एम बी ए ,के अतिरिक्त ही साथ ही इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज भी इस परिसर में हैं।कला वर्ग की अलग गिर्घा यहाँ पर है जिसमें बहुत ही सुंदर ऐतिहासिक कलाकृतियां कला की बिल्डिंग के बाहर लगी हैं।यहाँ बहुत बड़ी डिजिटल लाइब्रेरी भी है इसमें आठ मिलियन पुस्तकों का संग्रह है। यहाँ परिसर इतना बड़ा है कि पैदल पूरे परिसर में घूमना बड़ा ही कठिन कार्य है।इस समय महें रात्रि के लगभग साढ़े सात से अधिक का समय हो गे था,लेकिन यहाँ पर सूर्यास्त लगभग नो बजे होता है इसलिए इस समय भी अच्छी धूप थी।यहाँ एक बहुत ही अजीब बात हमें देखने को मिली कि कहीं पर भी कोई मुख्य द्वार जैसा नजर नहीं आया।परिसर में भी चौड़ी सड़कें थी।यूनिवर्सिटी का नाम हमने ढूँढने की बहुत कोशिश की लेकिन कहीं भी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी अलग से लिखा हुआ हमें नहीं मिल पाया।चारों तरफ़ घूमाने के बाद अब घर वापसी की तैयारी थी ।अत: हम अपने विश्राम स्थल की और चल दिए।

Tuesday, 1 July 2025

4.रेडवुड नेशनल पार्क कैलिफोर्निया (अमेरिका यात्रा 2)

रेडवुड पार्क चार अविश्वसनीय पार्कों का एक परिसर है, जिसका प्रबंधन नेशनल पार्क सर्विस और कैलिफोर्निया स्टेट पार्क द्वारा साझेदारी में किया जाता है। ये चार पार्क रेडवुड नेशनल पार्क, जेडीया स्मिथ रेडवुड्स स्टेट पार्क, डेल नॉर्टे कोस्ट रेडवुड्स स्टेट पार्क और प्रेयरी क्रीक रेडवुड्स स्टेट पार्क हैं। इन पार्कों में कुल मिलाकर दुनिया के बचे हुए प्राचीन तटीय रेडवुड वनों का 45% हिस्सा शामिल है। यह इतनी शानदार और इतनी कीमती जगह है कि इसे स्टोनहेंज, मिस्र के पिरामिड और ग्रेट बैरियर रीफ के साथ यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का नाम दिया गया है।
हर साल दुनिया भर से 10 लाख से ज़्यादा लोग यहां आते हैं।20वीं सदी की शुरुआत में, कैलिफोर्निया के लगभग सभी पुराने तटीय रेडवुड लकड़ी उद्योग द्वारा काट दिए गए थे, लेकिन कुछ प्रकृति प्रेमियों ने आगे आकर इन बचे हुए पेड़ों की रक्षा की। और यह  ’रेडवुड्स राइजिंग’ नामक एक संस्था के माध्यम से आज भी जारी है , इन्होंने नेशनल पार्क सर्विस और कैलिफोर्निया स्टेट पार्क के साथ मिलकर 70,000 एकड़ से अधिक क्षतिग्रस्त जंगल को पुन: उसके पूर्व स्वरूप में लौटाया। यहाँ पर सैंकड़ो वर्ष पुराने घने पेड़ मिल जाएँगे।इन पुराने पेड़ों का तना इतना बड़ा है कि हम चार लोगों ने अपने दोनों हाथ फैलाकर घेरने की कोशिश की तो भी लगा कि अभी कमसे कम चार लोग और मिलकर चैन बनायें शायद तब भी हम इसके तने को नहीं पकड़ पाएंगे अर्थात् लगभग पचास फीट मोटा इनका ताना रहा होगा।इनकी ऊँचाई भी लगभग दो सो फीट से अधिक होगी।कहते हैं कि यहाँ कुछ पेड़ तीन सो फीट से भी अधिक के हैं अर्थात् एफिल टावर से भी अधिक ऊँचे हैं। रास्ते में घने जंगलों में एक स्थान पर हम दुनिया के सबसे लंबे पेड़ों को देखने के लिए एक सुनसान रास्ते की और मड गए। इस रास्ते पर यातायात न के बराबर ही था सड़क भी कम चौड़ी है।इस समय शाम के लगभग सात बजे थे।हम कुछ मील ही आगे बढ़े होंगे कि सुनसान रास्ता देखकर हम वापस मुख्य सड़क की ओर मड गए।वापस आते समय फिर मन में आया कि चलकर देखते हैं।शाम ढलने का समय हो रहा था।फिर भी एक बार पुन: हम मड कर लोंगेस्ट ट्री देखने के लिए चले ही थे कि सड़क के किनारे बिकुल हमारी कार के समीप ही एक भालू पर नजर पड़ी,जिसे देखते ही हम कुछ दूर जाकर एक बार फिर वापस मुख्य सड़क कि तरफ़ मुड़ गए क्योंकि हो सकता था कि आगे अन्य कोई हिंसक जानवर मिल गया तो स्थिति विकट हो सकती है।वापसी पर हमने देखा कि वह भालू अभी भी सड़क के किनारे खड़ा था।यहाँ हमने देखा की वहाँ अकेला नहीं था उसके साथ एक और भाकू भी नजर आया।उससे कुछ दूरी पर हमने उसके कुछ वीडियो भी बनाये लेकिन हमने अपनी कार की खिड़किया बंद ही रखी। इस घने जंगलों से होते हुए हम रात्रि को लगभ आठ बजे पूर्व बुक कराए हुए होटल हॉलिडे इन में पंहुच गए।इस समय यहाँ पर अच्छी धूप होने के बाद भी तेज हवाओं के कारण ठंड थी।यह होटल रेडवुड क्षेत्र में ही यूरेका में है।यहाँ पर रूम में सामान रखकर कुछ समय आराम किया और उसके बाद रास्ते में पैक कराया हुआ भारतीय खाना खाया और रात्रि विश्राम के बाद अब पुन: तीसरे दिन की यात्रा सुबह के नाश्ते के बाद शुरू हो गई।हमारी कार इलेक्ट्रिक है इसलिए रास्ते में जहाँ भी कोई चार्जर पॉइंट मिलता वहीं पर कुछ समय रुककर हम कार जरूर चार्ज कर लेते थे ताकि रास्ते में परेशानी न हो।
तीसरे दिन 14 जून को प्रात: साढ़े नो बजे हम यूरेका से रवाना हो गए थे।आज भी हमे दिन भर रेडवुड पार्क के घने जंगलों से गुजरना था।यह रास्ता समुद्र के किनारे से होकर ही गुजरता है। कहीं समुद्र कि किनारा तो कहीं वापस घने जंगलों के बीच से सड़क थी।कहीं कहीं तो इतने घने जंगल थे कि लगता है जैसे धूप को भी जमीं तक आने के लिए बड़ी मुश्किल से रास्ता मिल रहा था।लगा रहा था कि ऊँचे ऊँचे पेड़ो के बीच से सूर्य देव नीचे झांकने की कोशिश में लगे हैं लेकिन कहीं कहीं वे असफल हो रहे हैं।हालांकि तेज धूप के कारण प्रकाश आ रहा था लेकिन जब कभी दिन में बादलों की ओट में सर्सज़ आ जाता होगा तो निश्चित ही यहाँ दिन में भी घना अँधेरा छा जाता होगा।कहीं कहीं पुराने बूढ़े वृक्ष जड़ों से उखाड़ कर अपनी आयु पूर्ण करने के कारण ज़मीन पर पड़े थे ।ये अधिकांश पेड़ बहुत लंबे और बहुत ही मोटे आकार के तने वाले थे जिन्हें देख कर स्पष्ट लग रहा था कि ये पेड़ कई सो साल पुराने ही होंगे। दोपहर को लगभग दो बजे हम हमने रास्ते में ही एक स्थान पर कार चार्ज के लिए लगाई और भोजन की तलाश की लेकिन यहाँ पर कोई रेस्टोरेंट ऐसा नहीं मिला जिस पर भारतीय भोजन मिल सके इसलिए हमने एक रेस्टोरेंट में वेजी सैंडविच खाया और आगे के लिए रवाना हो गए।यहाँ से हमें गोल्डन गेट ब्रिज होते हुए सैन फ्रांसिस्को पहुचना था। हम लगभग सायं साढ़े चार बजे गोल्डन गेट ब्रिज पहुंच गए।यहाँ एक पुल है गोल्डन गेट नाम ब्रिज के रंग को संदर्भित नहीं करता है, यह **प्रशांत महासागर** से सैन फ्रांसिस्को खाड़ी के प्रवेश द्वार का नाम है, जिसे गोल्डन गेट स्ट्रेट कहा जाता है।इस खाड़ी के नाम पर ही इस शहर का नाम सैन फ्रांसिस्को पड़ा होगा।इस गोल्डन गेट ब्रिज का निर्माण 1837 में हुआ उस समय यह समुद्र पर दुनिया का सबसे बड़ा झूलता हुआ पुल था।यहाँ पहुँच कर हम जैसे ही कार से बाहर निकले तो देखा वहाँ पर बहुत ही तेज ठंडी हवाएं चल रही थी।पुल के ऊपर बादल इधर उधर तैरते दिख रहे थे।ठंडी हवाओं के कारण हम, सभ ने गर्म जैकेट पहनी और गोलदेब गेट ब्रिज के नीचे पर्यटकों के लिए कुछ स्थान बनाये थे उसी तरफ़ हम भी चल दिए।नीचे समुद्र तट तक बढ़िया पक्की पगडंडी जैसी सड़क बनी थी जिसपर नीचे उतर कर समुद्र विशाल स्वरूप को देखा।दूर समुद्र के बीच की ओर एक टापू पर एक बिल्डिंग नजर आ रही थी।कहते वह कभी जेल के रूप में उपयोगी होती थी।समुद्र के इस तट पर चारों तरफ़ भूत ही हरियाली है। आसपास रंग बिरंगे फूल भी लगे थे साथ ही विविध तरह के लंबे लंबे पेड़ हैं।कुछ पेड़ तो इस प्रकार से लगा रहे थे मानों प्रकृति ने विशाल छतरियां बना रखी हों।हमने कुछ देर वहाँ के कुछ मनोरम दृश्यों को कैमरे में क़ैद किया और ऊपर की तरफ़ वापस आए तो देखा कि यहाँ भी एक विज़िटर ऑफिस था जहाँ कुछ लोग वहाँ की मोहर कागज पर,तो कुछ अपनी डायरी में लगा रहे हैं।इस तरह की मोहर यहाँ के अलग अलग फारेस्ट में जाने पर भी लोग लगते हैं ताकि उनके पास वहाँ पहुँचने का प्रमाण उनके पास रहे।यहाँ पर एक स्टाल भी है जिसपर विविध तरह के सामान बिक्री के लिए रखें हैं,जिनपर सैन फ्रांसिस्को या कैलिफ़ोर्निया लिखा था।
ठंडी हवाएं बहुत तेज होने के कारण हम वहाँ से तुरंत कार की तरफ़ आ गए और यहाँ से सैन फ्रांसिस्को में रात्रि विश्राम स्थल की तरफ़ रवाना हो गए।यहाँ पर हमने ईयरबीन बी बुक किया था यहाँ पर हमें तीन दिन रुकना था क्योकि यह बहुत ही बड़ा शहर है।लेकिन वहाँ तक पंहुचने से पूर्व हम यहाँ की सिलिकॉन वैली पहुचे जहाँ पर अनेकों आई टी कंपनियों के कार्यालय हैं।वहाँ हम मेटा के कार्यालय तक गए जिसका बहुत ही बड़ा कैंपस है।मुख्य द्वार के पास ही मेटा का निशान बना था और वहाँ लिखा था “1 हैकर्स वे” । अंदर पार्किंग तक ही जाने की परमिशन होती है इससे आगे केवल वहाँ काम करने वाले ही जा सकते हैं।यह कैम्पर बहुत बड़ा होने से कर्मचारियों के लिए अपने अपने ऑफिस तक जाने के लिए साइकिलें रखी हैं जीका उपयोग वे यहाँ से आगे जाने के लिए करते हैं।इसके बाद ऐपल के कार्यालय के कैंपस तक गए वहाँ भी अंदर जाना माना था।बाहर से कैंपस को देख कर वापस आगये।यह भी बहुत बड़े परिसर में फैला हुआ है।गूगल,माइक्रोसॉफ्टआदि अन्य सभी छोटी बड़ी कंपनियों के कार्यालय भी यही पर हैं। वहाँ से आने के बाद हम शाम को लगभग साढ़े सात बजे अपने निश्चित विश्राम स्थल पर पहुंचे जो कि बहुत बड़ा घर है।चार कमरों में आठ बेड रूम हैं।दो लिविंग रूम और रसोई,पीछे छोटा सा पार्क आदि सभी सुविधाओं से युक्त यह घर है।यहाँ हमने तीन दिन,चार रात विश्राम करना है।आज हमारी शादी की उनतालीसवीं वर्षगाँठ भी थी इसलिए बेटे बहू ने रास्ते में ही भारतीय भोजन के एक अच्छे होटल की बुकिंग करा दी थी।भारत के मशहूर शेफ संजय कपूर का होटल येलो चिली बुक किया गया था।आठ बजे के निश्चित समय हम वहाँ पहुँच गए और बढ़िया,स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हुए हमें लगा ही नहीं कि हम अमेरिका कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को में भोजन कर रहें है। वहाँ आस पास के टेबल पर बैठे अधिकांश लोग भारतीय परिवारों से ही दिखाई दे रहे थे जो सभी आपस में हिंदी में ही बात कर रहे थे,इनके बीच कुछ अन्य देशों के लोग भी भारतीय भोजन का आनंद लेते हुए दिखाई दिए।

Friday, 27 June 2025

बेलिव्यू से सैन फ्रांसिस्को,केलिफोर्निया कर यात्रा

अमेरिका की यह हमारी दूसरी यात्रा है। पिछले महीने ही दो माह के लिए एक बार फिर से हम बेलिव्यू (सिएटल) आए हैं यहाँ आसपास की लगभग सभी जगह गत बार हम देख चुके थे।अभी भी सप्ताह के अंत में जाते रहते हैं।अबकी बार किसी नई जगह जाने का विचार बेटे और बहू ने किया और निश्चित हुआ कि लांस एंजिलिस और उसके आसपास कहीं घूमने जाया जाए,जो कि यहाँ से लगभग दो घंटे की फ्लाइट है।कार द्वारा लगभग अट्ठारह घंटे का रास्ता है।वहाँ जाने के लिए तय हुआ कि 14 जून को कार द्वारा यहाँ से चलकर रास्ते में घूमते हुए वहाँ पहुँचेंगे।वापसी में फ्लाइट से आ जाएँगे।दस दिन पहले सभी बुकिंग करा दी गई।लेकिन 7 जून से ही सरकार के अवैध नागरिकों के विरुद्ध चलाए अभियान के विरोध में कुछ संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया और यह धीरे धीरे उग्र होता जा रहा है।रात्रि कर्फ़्यू भी लागू हो गया।कुछ उग्र भीड़ द्वारा कई वाहन जला दिए और आस-पास भी कई जगह आंदोलन प्रारंभ हो गए थे इसलिए वहाँ का कार्यक्रम रद्द कर कैलिफोर्निया में ही रेड वुड नेशनल पार्क होते हुए सेन फ्रांसिस्को( S F )और आस पास के स्थानों पर कार द्वारा चलाने का कार्यक्रम तय हुआ।यह लगभग दस का कार्यक्रम था।
हम 12 जून को सायं छ:बजे घर से निकल गए।रास्ते में ओरेगन स्टेट में वैंकूवर पोर्टलैंड में कार रिचार्ज के लिए कुछ देर रुके और पोर्टलैंड में ही रात्रि विश्राम के लिए रेजीडेंस इन होटल में रुके।यहाँ पर हम रात्रि को लगभग साढ़े नो बजे पहुंच गए थे।यहाँ पा रात्रि नो बजे तक शाम जैसी ही रोशनी रहती है क्योंकि अभी यहाँ सूर्यास्त का समय लगभग नो बजे का है इसलिए नो बजे के बाद ही अंधेरा ओना प्रारम्भ होता है।यहाँ बाहर बहुत ही ठंडी हवाएं चल रही थी।वैसे भी इन दिनों यहाँ पर मौसम भारत में कोटा की सर्दी जैसा ही है।जबकि वहाँ इन दिनों 46-47 डिग्री तापमान है।यहाँ अधिकतम तापमान 18-19 और न्यूनतम 8-10 डिग्री है।बीच में दो दिन 27-28 तक भी पहुँच गया था। हम रात्रि को भोजन घर से बना कर लाए थे क्योंकि बाहर रास्ते में भारतीय भोजन मिलने की संभावनाएं कम ही रहती हैं।रात्रि भोजन के बाद सभी तुरंत सो गए थे क्योंकि प्रात: यहाँ से रेड वुड नेशनल पार्क के लिए निकलना था।यह कैलिफोर्निया का सबसे बड़ा जंगल है।अगले दिन 13 जून को सुबह होटल में ही नाश्ता करके हम लगभग आठ रेड वुड नेशनल पार्क के लिए रवाना हो गए जो कि कैलिफोर्निया राज्य में आता है।अगला पड़ाव अब रेड वुड में ही था यहाँ से लगभग छ: सात घंटे की आज की ड्राइव होनी थी।रास्ते में दोपहर को लगभग एक इंडियन रेस्टोरेंट मिला तो हमने वहाँ पर भारतीय खाने का आनंद लिया क्योंकि रेडवुड के होटल भारतीय खाना मिलने की संभावना नहीं थी इसलिए यहीं से हमने शाम का भोजन भी हमने यहीं से पैक करा लिया। रास्ते में हरियाली और ऊँचे ऊँचे पेड़ों के बीच बहुत चौड़ी चौड़ी सड़कें बहुत सुंदर लग रही थी।यहाँ पर सड़कों पर यातायात बहुत ही व्यवस्थित और तेज गति से चलता है।यहाँ रास्ते में कहीं भी कोई पुलिस कर्मी नहीं होते हुए भी सभी वाहन अपनी लाइन में चलते हैं।दिन में लगभग चार बजे रास्ते में एक नीले रंग का बोर्ड लगा था जिसपे वेलकॉम तो कैलिफोर्निया है जिसपर सुंदर फूल भी बने हैं।यहाँ से अब कैलिफोर्निया की सीमा प्रारंभ हो गई,और साथ ही घने जंगल भी प्रांभ हो गए।हम सभी ने कैलिफोर्निया की इस सीमा पर बोर्ड के साथ ही कुछ फोटो भी और आगे रवाना हो गए।यहाँ से लगभग पंद्रह। मिनिट की दूरी पर ही ह्यूची (hiouchi )विजिटर सेंटर आ गया।वहाँ पहुँच कर हमने रेडवुड नेशनल पार्क के विषय में कुछ साहित्य और इसका नक़्शा बाई वहाँ उपलब्ध था।

Sunday, 22 June 2025

अमेरिका यात्रा 2, दुबई

एक बार फिर से अमेरिका यात्रा का अवसर मिला।दो साल पहले 2023 में मैं सपत्नी अपने देते की आग्रह पर अमेरिका गया था।अभी कुछ दिनों पूर्व ही बेटे काफ़ोन आया कि अमरका आ जाओ।हमने अपना पासपोर्ट देखा तो वह जून माह में समाप्त हो रहा था जिसमें केवल तीन माह का समय ही शेष था।अत:अमेरिका जाने के लिए पासपोर्ट का नवीनीकरण आवश्यक था।जिसके लिए ऑनलाइन आवेदन करना था।पिछली बार जब पासपोर्ट बनवाया था तो हमें जयपुर जाना पड़ा था लेकिन इस बार कोटा में ही पासपोर्ट ऑफिस प्रारंभ होने के कारण आशा थी कि शीघ्र पासपोर्ट बन जाएगा।अमेरिका का वीजा हमारे पास दस साल का पहले से ही था।गत बार हम अमेरिका गए थे तब हमें दस का वीजा मिल गया था। हमने ऑनलाइन आवेदन किया और दो दिन बाद ही एक अप्रेल का अपॉइंटमेंट मिल गया।श्रीमती जी का फॉर्म तकनीकी कमी के कारण ऑनलाइन नहीं भर पाया था।निर्धारित समय पर हम पासपोर्ट कार्यालय पहुँच गए थे।सभी कार्यवाही पूरी कर घर आकर श्रीमती जी का फॉर्म भी ऑनलाइन सबमिट किया और अगले ही दिन उनके पासपोर्ट की सभी औपचारिकता पूर्ण हो गई।अब पुलिस वेरिफिकेशन के बाद पासपोर्ट मिलना था।अगले ही दिन हमें पुलिस वेरिफिकेशन के लिए भी फ़ोन आ गया।जवाहरनगर थाने द्वारा सभी आवश्यक जानकारियां ले ली गई और अब इंतजार था नवीनीकरण के बाद पासपोर्ट प्राप्ति का। एक सप्ताह के अंदर ही श्रीमती जी का पासपोर्ट प्राप्त हो गया लेकिन मेरा पासपोर्ट नहीं आया।कुछ इंतजार के बाद एक बार हमने फिर से जवाहरनगर थाने में संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि शीघ्र ही मिला जाएगा।एस पी ऑफिस में कभी कभी देरी हो जाती है।थाने वालों का व्यवहार वास्तव में बहुत सहयोगात्मक था।पंद्रह दिन के इंतजार के बाद मेरा भी पासपोर्ट आ गया।पासपोर्ट मिलने की सूचना मिलते ही,बेटे ने 13 मई के टिकिट भेज दिए।टिकिट दुबई होते हुए सिएटल के कराए गए थे।इस बार एक दिन दुबई रुकने का कार्यक्रम था।मुंबई से तीन घंटे की फ्लाइट के बाद 13 को हमारा बुबाई में ही रुक कर दिन में वहाँ घूमने का कार्यक्रम रहा।बुबाई से 14 मई को प्रात: हमारी दूसरी फ्लाइट थी जिसके द्वारा हमें सिएटल जाना था।मुंबई से एमिरेट्स की फ्लाइट द्वारा हमारा टिकिट दुबई के लिए बुक कराया गया था।अगले दिन की फ्लाइट दुबई से सिएटल के लिए भी इसी कंपनी की ही थी ।एमिरेट्स की फ्लाइट में दूसरी फ्लाइट के बीच यदि छ: घंटे से 23 घंटे के बीच का समय हो तो वहाँ रहने के लिए होटल की व्यवस्था एमिरेट्स एयर लाइंस द्वारा ही की जाती है।दुबई में घूमने के लिए पहले से ही एक टैक्सी की बुकिंग भी करा ली थी। 9 मई को हम कोटा ट्रेन से मुंबई पहुंच गए ।वहाँ हमारा छोटा बेटा और बहू रहते हैं।वहाँ से 13 प्रात: 9:45 बजे हमारी फ्लाइट थी इसलिए इस दिन प्रात: फ्लाइट के समय से तीन घंटे पहले पहुंचने का मैसेज आ गया था।हम लगभग सात बजे एयरपोर्ट पंहुच गए थे।एक सूटकेस रखकर बाक़ी सामना लगेज में बुक करा दिया था।इस एक सूटकेस में हमने दुबई में एक रात रुकने के लिए आवश्यक कपड़े रख लिए थे।सुरक्षा जाँच और इमिग्रेशन आदि सभी प्रक्रिया इस बार बहुत ही जल्दी हो गया क्योंकि इस बार भीड़ नहीं थी मात्र पैंतालीस मिनिट में ही ही सभी आवश्यक कारवाही संपन्न हो गई थी।अभी हमरे पास लगभग दो घंटे का समय था,इसलिए सोचा क्रेडिट कार्ड के माध्यम से लॉज में फ्री आराम करने की व्यवस्था होती है इसलिए कुछ देर लॉज में रुका जाए।हम अड़ानी की एक लॉज में पहुंचे तो उन्होंने बताया कि हमारे पास लॉज की सदस्यता नहीं है।अन्य किसी में कोशिश नहीं करके हमने हमारी फ्लाइट की रवानगी स्थल वाले गेट पर ही पंहुचना उचित समझा और हम सीधे निर्धारित स्थान पर पहुंच गए इस बीच दुबई में रुकने के लिए वहाँ की करेंसी होना भी जरूरी था इसलिए एयरपोर्ट पर ही हमने रुपए के बदले दुबई की करेंसी दीरम ले ली।दुबई पर 1833 से अल मक़तूम वंश ने शासन किया है। इसके मौजूदा शासक मोहम्मद बिन रशीद अल मक़तूम संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति भी हैं।यहाँ मुख्यत: तेल का उत्पादन होता है।इसकी अर्थव्यवस्था में तेल के उत्पादन का बहुत बड़ा हाथ है।लेकिन अब इसके साथ ही यह एक बहुर बड़े पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित हो गया है।दुबई संयुक्त अरब अमीरात (UAE)सात अमीरातों में से एक है। यह फारस की खाड़ी के दक्षिण में अरब प्रायद्वीप पर स्थित है। दुबई,एक वैश्विक नगर तथा व्यापार केन्द्र के रूप में उभर कर सामने आया है मुंबई से हमारी फ्लाइट निर्धारित समय पर रवाना हो गई थी और भारतीय समय अनुसार दोपहर एक बजे और दुबई के अनुसार दोपहर के बारह बजे हम दुबई एयरपोर्ट पर पहुंच गए थे।फ्लाइट से उतरते ही बुक की गई टैक्सी के ड्राइवर मालिक का फ़ोन आया।हमने उसे बाहर ही इंतज़ार के लिए कहा क्योंकि पहले हमें वहाँ रुकने के लिए एयरलाइंस के होटल के विषय में भी जानकारी लेनी थी कि कहाँ व्यवस्था है। दुबई का एयरपोर्ट बहुत बड़ा है।यहाँ एक लिफ्ट से नीचे जाकर बाहर की ओर आना था।लिफ्ट में हम जैसे ही घुसे तो लगा कि शायद हम ग़लत जगह पर आ गए हैं क्योंकि लिफ्ट बहुत ही बड़ी थी आम आदमी के दो कमरेके बराबर थी ।निर्धारित होटल रुकने के विषय पूछते पूछते हम मुख्य द्वार के समीप आ गए।वहाँ जानकारी मिली कि थोड़ी देर यहाँ रुकें,होटल तक पहुंचा दिया जाएगा।थोड़ी देर प्रतीक्षा के बाद हमें बताया गया कि होटल के लिए बस आ गई है।हमारे रुकने की व्यवस्था एयरलाइंस द्वारा कॉप्थॉर्न होटल में की गई थी।मात्र पाँच मिनिट में हम होटल पंहुच गए।।  होटल पहुँच हमने ड्राइवर को होटल,एक घंटे बाद आने के लिए फ़ोन कर दिया ताकि इस बीच हम भोजन आदि भी कर सकें।निर्धारित रूम में अपना सूटकेस रखकर हम डाइनिंग हॉल चले गए।यहाँ पर हमारे थाहने के साथ ही भोजन और नाश्ते आदि की सभी व्यस्था एमिरेट्स एयरलाइंस द्वारा ही की गई थी।डाइनिंग हॉल में हमने देखा की यहाँ पर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही तरह के भोजन की व्यवस्था थी।हम शुद्ध शाकाहारी हैं इसलिए बड़े ध्यान से भोजन की टेबल पर शाकाहारी भोजन के विषय में नाम आदि पढ़ कर ही हमने अपनी प्लेट में भोजन सामग्री ली।बहुत ढूँढने पर भी यहाँ रोटी जैसा कुछ भी नहीं मिला इसलिए केवल दल चावल ,फल और सलाद से ही काम चलाया। हम दोपहर के भोजन से निवृत हुए ही थे कि टैक्सी ड्राइवर भी आ गया।टैक्सी में बैठते ही उसने हमसे पूछा कि कहाँ चलना है।हमने केवल बुर्जख़लीफ़ा के ही काफ़ी चर्चे सुने थे इसलिए सबसे पहले बुर्जख़लीफ़ा चलने के लिए ही कहा,उसके बाद अन्य जो भी हो वह स्वयं ही बताये कि कौन कौन सी जगह जया जा सकता है।हमारी टैक्सी की बुकिंग दोपहर बारह बजे से दस बजे तक दस घंटे के लिए थी जिसमें से अब केवल आठ घंटे ही हमारे पास थे,क्योंकि अभी लगभग दो बज गए थे।हम अभी बुर्जख़लीफ़ा की तरफ़ चल दिए।रास्ते में बातचीत से लगा कि उसका बोलने का लहजा पंजाबी है तो हमने उससे पूछ ही लिया कि क्या वह पंजाब का रहने वाला है।उसने बताया कि उसका नाम मालिक ख़ान है और पंजाब का ही रहने वाला है लेकिन भारत वाले पंजाब का नहीं,वह पाकिस्तान वाले पंजाब का है।पाकिस्तान का नाम सुनते ही हम थोड़ा संशय में पड़ गए।क्योंकि अभी कुछ दिनों पूर्व ही भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ था।अगर रास्ते में कोई गड़बड़ हो गई तो?श्रीमती जी के धीरे मेरे कान में अपनी शंका प्रकट की।हमारी मनस्थिति देखते हुए उसने बड़ी सहजता से कहा कि आम पाकिस्तानी के मन में भारतीयों के प्रति कभी भी दुश्मनी का भाव नहीं रहा।केवल कुछ लोग अपनी राजनीति के लिए ही एक दूसरे के लिए दुश्मनी का वातावरण बनाये रखना चाहते हैं।हम भी उसकी बातों से सहमत थे।उसे मालूम था कि हम भारत से आए हैं इसलिए हमारी बातचीत हिंदी में ही हो रही थी। रास्ते में हमने देखा कि चारों और बहुत चौड़ी सड़के,जो बहुत ही साफ़ सुहारी हैं।यातायात भी बड़े नियम से ही चल रहा था।दूर दूर तक बहुत ऊँची ऊँची भव्य इमारतें बरबस ही अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करती हैं।बुर्जख़लीफ़ा के टिकिट की बुकिंग भी हमने ऑनलाइन ही पहले करा ली थी।बुर्ज खलीफ़ पहुँचने के बाद टैक्सी ड्राइवर मालिक के कार को पार्किंग में खड़ा किया और हमें अंदर बुर्जख़लीफ़ा तक छोड़ने के लिए हमारे साथ चल दिया।यहाँ की पार्किंग बहुत ही बड़े स्थान में फैली हुई है।ड्राइवर ने बताया कि बुर्जख़लीफ़ा के लिए मॉल से हो कर जाना पड़ेगा।यह मॉल बहुत ही बड़ा है और इसकी गिनती दुनिया के बहुत बड़े मॉल में होती है।चारों तरफ़ विभिन्न शोरूम बने हैं।लेकिन अभी हमें पहले बुर्जख़लीफ़ा तक पंहुचना था इसलिए ड्राइवर के साथ सीधे चलते गए लगभग पंद्रह मिनिट पैदल चलने के बाद बुर्जख़लीफ़ा की बुकिंग खिड़की आई।अब हमारे ड्राइवर ने हमें यहीं पर छोड़ दिया और कहा कि बुर्जख़लीफ़ा में ऊपर तक जाकर वापसी में मॉल में घूम कर वाटर फॉल के पास पहुँच कर फ़ोन कर देना मैं आ जाऊँगा।यहाँ तक आते समय मॉल में एक स्थान पर वाटर फॉल दिखा था जहाँ मिलना तय हुआ।
बुर्जख़लीफ़ा की टिकिट विंडो पर हमने अपने मोबाइल में टिकिट दिखाया तो उसने वह देख कर हमें टिकिट की हार्ड कॉपी दे दी और हम बताए गए निर्धारित रास्ते से आगे बढ़ते चले गए।यहाँ रास्ते में रेलिंग लगी हुई थी।बहुत लंबा रास्ता रैंप पर तय कराटे हुए हम ऊपर चढ़ते जा रहे थे।बीच में एक लिफ्ट आई उसके मध्यम से ऊपर गए तो वहाँ पर एक बार फिर से रैंप पर आगे बढ़ते गए।पूरे रास्ते में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिससे पूछा जाए कि कब तक और कहाँ तक चलना है।सभी एक दूसरे के पीछे चलते जा रहे थे।हमारे आगे भी कुछ लोग थे जिनके पीछे हम छ रहे थे।लगभग पंद्रह बीस मिनिट के चलने के बाद देखा कि अब आगे रास्ता बंद है और एक दूसरी लिफ्ट और आ गई जिसके बाहर एक कर्मचारी खड़ा था जिसने अन्य लोगों के साथ हमें भी वहीं पर रोक दिया।जिसे देखकर हमें तसल्ली आई की हम गंतव्य स्थान तक पहुँच गए हैं और अब लिफ्ट द्वारा ऊपर निर्धारित स्थान तक पहुंचा जाएगा। कुछ क्षण रुकने के बाद लिफ्ट खुली जिसमें से ऊपर गए हुए कुछ पर्यटक बाहर निकले और हम उस लिफ्ट में अंदर जैसे ही घुसे वहाँ नीले रंग की बहुत ही मध्यम लाइट जल रही थी।जैसे ही लिफ्ट ने ऊपर जाना शुरू किया तो लिफ्ट के चारों ओर अंडर की दीवारों पर ऊपर जाते हुए बाहर के दृश्य ,हम कब कौनसे तल पर हैं और कितनी ऊँचाई पर है सब लिखा हुआ आ रहा था।बुर्जख़लीफ़ा आठ अरब डॉलर की लागत से छह साल में निर्मित 820 मीटर ऊँची 163 मंज़िला दुनिया की सबसे ऊँची इमारत है इसका लोकार्पण4 जनवरी2009 को भव्य उद्घाटन समारोह के साथ किया गया। इसमें तैराकी का स्थान, खरीदारी की व्यवस्था, दफ़्तर, सिनेमा घर सहित सारी सुविधाएँ मौजूद हैं। इसे 96 किलोमीटर दूर से भी साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। इसमें लगायी गयी लिफ़्ट दुनिया की सबसे तेज़ चलने वाली लिफ़्ट है। “ऐट द टॉप” नामक एक दरवाज़े के बाहर अवलोकन डेक बनी है जो कि 124 वीं मंजिल पर,है इसे 5 जनवरी 2010 को सभी के लिए खोला गया।यह 452 मीटर (1,483 फुट) पर, दुनिया में तीसरे सर्वोच्च अवलोकन डेक हैं। लगभग एक मिनिट में ही हमारी लिफ्ट 124 वीं मंजिल पर पहुंच गई।लिफ्ट से बाहर निकल कर हमने देखा कि जो बिल्डिंग नीचे सड़क से बहुत ऊँची ऊँची लग रही थी वे अब बहुत छोटी नजर आ रही थी।अब हम 452 मीटर अर्थात 1,483 फिट की ऊँचाई पर थे।चारों तरफ़ ग्लास लगा हुआ था जिसमें से चारों तरफ़ का नजारा साफ़ देखा जा सकता है।नीचे चल रही कार और एनी वाहन सड़क पर खिलौने की तरह से दिखाई देते हैं।सभी लोग चारों तरफ़ के ख़ूबसूरत नज़ारों को अपने अपने मोबाइल के कैमरे में क़ैद कर रहे थे।ऊपर से कई समुद्र का पानी तो कहीं सड़कों का जाल नजर आता है।चारों तरफ़ से अवलोकन और फ़ोटो खिचने के बाद हम लिफ्ट द्वारा वापस नीचे की तरफ़ आए और अब मॉल में घूमने का विचार था।लेकिन पैदल चलते चलते कुछ थकान महसूस होने लगी।इच्छा हुई कि कहीं पर कुछ देर बैठ कर चाय पी जाए ताकि कुछ थकान कम हो।हम चाय की तलाश करते हुए मॉल में आगे बढ़े लेकिन यहाँ कोल्ड ड्रिंक्स,कॉफी और अन्य फास्टफूड के स्टॉल ही अधिक नजर आए।चलते चलते एक जगे लिखा था कड़क चाय,हमने वहाँ जाकर पहले पूछा कि यहाँ दूध वाली चाय मिल जाएगी क्या?उसकी स्वीकारोक्ति के बाद के बाद हमने एक चाय का ऑर्डर दिया जिसकी क़ीमत तीस दीरम है।दीरम यहाँ की मुद्रा है।लगभग 23.5 रुपए के बराबर दीरम होती है।कुछ ही देर में जब चाय आई तो हमने देखा कि एक चाय केतली भरकर चाय थी साथ में दो बड़े ख़ाली कप भी दिए ।हमने जब कप में चाय डाल कर जैसे ही चाय की चुस्की ली तो वास्तव में चाय अच्छी बनी थी और मात्र में भी बहुत अधिक थी।इससे पूर्व हमने यहां दुबई के एयरपोर्ट पर भी एक बार चाय पी थी जो बड़ी ही मुश्किल से पी गई थी। चाय पीने के बाद हम दुनिया के सबसे बड़े मॉल का अवलोकन करने चल पड़े।यहाँ चारों तरफ़ बहुत बड़े बड़े शो रूम बने हैं जहाँ बड़ीं बड़ी कंपनियों के उत्पाद उपलब्ध हैं।खेल के लिए भी इसमें स्थान है।कुछ लोग स्केटिंग भी कर रहे थे। एक स्थान पर कुछ कलाकार अपने गानों से लोगों का ध्यान आप[अनी तरफ़ आकर्षित कर रहे थे।यहाँ पर चिन एक अलग ही बाजार है जिसमे वहाँ की विभिन्न वस्तुयें मिलती हैं।मनोरंजन के लिए यहाँ पर सिनेमा थिएटर भी हैं थोड़ी देर इधर उधर घूमते हुए हम उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ पर हमें ड्राइवर ने मिलने के लिए कहा था।यहाँ एक सुंदर वाटरफॉल है जिसमें ऊपर नीचे की ओर आते हुए कई पुरुष कलाकृतियाँ बनी थी।वहाँ से ड्राइवर को फ़ोन किया और हमने कुछ फ़ोटो भी वहाँ ली ।कुछ देर में ही वहाँ ड्राइवर आ गया और हम वहाँ से आगे के लिए रवाना हो गए। यहाँ से हम म्यूजियम गए जिसका आकार विशेष प्रकार का है।इसे भविष्य का संग्रहालय कहा गया है।यहाँ का मुख्य पुराना संग्रहालय पुर्राने किले में स्थित है।यह नवीन और भविष्यवादी विचारधाराओं को समर्पित एक मील का पत्थर है।यह भविष्य का संग्रहालय एक टोरस आकार की इमारत है जिसमें भविष्य के बारे में एक कविता के रूप में खिड़कियां हैं, जो महामहिम शेख मोहम्मद बिन मकतूम ,उपराष्ट्रपति और प्रधान मंत्री द्वारा लिखी गई है। संयुक्त अरब अमीरात और दुबई के शासक दुबई फ्यूचर फाउंडेशन द्वारा स्थापित संयुक्त अरब अमीरात की सरकार ने 22 फरवरी 2022 को संग्रहालय खोला तारीख का चुनाव आधिकारिक तौर पर किया गया ।हमने इस बहुत ही विशेष आकृति वाली इमारत का बाहर से ही अवलोकन कर फ़ोटो ली और आगे के लिए बढ़ चले।क्योंकि हमारे पास समय कम ही था। इस बीच सिएटल से बेटे का फ़ोन आया,उसने ग्लोबल विलेज देखने के लिए कहा तो हमने ड्राइवर से वहाँ चलने के लिए बोल दिया।उसने बताया कि यहाँ से लगभग एक घंटा वहाँ तक जाने का लगेगा।रास्ते में एक विशाल फ़ोटो फ्रेम था कुछ देर हम वहाँ रुके।यह स्टील का बना हुआ बहुत ही विशाल है इसकी ऊँची 150 मीटर है लोग यहाँ खड़े होकर फोटो खींच रहे थे।यहाँ अंदर पार्क और ऊपर जाने के लिए लिफ्ट भी है।लेकिन हम इससे भी ऊँची बिल्डिंग पर ऊपर तक जा चके थे इसलिए हम बाहर से ही देखकर आगे के लिए रवाना हो गए। अब हमें ग्लोबल विलेज पहुचना था।हम लगभग छ: बजे वहाँ पहुँच गए।इस विलेज का खूबसूरत मुख्य द्वार बहुत दूर से दिखाई दे रहा था।पास जाने पर वह और भी सुंदर लग रहा था।यहाँ पर बहुत ही बड़े क्षेत्र में पार्किंग की व्यवस्था थी।कार पार्किंग में खड़ी करके ड्राइवर ने हमें बताया कि गेट के पा ही टिकिट विंडो है वहाँ से टिकिट लेकर अंदर प्रवेश कर सकते हैं।यहाँ पर टिकिट की रेट 30 दीरम शनिवार,रविवार और छुट्टी के दिनों में तथा सामान्य दिनों में पच्चीस दीरम है।हमने टिकिट लिए और मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अंदर दोनों और विविध देशों के पंडाल दिखाई दिए। यहाँ मेले के जैसा वातावरण रहता है। अंदर प्रवेश करते ही स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी की प्रतिमा लगी है।विभिन्न देशों के अपने अपने उत्पादन और वहाँ की संस्कृति के दर्शन यहाँ एक ही परिसर में देखने को मिल जाते हैं।चारों तरफ़ रंगबिरंगी लाइटें लगी है।एक जगह विभिन्न प्रकार की रगबीरंगी लाइट के साथ ही फ़ाउंटेन भी लगे हैं।कई देशों का अपना अपना खान पान,वस्त्र,वि अन्य उत्पादन यहाँ उपलब्ध हैं।जब भारतीय पंडाल आया तो वहाँ इंडियन चाट, वि अन्य जायकेदार व्यंजनों की दुकाने नजर आई।अंदर भारतीय कपड़े व अन्य उत्पाद भी थे।यहाँ पर भारत के अतिरिक्त ईरान,इराक़,ओमान,चीन ,अमेरिका,पाकिस्तान और बांग्लादेश के अतिरिक्त अन्य भी देशों के पंडाल लगाए गए हैं।कहते है कि यहाँ पर लगभग सत्तर देशों के पंडाल लगे हैं।सीमित समय में सभी पंडाल पर घूमना हमारे लिए संभव नहीं था क्योंकि ड्राइवर ने बताया कि आठ बजे बाद ट्रेफिक बढ़ जाता है इसलिए समय सीमा में ही यहाँ से रवाना हो जायें तो ठीक रहेगा।यह विलेज प्राय: सितंबर अक्टूबर से मई माह तक ही रहता है।गर्मियों में बंद रहता है।इस बार आठ मई तक ही सीमा थी लेकिन इसे एक स्पतः आगे बढ़ा दिया गया था इसलिए हम इसे देख सके। हम आठ बजे से पूर्व बाहर पार्किंग में निर्धारित स्थान पर आ गए थे।कुछ देर बाद ही ड्राइवर भी कार लेकर आ गया।यहाँ सेव हमें आज की यात्रा यहीं समाप्त करके होटल वापस पहुँचने के लिए चल दिए।इस बीच बेटे के मित्र का भी फ़ोन आया जो कि अभी दुबई में ही रहता है।हमने उसे होटल पहुँचने पर मिलने को कहा।होटल पहुँच कर सायं के भोजन के लिए हम भोजन शाला पहुचे और एक बार फिर कुछ सात्विक भोजन की तलाश की लेकिन अभी भी हमारे खाने योग्य केवल दाल चावल और फल ही थे।हमने उसी से काम चलाया।भोजन के बाद हम अपने रूम पर चले गए।थोड़ी देर बाद बेटे के मित्र का फ़ोन आया कि वहाँ होटल में आ गया है।लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से उसे हमारे रूम तक नहीं आने दिया।हम नीचे स्वागत कक्ष में ही आ गए।यहाँ बहुत देर तक इधर उधर की बातें चलती रही और पता ही नहीं लगा कि कब रात्रि के साढ़े ग्यारह बज गए।
उसके रवाना होने के बाद हम भी अपने रूम में चले गए। सुबह सात बजे तक तैयार होकर हमें अब आगे की यात्रा के लिए रवाना होना था।हमे बताया गया था कि सुबह सात बजे तक तैयार होकर आ जायें यहाँ से बस द्वारा एयरपोर्ट छोड़ दिया जाएगा।दूसरे दिन प्रात:साढ़े छ: बजे हम तैयार होकर नाश्ते के लिए पहुँच गए।यहाँ ब्रेड बटर और थोड़ा जूस लिया और बस की प्रतीक्षा में निर्धारित स्थान पर आ गए।यहाँ कुछ देर बाद ही बस गई।बस द्वारा पाँच मिनिट में ही एयरपोर्ट पहुँच गए।यहाँ पर फिर एक बार बार सुरक्षा तलाशी का क्रम प्रारंभ हुआ और अमा निर्धारित गेट पर आठ बजे पहुँच गए।यहाँ से सिएटल के लिए 9:45 बजे हमारी फ्लाइट थी।साढ़े आठ बजे से ही एक बार पुन: गहन जाँच और तलाशी ली गई।साथ में लिया गया बैग भी अच्छी तरह से दोबारा चेक किया गया।पिछली बार भी जब हम अमेरिका गए थे तो इसी तरह दोबारा जांच की गई थी।सभी आवश्यक जाँच के बाद हम सिएटल के लिए अपनी फ्लाइट तक पहुँच गए।यहाँ से निर्धारित समय पर हमारी फ्लाइट रवाना हो गई और चौदह घंटे की यात्रा के बाद हम सिएटल पहुँच गए।अमेरिका के समय के अनुसार दोपहर के एक बजे 14 मई को हम यहाँ पहुँचे जबकि भारतीयसमय के अनुसार 15 तारीख़ के रात्रि साढ़े बारह बजे का समय हो गया था।

Wednesday, 14 February 2024

दिल का हो गया ट्रेफिक जाम

दिल का हो गया ट्रेफिक जाम (मेरी पहली हॉस्पिटल यात्रा और वह भी दिल के रोग के कारण ) ———————- दिसम्बर माह में जैसे ही सर्दी की शुरुआत हुई ,तो एक दिन प्रातः रनिंग में साँस लेने में कठिनाई आई ।तीन चार दिन निरंतर कठिनाई पर फिज़िशियन को दिखाई तो उन्होंने भेज दिया दिल के डाक्टर के पास ।हम पूरी तरह से आश्वस्त थे कि हम तो वैसे ही पत्थर दिल हैं भला हमारे दिल में किसी को क्या मिलेगा ।लेकिन श्रीमती के आदेश पर तुरन्त दिल के डॉक्टर के पास गये तो उन्होंने कुछ जाँच की और घोषित कर दिया कि हमें जरुर दिल का रोग है ।हमारे साथ ही श्रीमती जी को भी विश्वास नहीं हुआ ,क्योंकि 65 की उम्र में भला हम क्यों दिल का रोग लगायेंगे।लेकिन डॉक्टर ने कह दिया कि एंजियोग्राफी करानी होगी ओर सम्भव है दिल का ट्रेफिक जाम हो ।जिसके लिये स्टेंट डाले जा सकते हैं ।हमारा भी मन नहीं माना और एक महीने की दवा लेकर वहाँ से घर का रास्ता नापा । घर आने पर कुछ दिन दवा ली लेकिन छोटे बेटे को मालूम हुआ तो तुरन्त कोटा आया और माँ बेटे ने भाईसाहब के बड़े बेटे डा उदय से मिलकर न जाने क्या खिचड़ी पकाई कि नो जनवरी को जैसे ही मैं अपनाघर आश्रम से आवश्यक कार्य सम्पन्न कर आया तो आदेश हुआ कि जयपुर चलो ।मैंने समझना भी चाहा कि क्या जरूरत है लेकिन आखिर सेकण्ड ओपिनियन के लिए जयपुर के लिए रवाना हो गये और डॉक्टर को दिखाया तो जाँच के बाद तुरन्त भर्ती होने के आदेश देते हुए उन्होंने भी एंजियोग्राफी का फरमान जारी किया । अब भला हम भी क्या करते सभी की सलाह पर पहली बार किसी हॉस्पिटल में भर्ती होने का आनन्द लेने के लिए हम भर्ती हो ही गए ।हमें अभी भी विश्वास था कि हमारे दिल का ट्रेफिक बिल्कुल साफ मिलेगा और थोड़ी देर में डॉक्टर भी कहेंगे कि सब ठीक है बिल का भुगतान करो और घर जाकर आराम करो ।पूरे विश्वास से भरे हम कैथलैब में भी पहुँच गए ।टेबल पर लिटा कर चारों ओर से हमें डॉक्टर और उनके स्टाफ ने घेर लिया था ।एक हाथ टेबल के साथ कसकर टेप से बांध दिया हालाँकि हमारा वहाँ से भागने का इरादा नहीं था लेकिन शायद उन्हें विश्वास नहीं था । कुछ देर में ही बड़े से टी वी स्क्रीन पर कुछ हलचल हुई और तार नुमा कुछ इधर उधर दौडा और डॉक्टर हमें वहीं छोड़ दूसरे कमरे में चले गये ।काँच से दूसरे कमरे में देखा की डॉक्टर ,श्रीमती जी और बेटे को कंप्यूटर पर कुछ देखा रहे हैं ।हमने भी तुरन्त मौक़ा देख कर उनके सहायक से पूछ ही लिया कि सब ठीक ही है ?सारा ट्रेफिक क्लियर है? लेकिन उनके जबाब ने हमारे अरमानों पर पानी फेर दिया ।उन्होंने बताया कि आपके दिल के तो सारे रास्ते ही बंद है तीनों आर्टरी बंद हैं एक 99%. तो दूसरी90% और तीसरी के भी हालात ठीक नहीं हैं ।हमें कुछ विश्वास नहीं हुआ क्योंकि निरन्तर रनिंग के बाद भी भला इस तरह सारे रास्ते जाम कैसे हो सकते हैं ।इसलिए हमने तुरन्त सवाल दागा कि इतने ही ब्लॉकेज हैं तो मैं चल कैसे रहा हूँ ? इसपर उनका था कि ज़रूर लोगों की दुआएँ आपके साथ हैं वर्ना ऐसी स्थिति में लोग स्वयं चल कर नहीं आते उन्हें लाया जाता है । खैर अब हम भी क्या करा सकते थे डॉक्टर को जो करना था किया ।बाद में हमें मालूम हुआ कि फिलहाल 99% ट्रेफिक जाम वाली आर्टरी में दो स्टेंट डालकर रक्तप्रवाह प्रारम्भ कर दिया है ।चोबीस घण्टे ICU में रहने के बाद घर आये तो मालूम हुया की स्थिति तो बायपास सर्जरी की थी जिसे स्टेंट डालकर पूरा कर दिया ।अब शेष दो आर्टरी का रक्त प्रवाह शुरू कराने के लिए पच्चीस दिन बाद 06/02/24 को एक बार फिर से हमें उसी ऑपरेशन टेबल पर पहुँचा दिया गया । हम बड़े इत्मीनान से टेबल पर लेट गए ,बिना किसी भय के ,क्योंकि पिछली बार ऑपरेशन जैसा कुछ अहसास भी नहीं हुआ था इसलिए भला अब हमें किस बात का डर । फिर से टी वी स्क्रीन पर एक तार नुमा औजार की हलचल हुई लेकिन इस बार थोड़ी देर बाद ही लगा की किसने सीने में सुई चुभो दी ।दर्द बड़ा असहनीय लगा ।इस बार सच में हमें लगा कि शायद आज की जो हमारी स्थिति है उसी को ‘दिन में तारे दिखना ‘कहते हैं। तीन बार हम बड़ी असहनीय स्थिति से गुज़रे थे ।लगा कि आज तो निश्चित रूप से हम ऊपर वाले से मिलने चले जाएँगे ।लेकिन हमें इस बात का संतोष था दोनों बेटे और बहुएँ भी यहीं हैं और श्रीमती जी तो हैं ही … यदि बेटे बहू इस समय अमेरिका में ही होते तो ….लेकिन तभी हमें याद आया कि हमारी हस्तरेखा में बहुत लम्बी उम्र लिखी है तो भला हम अभी लोक परलोक की बातें क्यों सोचें?इस तरह ,इस बार लगभग डेढ़ घण्टे का समय ऑपरेशन टेबल पर निकलना पड़ा ।अब ICU में वापस बेड पर पहुँचने पर हमें विश्वास हो गया कि हम अभी इसी लोक में हैं ।सब ठीक हो गया है ।बाद में मालूम हुआ कि इस बार की आर्टरी बहुत सख्त जान थी शायद मेरी तरह ।लेकिन डॉक्टर ऋषभ माथुर ने बड़ी कुशलता और सहजता से हमारे दिल को ट्रेफिक जाम से मुक्ति दिला ही दी ।इसीलिए तो आज मैं अपना हाल ए दिल आपके सामने लिख रहा हूँ । डा योगेन्द्र मणि कौशिक 14/02/2023

Sunday, 22 October 2023

चार धाम यात्रा ,बद्रीनाथ (चतुर्थ धाम ) 5

चार धाम यात्रा,बद्रीनाथ (चतुर्थ धाम ) 5 ————————————————- चार धाम यात्रा का अब अंतिम पड़ाव चौथा धाम बद्रीनाथ यात्रा की तैयारी शुरू हो गई ।केदारनाथ यात्रा के बाद रात्रि विश्राम करके हम 17/10/23 की सुबह भोजन करके लगभग दस बजे रवाना हो गये ।हमारा अगला पड़ाव बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित पीपलकोटी से कुछ पहले मायापुर में लक्ष्मी नारायण लॉज पर हमें पहुँचाना था ।यहाँ रात्रि विश्राम करने के बाद 18/10 की सुबह हम बद्रीनाथ के लिए रवाना हो गये ।बद्रीनाथ तक बस द्वारा पहुँच जा सकता है ।यहाँ पर केदारनाथ की तरह पैदल लम्बा मार्ग नहीं है ।लगभग आधा किलोमीटर पैदल चलाने पर ही मन्दिर तक पहुँच जा सकता है ।रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ तक की सड़क में प्रारंभिक कुछ मार्ग को छोड़कर शेष सड़क अच्छी और चौड़ी थी ।कुछ दूर भागीरथी फिर अलकनंदा नदी के किनारे ही सड़क मार्ग है ।कहीं रास्ते में चढ़ाई तो कहीं ढलान आता है । बद्रीनाथ की समुद्र तल से ऊँचाई 3583 मीटर(11105 फीट) है ।यहाँ पर केदारनाथ से भी अधिक ठंड रहती है ।आज दिन का तापमान यहाँ (-6) digri celsius है ।लेकिन धूप अच्छी निकली हुई है और मौसम आज ठीक है । बद्रीनाथ ,भगवान विष्णु का स्वरूप है एवं यह स्वयं प्रकट मूर्ति मानी जाती है बद्रीनाथ के विषय में कहा जाता है कि ब्रह्माजी के दो बेटे थे। उनमें से एक का नाम था दक्ष। दक्ष की सोलह बेटियां थी। उनमें से तेरह का विवाह धर्मराज से हुआ था। उनमें एक का नाम था श्रीमूर्ति। उनके दो बेटे थे, नर और नारायण। दोनों बहुत ही भले, एक-दूसरे से कभी अलग नहीं होते थे। नर छोटे थे। वे एक-दूसरे को बहुत चाहते थे। अपनी मां को भी बहुत प्यार करते थे। एक बार दोनों ने अपनी मां की बड़ी सेवा की। माँ खुशी से फूल उठी। बोली, ‘‘मेरे प्यारे बेटा, मैं तुमसे बहुत खुश हूं। बोलो, क्या चाहते हो ? जो मांगोगे वही दूंगी।’’ दोनों ने कहा, ‘‘माँ, हम वन में जाकर तप करना चाहतें है। आप अगर सचमुच कुछ देना चाहती हो, तो यह वर दो कि हम सदा तप करते रहे।’’ बेटों की बात सुनकर मां को बहुत दुख हुआ। अब उसके बेटे उससे बिछुड़ जायंगें। पर वे वचन दे चुकी थीं। उनको रोक नहीं सकती थीं। इसलिए वर देना पड़ा। वर पाकर दोनों भाई तप करने चले गये। वे सारे देश के वनों में घूमने लगे। घूमते-घूमते हिमालय पहाड़ के वनों में पहुंचे। इसी वन में अलकनन्दा के दोनों किनारों पर दों पहाड़ है। दाहिनी ओर वाले पहाड़ पर नारायण तप करने लगे। बाई और वाले पर नर। आज भी इन दोनों पहाड़ों के यही नाम है। यहां बैठकर दोनों ने भारी तप किया, इतना कि देवलोक का राजा डर गया। उसने उनके तप को भंग करने की बड़ी कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। तब उसे याद आया कि नर-नारायण साधारण मुनि नहीं है, भगवान का अवतार है। कहते है, कलियुग के आने तक वे वहीं तप करते रहें। आखिर कलियुग के आने का समय हुआ। तब वे अर्जुन और कृष्ण का अवतार लेने के लिए बदरी-वन से चले। उस समय भगवान ने दूसरे मुनियों से कहा, ‘‘मैं अब इस रूप में यहां नहीं रहूंगा। नारद शिला के नीचे मेरी एक मूर्ति है, उसे निकाल लो और यहां एक मन्दिर बनाओं आज से उसी की पूजा करना। नारद ने भगवान की बहुत सेवा की थी। उनके नाम पर शिला और कुण्ड़ दोनों है। कहते हैं कि प्रह्लाद के पिता हृण्यकश्यप को मारकर जब नृसिंह भगवान क्रोध से भरे फिर रहे थे तब यहीं आकर उनका आवेश शान्त हुआ था। नृसिंह-शिला भी वहां मौजूद है। ब्रह्म-कपाली पर पिण्डदान किया जाता है। दो मील आगे भारत का प्रथम गांव ‘माणा’है।पांच किलोमीटर दूर वसुधारा है। वसुधारा दो सौ फुट से गिरने वाला झरना है। आगे शतपथ, स्वर्ग-द्वार और अलकापुरी है। फिर तिब्बत का देश है। उस वन में तीर्थ-ही-तीर्थ है। सारी भूमि तपोभूमि है। वहां पर गरम पानी का भी एक कुण्ड है। इतना गरम पानी है कि एकाएक पैर दो तो जल जाय। यह ठीक अलकनन्दा के किनारे है जबकि अलकनन्दा का पानी बहुत ही ठंडा है ।बद्रीनाथ चार धाम में से एक है ।यहाँ का मन्दिर आठवीं सदी से भी पूर्व का माना जाता है ।इसके कपाट भी केवल अक्षय तृतीया से दीपावली के दो दिन बाद तक ही खुलते हैं। इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से भी पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों – योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को "पंच-बद्री" के रूप में जाना जाता है। बद्रीनाथ नाम की उत्पत्ति पर एक अन्य कथा भी प्रचलित है, जो इस प्रकार है -नारद जी एक बार भगवान् विष्णु के दर्शन हेतु क्षीरसागर पधारे, जहाँ उन्होंने माता लक्ष्मी को उनके पैर दबाते देखा। चकित नारद ने जब भगवान से इसके बारे में पूछा, तो अपराधबोध से ग्रसित भगवान विष्णु तपस्या करने के लिए हिमालय को चल दिए।जब भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक बर्फ पड़ने लगी ।भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बद्री के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं।माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि "हे देवी ! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बद्री वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बद्री के नाथ-बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा।"
बद्रीनाथ पहुँच कर हम जैसे ही मन्दिर की और बढ़े तो हमें तेज सर्दी काअहसास होने लगा ।अलकनंदा के उस पार पुल द्वारा हम पहुँचे तो वहाँ पर नारद कुण्ड (तप्त कुण्ड) जिससे तेज गर्म भाप निकल रही थी ,उससे सभी को स्नान करना था ।महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग अलग स्थान है ।हमने जैसे ही स्नान लिए कुण्ड के पानी को हाथ लगाया तो लगा जैसे इस पानी से हाथ ही जल जाएगा ।बहुत साहस कर पहले किनारे पर बैठ कर थोड़ा थोड़ा पानी शरीर पर डाला फिर जल्दी से कुण्ड में अंदर जाकर तुरन्त बाहर आ गये।पानी इतना गर्म था कि उससे अधिक देर तक रुकना संभव नहीं है ।स्नान के बाद हमने पितरों का तर्पण के लिए एक पंडित से पूजा कराई और फिर मंदिर में दर्शन के लिये गये ।मंदिर में अंदर गर्भगृह में पहुँचते ही भगवान बद्रीनाथ की अद्भुत छटा के दर्शन हुए ।मन होता है कि बस यहीं खड़े रह कर निहारते रहो ।लेकिन अढ़ाई देर तक रुकना संभव नहीं था ।बाहर निकलकर मुख्यद्वार से एक बार फिर से दर्शन किए ।अंदर परिसर में हनुमान ,लक्ष्मी जी, अन्य प्रतिमाएँ भी लगी थी । एक तरफ़ वहाँ आये दान के रुपयों की गिनती भी हो रही थी ।अब दर्शन के बाद हम वापस बस में बैठे और भोजन किया । पास ही माणा गाँव जो कि प्रथम गाँव भी कहलाता है वहाँ जाकर गणेश गुफा ,सरस्वती मंदिर ,माँ सरस्वस्ती नदी का उद्गम के साथ ही लुप्त होने का स्थान भी देखा । एक विशाल चट्टान जिसे भीम पुल भी कहते हैं नदी पर रखी थी । कहते हैं नदी पार करने के लिये भीम ने इस विशाल चट्टान को रखा जिसने पुल का काम किया ।आगे वसुधारा और स्वर्ग की सीढ़ियाँ भी बताई हैं हम वहाँ नहीं गये ।भीम पुल के पास ही चाय नाश्ते की दुकांभी थी जिसपर लिखा था हिंदुस्तान कि पहली दुकान ।कुछ लोगों इस दुकान पर चाय पी और फ़ोटो भी खिंचाई ।अब यहाँसे वापस बस पर आगे ।शाम तक हम अपने रात्रि विश्राम स्थल लक्ष्मीनारायण लॉज मायपुर ( पीपल कोटी) आ गये ।अब रात्रि विश्राम के बाद 19/10/23 को हम वापस हरिद्वार की और चल दिये ।प्रकृति की अनुपम छटा से दूर जाने का अब समय आ गया ।ऊँचे ऊँचे पर्वत ,चारों ओर हरियाली और देवदार के वृक्षों के साथ मीठे निर्मल ,शीतल जल के झरनों वाली इस देवभूमि को प्रणाम कर अब फिर से हम वापस हरिद्वार की ओर चल दिये । यहाँ से कुछ जयपुर की तरफ़ तो कुछ कोटा जाएँगे । मैं ऋषिकेश तक ही अन्य के साथ रहा । दो दिन देहरादून बड़े भाईसाहब के पास रुककर 21/10/23 को कोटा के लिए रवाना जिया । वास्तव में इस यात्रा की मीठी स्मृति चिरकाल तक रहेगी ।

Friday, 20 October 2023

चार धाम यात्रा (केदार नाथ ) 4

केदारनाथ यात्रा (तृतीय धाम )4 —————————————————————-
गंगोत्री के बाद अब केदार नाथ यात्रा की तैयारी थी । केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। हिमालय की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पाँच केदार (केदारनाथ ,तुंगनाथ ,रुद्र नाथ ,मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर ,इन सभी का निर्माण पाण्डवों ने कराया जो कि उत्तराखण्ड में स्थित हैं )में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अक्षय तृतीया से दीपावली के दो दिन बाद तक ही दर्शन के लिए खुलता है ।पत्‍थरों से कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराज जन्मोजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है ।आदि शंकराचार्य ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ, प्रमुख हैं ।दोनों के दर्शनों का बड़ा ही महत्ताहै। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश कर ,जीवन मुक्ति की प्राप्ति का मार्ग बतलाया गया है। कहते हैं कि भगवान विष्णु के अवतार महा तपस्वी नर और नारायण ने यहाँ भगवान शंकर की तपस्या की थी तो भगवान शंकर प्रसन्न होकर इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में अपना निवास बनाने के आशीर्वाद दिया । इस संबंध एक अन्य किवदंतीं भी है ।कहा जाता कि महाभारत के बाद पाण्डव पाप मुक्ति के लिए भगवान शिव से क्षमा माँगने काशी गये लेकिन भगवान शंकर पांडवों से रुष्ट थे और हिमालय पर गये लेकिन पाण्डव शिव की खोज जब यहाँ आ गये तो भगवान शंकर बैल के रूप में अन्य पशुओं साथ यहाँ से जाने लगे तो भीम दोनों पैर फैलाकर खड़े गये तो सभी पशु तो निकल गये लेकिन शिव ,भीम के पैरों के बीच से नहीं निकल कर ,दूसरी तरफ भागने लगे ।भीम उन्हें पहचान गये और उनकी पीठ पकड़ ली तो शिव लुप्त हो गये और उनकी पीठ वाला भाग यहाँ स्थापित हो गया ।कहते हैं कि सिर भाग पशुपतिनाथ के रूप में नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में है । केदारनाथ यात्रा अन्य सभी यात्राओं से कठिन यात्रा मानी जाती है ।यहाँ पर जाने के लिये पहाड़ी पर सोलह किलोमीटर की चढ़ाई वाला मार्ग है ।कहीं पर सीढ़ियाँ तो कहीं कंकरीट का ढलान वाला रास्ता है।केदारनाथ यात्रा के लिए ,उत्तर काशी से रुद्रप्रयाग के पास हमें पहले नाला नाम के स्थान पर जाना था ।वहाँ पर रात्रि विश्राम के बाद 15 तारीख़ को केदारनाथ जाने का कार्यक्रम तय हुआ।14 /10 की प्रातः साढ़े नो बजे हम सभी भोजन करके दस बजे तक उत्तर काशी से केदारनाथ से पूर्व नाला (रुद्र प्रयाग )यात्रा के लिए रवाना हो गये ।आज लगभग दो सो किलोमीटर की बस यात्रा करनी थी ।यहाँ सड़क की स्थिति बहुत ही दयनीय है ।जगह जगह से टूटी हुई तो है ।साथ ही कहीं कहीं तो सड़क के निशान भी नहीं हैं।सड़क की चौड़ाई बहुत ही कम है ।सामने से दूसरा वाहन आने पर बड़ी मुश्किल रहती ।कई जगह तो स्थिति यह है कि जरा सी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी वाली स्थिति रहती है ।हम शाम तक निर्धारित स्थान नाला पहुँचे जहाँ चौहान होटल में हमारे रहने की व्यवस्था है । रात्रि विश्राम के बाद सुबह हम सोनप्रयाग के लिए रवाना हो गये जो कि यहाँ से लगभग तीस किलोमीटर है ।सुबह लगभग छ : बजे जैसे ही हम सोनप्रयाग के लिये रवाना होने के लिये बस में सवार हुए तो देखा कि बस का आगे का एक टायर पंचर है। स्टेपनी बदलने क़रीब आधा घंटा लग गया । हमारे साथ तीन लोगों को सिरसी से हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जाना था ।अन्य सभी की भी इच्छा हेलीकॉप्टर यात्रा की थी लेकिन तत्काल उसकी व्यस्था नहीं हो पाई । केवल एक अन्य टिकिट की ही व्यवस्था हो सकी । 15/10 /23 प्रातः आठ बजे हम सोन प्रयाग पहुँच गये ।यहाँ से लगभग तीन किलोमीटर पैदल चल कर सीतापुर पहुँचे वहाँ से जीप द्वारा पाँच किलोमीटर गौरी कुण्ड पहुँचे ।इस पाँच किलोमीटर लिए ही पचास रुपये प्रति सवारी किराया लिया जाता है ।अब गौरीकुण्ड से मुख्य यात्रा प्रारम्भ होती है ।यहाँ से केदारनाथ मन्दिर की दूरी सोलह किलोमीटर है।सम्पूर्ण मार्ग चढ़ाई वाला है ।रास्ता कहीं टूटा हुआ गड्ढे वाला तो कहीं चिकना सपाट भी है लेकिन इस सोलह किलोमीटर में लगभग छ:हजार फीट की पहाड़ी चढ़ाई है ।केदारनाथ की समुद्र ताल से कुल ऊँचाई 3583 मीटर(11775फीट) है यहाँ से कुछ लोग पैदल यात्रा करते हैं।यहाँ से घोड़े ,पिट्ठू (बास्केट ,जिसमें सवारी बैठकर मज़दूर पीठ पर लादकर ले जाता है ),और पालकी भी यहाँ पर मंदिर तक जाने के लिए उपलब्ध हैं। हमारे ग्रुप के कुल बारह लोगों में से चार हेलीकॉप्टर से छ: घोड़े से और मैं और श्रीमती जी पैदल यात्रा पर निकल गये ।पूरा मार्ग घुमावदार था ।कहीं कहीं फिसलन भी थी । रास्ते में जगह जगह चाय ,नाश्ते की दुकाने लगी हैं।पीने के पानी के लिए प्राकृतिक झरनों का शीतल जल था जो थोड़ा सा पीने से ही शरीर में अंदर तक ठंडक मिल जाती है ।इन झरनों के पानी के सामने फ्रिज और आर ओ का पानी भी बेकार है । बहुत ही साफ और ठंडे पानी की व्यवस्था प्रकृति ने जगह जगह कर रखी थी ।फिर भी कुछ लोग बोतल वाले पैक पानी को ही पचास रुपये तक में खरीद कर पी रहे थे ।मेरे विचार से यहाँ पैक बोतल पानी पीने वालों ने ईश्वर के मुफ़्त उपहार की क़ीमत को नहीं समझा।
रास्ते में जैसे जैसे हम ऊपर की और जा रहे थे थकान के साथ साँस भी फूलने लगी थी ।ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ पर ऑक्सीजन बहुत है जिससे बहुत जल्दी साँस फूलने लगती है ।इसलिए आराम से रुकते हुए हम धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे ।श्रीमती जी के चेहरे पर थकान स्पष्ट नज़र आने लगी थी लेकिन फिर भी मेरे बार बार आग्रह पर भी घोड़े पर बैठने को तैयार नहीं थी ।इस बीच हम लगभग पाँच किलोमीटर चले होंगे कि तेज बारिश पड़ने लगी ।अब श्रीमती जी के मनोभाव को देखते हुए मैंने निर्णय लिया कि हम दोनों ही शेष मार्ग घोड़े से ही तय करते हैं।इस बार वे तुरंत तैयार हो गई क्योंकि मैं भी घोड़े से जाने के लिए तैयार था ।पाँच किलोमीटर आने में ही हमें लगभग दो घंटे समय लग गया था ।घोड़े पर सवार होने से पूर्व हम पहले बारिश कम होने प्रतीक्षा में एक रेस्टोरेंट बैठ गये ।इस बीच हमारे पास उपलब्ध भोजन के पैकेट्स हमने भोजन किया और बारिश के कम होने पर हमने अपनी शेष यात्रा घोड़े से प्रारम्भ कर दी ।रैन कोट हम कोटा से ही साथ लाये थे ,इसलिए हमने रैन कोट भी पहन लिया ।यहाँ पर सीढ़ियाँ यमुनोत्री की तरह ऊँची नहीं थी ।फिर भी घोड़ा जब अपने आगे के पैर अगली सीढ़ी पर रखता है तो निश्चित ही एक अज्ञात भय मन मैं रहता ही है ।रास्ते में चारों तरफ़ ऊँचे ऊँचे पर्वतों के बीच शीतल निर्मल जल के बहते हुए झरने वास्तव में मनमोहक तो हैं ही थकान में यात्रियों के लिए जीवनदायी भी हैं।प्रकृति के स्वरूप का आनन्द लेते हुए शाम लगभग साढ़े पाँच बजे हम मन्दिर परिसर के समीप पहुँच गये ।हमारे साथ के अन्य लोग जो घोड़े से गये थे वे भी हमसे कुछ पहले ही पहुँचे ।हेलीकॉप्टर वाले ठीक हमारे साथ ही पहुँचे ।वहाँ रात्रि विश्राम के लिए तीन कमरों (12 बेड) की व्यवस्था कर सभी मंदिर की ओर चल दिये ।हमें मालूम हुआ कि रात्रि में विशेष पूजा के लिए बुकिंग कराने के लिए काउंटर पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा जिससे हम गर्भगृह में जाकर पूजा कर सकते हैं।पाँच लोगों बैच बनाकर रजिस्ट्रेशन स्लिप बना दी जाती है ।हमने सर्वप्रथम काउंटर पर जा कर निर्धारित शुल्क जमा करके बारह लोगों के लिए दो स्लिप छ: छ: लोगों बनवा ली ।हमें अर्धरात्रि के बाद 1:45 बजे पूजा का समय मिला ।अब सांध्य आरती समय हो गया हम सभी ने इस आरती का आनन्द लिया ।वास्तव में अद्भुत दृश्य है ।मन्दिर परिसर में कुछ साधु ,विशेष वेशभूषा में शरीर पर भभूत लगाये हुए नन्दी की विशाल मूर्ति के चारों ओर परिक्रमा करते हुए आरती कर रहे थे ।जो विशेष आकर्षक दृश्य है ।आरती के साथ श्री केदारनाथ के दर्शन भी हमने कर लिये ।ठण्ड बहुत तेज थी । समय तापमान -3 digri celsius था उसपर पैरों के नीचे बारिश के कारण फर्श भी गीला हो रहा था जिससे सभी के पैर ठंड से सन्न होने लगे थे ।सभी तुरन्त अपने अपने जूते पहने और गरम गरम चाय पी ।अब भोजन का भी समय गया था अत:सभी ने वहीं भोजन किया और अपने रात्रि विश्राम वाले पर गए।रात्रि के लगभग नो से अधिक का समय हो गया था ।विशेष पूजा के लिए हमें 1:15 बजे पुन:मन्दिर जाना है ।ठंड प्रकोप बढ़ता जा रहा था ,इसलिए सभी अपने अपने बिस्तर में लेट गये ।पीने का पानी ठंडा था जिससे प्यास होते हुए भी पीने की नहीं रही थी ।कुछ देर विश्राम करके रात्रि एक फिर मन्दिर के लिए रवाना हो गये ।अभी तापमान -4डिग्री गया था।मंदिर पहुँचाने पर देखा कि इस समय नियमित दर्शन थे ।केवल बुकिंग वाले लोग ही अपने अपने निर्धारित समय कि अनुसार पहुँच रहे थे ।अब हमने ध्यान से अन्दर देखा कि वहाँ पाँचों पाण्डवों की मूर्तियाँ लगी थी गर्भगृह सामने चाँदी नंदी विराजमान थे एक ओर गणपति थे ।अन्दर गर्भगृह में पहुँचे तो वहाँ बीच में काले पत्थर के रूप में केदारनाथ विराजमान हैं जो कि बैल की पीठ की तरह से है ।वहाँ उपस्थित पंडित विधि पूर्वक पूजन कराया ।यहाँ इस केदारनाथ के स्वरूप पर पूजा में घी लगा कर मालिश का विशेष महत्व बताया गया है हम सभी ने भी पूजा की,घी लगाया और जलाभिषेक किया । पूजा से वापस लौटने में लगभग रात्रि के ढाई बाज गये।अब सभी थोड़ा आराम करने के लिए सभी बिस्तर में लेट गये ।सभी कुछ देर सो लिये और सुबह पाँच बजे सभी हैलीपैड की और चल दिये ।तीन लोगों की वापसी सुबह छ : बजे की थी ।अन्य भी कोशिश में थे कि संभवतः अन्य कुछ टिकिट मिल जायें तो हेलीकॉप्टर ही वापस जाएँगे ।लेकिन सात बजे तक प्रतीक्षा बाद टिकिट नहीं मिलने की संभावना को देखते हुए हम हैलीपैड रवाना हो गये ।छ: लोग कंडी से रवाना हुए और मेरे साथ दो अन्य घोड़ों से रवाना हुए ।हम कंडी वालों से लगभग एक घंटे बाद रवाना हुए क्योंकि घोड़े वाले कंडी से जल्दी पहुँच जाते हैं।अब वापसी मैं हम बड़ी सावधानी से घोड़ों पर बैठकर नीचे की ओर चल पड़े ।रास्ते में कुछ देर रुक चाय नाश्ते का आनन्द लेते हुए हम लगभग डेढ़ बजे नीचे पहुँच गये।कंडी से आने वाले भी रास्ते में थे । बीच बारिश शुरू हो गई थी ।कंडी से आने वालों में एक को छोड़कर अन्य सभी आगये लेकिन बारिश कारण हमसे कुछ दूर पहले वे रुक गये थे ।बारिश अब बहुत तेज होती रही थी ।हमारे टूर ऑपरेटर का फ़ोन भी आ रहा था ।उसने बताया कि मौसम बहुत ख़राब होने वाला है जितना जल्दी सको रुद्र प्रयाग बस तक पहुँच जाओ ।लगभग तीन बजे जैसे ही हमारी अंतिम सवारी नीचे पहुँची हम तुरन्त गौरीकुंड टैक्सी स्टैण्ड के लिए रवाना हो गये ।वहाँ से सीतापुर पहुँचकर पैदल रुद्रप्रयाग के लिये रवाना हो गए ।सभी को भूख भी लगी थी और थकान भी थी इसलिए बरसात के इस मौसम में तीन किलोमीटर का मार्ग भी बहुत लम्बा लग रहा था ।जैसे तैसे हम बस तक पहुँचे तो बस स्टैण्ड पर भी पानी भरा था ।बड़ी मुश्किल से बस तक पहुँचे तब जाकर कुछ राहत की साँस ली। तभी हमें मालूम पड़ा कि केदारनाथ यात्रा भी अब ख़राब मौसम के कारण बंद कर दी गई है ।सभी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि हम समय पर बस तक पहुँच गए।बस से हम अपने रात्रि विश्राम स्थल नाला ग्राम स्थित चौहान होटल पहुँच कर भोजन के बाद सो गये ।अब 17/10/23 की सुबह से हमें बद्रीनाथ की यात्रा के लिए रवाना होना था ।
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लॉम्बार्ड स्ट्रीट,पीयर 39,स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी(अमेरिका यात्रा 2)

रात्रि विश्राम के बाद अब सैन फ्रांसिस्को में हमारा दूसरा दिन सोलह जून की सुबह हम सब आराम से सो कर उठे।प्रात: नाश्ते और फ...